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चिड़िया के बच्चे

किसी जंगल में एक चिड़िया दो बच्चों के साथ रहती थी। चिड़िया का घोसला एक बड़े पेड़ पर था। चिड़िया अपने दोनोंं बच्चों के साथ बहुत खुश थी, लेकिन उसकी खुशी ज्यादा दिन तक नहीं रही। जंगल में आए तूफान ने कई बड़े पेड़ों को गिरा दिया। तूफान की चपेट में आकर चिड़िया के घोसले वाला पेड़ भी टूट गया। पेड़ गिरने से चिड़िया की मौत हो गई और उसके दोनों बच्चे हवा के झोके में कहीं दूर चले गए। चिड़िया का एक बच्चा उस गुफा के पास जाकर गिरा, जिसमें डकैत रहते थे। दूसरी बच्चा एक आश्रम में जाकर गिरा। दोनों बच्चे अलग-अलग जगहों औऱ माहौल में पलने बढ़ने लगे।

एक दिन एक राजा शिकार खेलते हुए जंगल में भटकते हुए उस गुफा के पास पहुंच गए, जहां चिड़िया का बच्चा रहता था। राजा को देखते हुए चिड़िया का बच्चा जोर जोर से शोर मचाने लगा। आ जाओ सभी, इसको लूट लो। इसके पास जवाहारात हैं और तेज दौड़ने वाला घोड़ा भी। अरे सभी जल्दी आओ, यह भाग जाएगा। शायद यह कोई राजा है,इसको लूट लो। राजा को समझते देर नहीं लगी कि वह डकैतों की गुफा के पास हैं। यह बड़ा पक्षी इन डकैतों का साथी है, जो उनको सूचनाएं देता है। राजा ने स्वयं को अकेला समझकर वहां से जल्द से जल्द चले जाने में ही अपनी भलाई समझी।

राजा ने घोड़े को दौड़ा लिया। काफी दूरी तय करने के बाद राजा उस आश्रम के पास पहुंचे, जहां चिड़िया का दूसरा बच्चा रहता था। तभी राजा ने एक बड़ी चिड़िया को बोलते हुए सुना, राजा आप थक गए होंगे, थोड़ा विश्राम कर लीजिए। आपका स्वागत है हमारे आश्रम में। कृपया आ जाइए। अभी महात्मा जी आते ही होंगे। वो नदी में स्नान करने गए हैं। कुछ ही देर में राजा ने एक संत को आश्रम की ओर आते देखा। संत ने राजा से कहा, आश्रम में आपका स्वागत है। कृपया कुछ देर विश्राम और जलपान करके ही जाइएगा। आप हमारे अतिथि हैं।

राजा ने आश्रम में प्रवेश किया और संत को पहले वाली चिड़िया की बात बताई। संत ने बताया कि ये दोनों पक्षी एक दूसरे के भाई हैं। हवा के झोंके में एक डकैतों की गुफा के पास आकर गिरा था और दूसरा आश्रम में। दोनों पर अलग-अलग माहौल का असर पड़ा है। संत की बात सुनकर राजा ने कहा, संस्कार और माहौल का प्रभाव व्यक्तित्व पर अवश्य रूप से पड़ता है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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