Blog LivecareerFeaturedवीडियो न्यूज़

मधुमक्खियों को नये परिवार क्यों नहीं बनाने देते

मधुमक्खियों और उनकी प्रजातियों के बारे में रोचक जानकारियां

रानीपोखरी। न्यूज लाइव

बदलते जमाने में अब संयुक्त परिवार इंसानों की पसंद नहीं रहे, एक घर- एक परिवार का चलन बढ़ा है, पर जब मधुमक्खी पालन की बात की जाए, तो हम चाहते हैं कि बॉक्स में मौजूद मधुमक्खियां संयुक्त परिवार में ही रहें। इसका मतलब है कि एक बॉक्स- एक परिवार।

यानी, मधुमक्खियां न तो नई रानी बनाएं और न ही नये परिवार का गठन करें, इसलिए बॉक्स में कोई नया परिवार बनने की प्रक्रिया का विरोध करते हुए नये क्वीन सेल (Queen cell) तोड़ दिया जाता है। बॉक्स में बनने वाले गाय के थन के आकार के Queen cell नई रानी मधुमक्खी के जन्म की प्रक्रिया की महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं।

आइए मधुमक्खी पालन विशेषज्ञ हरिशरण शर्मा जी से जानते हैं, मधुमक्खियों के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य…

एक मधुमक्खी कॉलोनी में, एक रानी कोशिका जिसे Queen cell कहा जाता है, को नई रानी मधुमक्खी के विकास के लिए बनाया जाता है। यह सामान्य cell से बड़ी होती हैं और आमतौर पर आकार में लम्बी होती है। इसको श्रमिक मधुमक्खियां उस समय बनाती हैं, जब उनको नई रानी की आवश्यकता का आभास होता है। उस समय इसको बनाया जाता है, जब  मौजूदा रानी बूढ़ी हो जाती है, घायल हो जाती है या फिर मर जाती है। Queen cell दो प्रकार की होती हैं: आपात स्थिति के लिए और झुंड बढ़ाने के लिए।

आपातकालीन रानी कोशिकाओं का निर्माण तब किया जाता है जब कॉलोनी को एक नई रानी की तत्काल आवश्यकता होती है, जैसे कि जब मौजूदा रानी की अचानक मृत्यु हो गई हो या खो गई हो।

दूसरी प्रकार का क्वीन सेल, झुंड बढ़ाने के लिए बनाई जाती हैं, जो कॉलोनी के विस्तार के लिए एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।

एक बार जब एक रानी कोशिका का निर्माण हो जाता है, तो श्रमिक मधुमक्खी उसमें एक अंडा देती है। अंडे से एक लार्वा बनता है, जिसे श्रमिक मधुमक्खियां शाही जेली का एक विशेष आहार देती हैं। जिससे, कुछ समय बाद, एक पूर्ण विकसित रानी मधुमक्खी बनती है।

मधुमक्खी कॉलोनी के प्रजनन चक्र में रानी कोशिकाएं एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और उनकी उपस्थिति एक स्वस्थ, अच्छी तरह से काम करने वाली कॉलोनी का संकेत है।

पर, प्रशिक्षित बी कीपर इन रानी कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं, क्योंकि वो नहीं चाहते कि बॉक्स में मौजूद मधुमक्खियों का संयुक्त परिवार टूटकर नये परिवार बनें। उनका कहना है, मधुमक्खियों के संयुक्त परिवार से शहद उत्पादन अधिक होता है, अगर एक ही बॉक्स में अलग-अलग परिवार हो गए तो शहद की पैदावार कम होगी।

इंडियन और इतालवी मधुमक्खी प्रजातियां

रानीपोखरी निवासी शर्मा बताते हैं, उनके पास इतालवी मधुमक्खियां हैं। इंडियन मधुमक्खियों का शहद इतालवी से बेहतर होता है, पर यहां ये प्रजाति उपलब्ध नहीं हैं। इंडियन मधुमक्खियों को उनके आक्रामक व्यवहार और झुंड की प्रवृत्ति के लिए जाना जाता है, जबकि इतालवी मधुमक्खियां जल्दी से डंक नहीं मारतीं। ये बड़ी मात्रा में शहद पैदा करने की क्षमता रखती हैं। भारतीय प्रजाति की मधुमक्खियां एपीस इंडिका पर्वतीय व मैदानी जगहों में पाई जाती हैं। यह बंद घरों में, गुफाओं में या छुपी हुई जगहों पर घर बनाना अधिक पसंद करती हैं। इस प्रजाति की मधुमक्खियों को प्रकाश नापसंद होता है।

मधुमक्खियों के बारे में कुछ रोचक तथ्य

मधुमक्खियां 15 मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकती हैं।

मधुमक्खियां ही एकमात्र ऐसे कीट हैं जो मनुष्य द्वारा खाए जाने वाले भोजन का उत्पादन करती हैं।

मधुमक्खियां दुनिया की लगभग एक तिहाई फसलों के परागण के लिए जिम्मेदार हैं।

मधुमक्खियों की पाँच आँखें होती हैं – तीन छोटी आँखें उनके सिर के ऊपर और दो बड़ी मिश्रित आँखें किनारों पर।

मोम का उपयोग मोमबत्तियां, लिप बाम और अन्य सौंदर्य उत्पाद बनाने के लिए किया जा सकता है।

मधुमक्खियां शहरी वातावरण में पनप सकती हैं और स्थानीय बगीचों और पार्कों को परागित करने में मदद करती हैं।

रानी मधुमक्खी प्रतिदिन 2,000 तक अंडे दे सकती है।

मधुमक्खियां नृत्य के माध्यम से संवाद करती हैं – डगमगाने वाला नृत्य भोजन के स्रोत की दिशा और दूरी को इंगित करता है।

मधुमक्खियां कम से कम 150 मिलियन वर्षों से शहद का उत्पादन कर रही हैं।

मधुमक्खियां पारिस्थितिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनकी गिरावट से पर्यावरण पर प्रभाव पड़ सकता है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button