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दयालु मगरमच्छ और घमंडी मछलियां

एक बड़े तालाब में बहुत सारी मछलियाँ रहती थीं। वे घमंडी थीं और कभी किसी की नहीं सुनती थीं। इस तालाब में, एक दयालु मगरमच्छ भी रहता था। उसने मछलियों को सलाह दी, अहंकारी होना अच्छी बात नहीं है। इससे आप संकट में पड़ सकते हो। किसी दूसरे की बात को भी धैर्य से सुना करो। लेकिन मछलियों ने कभी उसकी बात नहीं सुनी।

एक दोपहर, मगरमच्छ तालाब के पास रखे पत्थर के पास आराम कर रहा था। दो मछुआरे पानी पीने के लिए वहाँ रुके।मछुआरों ने देखा कि तालाब में कई मछलियाँ थीं। एक मछुआरे ने कहा, “देखो ! यह तालाब मछलियों से भरा हुआ है। कल हम बड़ा जाल लेकर यहां मछलियां पकड़ने के लिए आएंगे। तभी दूसरे मछुआरे ने कहा, मुझे आश्चर्य है कि हमने इस स्थान को पहले नहीं देखा।”

मगरमच्छ ने उनकी पूरी बात सुन ली। उनके जाने के बाद वह धीरे-धीरे तालाब में गया और सीधे मछलियों के पास पहुंचा।उसने कहा, आप सभी को सुबह होने से पहले इस तालाब को छोड़ना होगा। सुबह-सुबह दो मछुआरे अपने जाल के साथ इस तालाब पर आने वाले हैं, मगरमच्छ ने चेतावनी दी।

घमंडी मछलियों ने मगरमच्छ की हंसी उड़ाते हुए कहा, कहां से सुनकर आते हो ये सब बातें। कई मछुआरों ने हमें पकड़ने की कोशिश की। हम तो यहीं तालाब में हैं। मछुआरों में हमको पकड़ने को दम नहीं है। जिनकी बात कर रहे हो, वो दोनों भी हमें पकड़ने नहीं जा रहे हैं। आप हमारे बारे में चिंता न करें मिस्टर मगरमच्छ, “उन्होंने मजाकिया स्वर में कहा।

अगली सुबह, मछुआरे आए और तालाब में अपना जाल फेंक दिया। जाल बड़ा और मजबूत था। बहुत जल्द सभी मछलियाँ पकड़ी गईं। जाल में फंसी मछलियां एक दूसरे से कह रही थीं कि अगर हमने मगरमच्छ की बात पर ध्यान दिया होता तो यह समय नहीं देखना पड़ता। वह हमारी मदद करना चाहता था। अपने अहंकार की वजह से हमें अपने जीवन के साथ खिलवाड़ करना पड़ा। मछुआरे मछलियों को बाजार में ले गए और उनको बेच दिया।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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