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“आसपास खेत खाली पड़े हैं, इसलिए हमारी फसलों को उजाड़ते हैं जंगली जानवर”

रानीखेत के इन उजाड़ खेतों में कभी लहलहाती थी फसल

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

“मैं तो अपने गांव में रहकर ही खेती करना चाहता हूं, अपने पिता की तरह यहां हर तरह की फसल उगाना चाहता हूं, जैसे मंडुआ, झंगोरा, राजमा, उड़द, मिर्च, आलू और भी बहुत कुछ…, पर क्या कर सकता हूं, यहां अधिकतर लोगों ने खेतों को खाली छोड़ा है। हम एक दो किसान यहां थोड़ा बहुत, जो भी उगाते भी हैं, उसको जंगली जानवरों ने उजाड़ देते हैं। पहले सभी लोग खेती करते थे, जंगली जीव हर किसी के खेत में इतना नुकसान नहीं करते थे। अब उनको उजाड़ करने के लिए हमारे खेत की दिखते हैं और वो सबकुछ बर्बाद कर देते हैं।”

लगभग 50 साल के जितेंद्र कृषाली अपने गांव रानीखेत में खेतीबाड़ी के हालात पर बात कर रहे थे। वो बताते हैं, “मेरे पिता ने इन खेतों में हल भी चलाए। यह बात सही है कि बारिश समय पर नहीं हो रही, इससे खेती को नुकसान पहुंचा है, पर केवल बारिश को ही इसकी वजह नहीं बता सकते, यहां अब भी बहुत कुछ उगा सकते हैं, खेतों को जंगली जीवों से उजाड़ होने से बचाने की जरूरत है। यह उजाड़ तब ही रूकेगी, जब लोग अपने खेतों में होंगे।”

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“हमने आलू बोए, आप देख सकते हो, बाड़ करने के बाद भी सूअरों ने आलू रौंद दिया। जबकि यह छोटा सा खेत हमारे घर के पास ही है। दिन में खरगोश, रात को सूअर खेतों के दुश्मन बन गए। पहले सभी लोग खेती करते थे, इसलिए जंगली जानवरों से फसलों की सुरक्षा के लिए सभी लोग समूहों में खेतों में पहरेदारी करते थे। अब आप देख रहे हैं, आसपास के खेत खाली हैं, इनमें झाड़ियां उग आईं। अब जंगली जानवर हमारी थोड़ी बहुत खेती पर धावा बोल देते हैं।”

खेत में मिर्च के सूखे पौधों की तरफ इशारा करते हुए जितेंद्र बताते हैं, “एक समय था, जब इतनी मिर्च होती थी कि बाजार में बेचने के बाद घर में इस्तेमाल के लिए बच जाती थी। अब हालात आपके सामने हैं। पौधे बारिश नहीं होने से सूख गए। हालांकि अब बारिश से पौधों के फिर से हरे होने की उम्मीद है।”

बताते हैं, “गांव में लगभग 75 बीघा खेती है, पर अधिकतर खेत खाली हैं, बंजर पड़े हैं। उनको अपने खेत होने के बाद भी दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। कभी काम मिलता है और कभी नहीं। यहां सबसे बड़ी दिक्कत पानी की भी है। एक तो खेती बारिश पर निर्भर है और पीने का पानी लाइनें बिछी होने के बाद भी कई-कई दिन घरों तक नहीं पहुंचता। पानी से भरे छोटे बड़े बर्तन दिखाते हुए कहते हैं,  जब भी पानी आता है, हमें बरतन भरकर रखने पड़ते हैं। जब पानी कई दिन तक नहीं आएगा, तो यह पानी पशुओं को पिलाने और अन्य दूसरे कामों में इस्तेमाल करते हैं। पीने के लिए पानी यहां से लगभग एक किमी. दूर स्रोत से लाते हैं।”

गांव में पर्यटन के माध्यम से आजीविका के संसाधन विकसित करने पर उनका कहना है, यहां से एयरपोर्ट साफ दिखता है, आसपास दिख रहे पहाड़ आपका मन मोह लेत हैं। हरियाली खूब है और मौसम भी अच्छा रहता है। होम स्टे यहां विकसित हो सकते हैं। गांव तक सड़क बन जाए, पानी की दिक्कतें दूर हो जाएं।

एक्टीविस्ट मोहित उनियाल का कहना है, यहां खेती बारिश पर निर्भर है। जंगली जानवर खेती उजाड़ रहे हैं, तो ग्रामीणों को रोजगार के अन्य विकल्पों पर ध्यान देना होगा। जैसे- बकरी पालन, मुर्गी पालन, रेशम कीट पालन, गाय-भैंस पालन आदि, कुछ ग्रामीण इन विकल्पों पर काम कर रहे हैं। थानो से आगे बढ़ते हुए हम रिजॉर्ट, रेस्टोरेंट, होम स्टे देखते हैं। पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए ही ये बने हैं। रानीखेत गांव में होम स्टे पर फोकस किया जा सकता है, पर इसमें सरकारी सिस्टम को ध्यान देना होगा।

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर मानव भारती संस्था में सेवाएं शुरू कीं, जहां बच्चों के बीच काम करने का अवसर मिला। संस्था के सचिव डॉ. हिमांशु शेखर जी ने पर्यावरण तथा अपने आसपास होने वाली घटनाओं को सरल भाषा में कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। जब भी समय मिलता है, अपने मित्र मोहित उनियाल व गजेंद्र रमोला के साथ पहाड़ के गांवों की यात्राएं करता हूं। ‘डुगडुगी’ नाम से एक पहल के जरिये, हम पहाड़ के विपरीत परिस्थितियों वाले गांवों की, खासकर महिलाओं के अथक परिश्रम की कहानियां सुनाना चाहते हैं। वर्तमान में, गांवों की आर्थिकी में खेतीबाड़ी और पशुपालन के योगदान को समझना चाहते हैं। बदलते मौसम और जंगली जीवों के हमलों से सूनी पड़ी खेती, संसाधनों के अभाव में खाली होते गांवों की पीड़ा को सामने लाने चाहते हैं। मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए ‘डुगडुगी’ नाम से प्रतिदिन डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे। यह स्कूल फिलहाल संचालित नहीं हो रहा है। इसे फिर से शुरू करेंगे, ऐसी उम्मीद है। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी वर्तमान में मानव भारती संस्था, देहरादून में सेवारत संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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