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“यहां बचपन अच्छा था, पर बुढ़ापा काटना मुश्किल हो रहा है”

देहरादून जिले के गांव रानीखेत की खेतीबाड़ी पर मंडरा रहा है संकट

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव ब्लॉग

थानो से लेकर धारकोट की ओर आगे बढ़ जाओ या फिर भोगपुर से इठारना की ओर, नये निर्माण दिख जाएंगे। हरियाली पहले जैसी नहीं रही। छोटी से लेकर बड़ी इमारतें तक पहाड़ पर जन्म ले रही हैं। जहां कभी फसलें लहलहाती थीं, वहां प्लाटिंग हो रही है। सूर्याधार गांव इसका बड़ा उदाहरण है। तेजी से होते इस कथित विकास की कीमत उन लोगों को भुगतनी पड़ रही है, जिनका इसमें कोई दोष दिखाई नहीं पड़ता।

क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन, सीधे सपाट शब्दों में समझें तो समय पर बारिश नहीं होना, बर्फ नहीं पड़ना या ज्यादा गर्म या फिर ज्यादा सर्द हो जाना। पर, फसल का जो चक्र निर्धारित है, उसको तो अपने हिसाब से मौसम चाहिए। फसल को अपने समय अनुसार जलवायु चाहिए, जो उसको नहीं मिल रहा। इन सबका खामियाजा किसान भुगत रहे हैं, खासकर छोटे किसान जो दो या तीन बीघा वाले हैं, क्योंकि उनका सबकुछ इसी पर निर्भर है।

डुगडुगी की टीम रानीखेत गांव की यात्रा पर है, पर यह अल्मोड़ा वाला रानीखेत नहीं है। हम जा रहे हैं देहरादून वाले रानीखेत में। प्राकृतिक रूप से बहुत सुंदर है रानीखेत गांव। यहां जाने के लिए पहले आपको देहरादून से थानो और फिर धारकोट वाले रास्ते पर चलना होगा। धारकोट से ठीक एक किमी. पहले रानीखेत गांव का रास्ता है। आइए आपको बताते हैं, दिनरात हो रहे निर्माण, पेड़ों के कटान से यह गांव दिक्कतों से जूझ रहा है, सुनिए इस गांव की कहानी का भाग- एक…

उत्तराखंड के रानीखेत गांव में 75 वर्षीय जगमोहन कृषाली कहते हैं, बचपन तो अच्छा बीता था, पर अब यहां बुढ़ापा काटना मुश्किल हो रहा है। खेतीबाड़ी के हालात से निराश जगमोहन कहते हैं, यही गांव था, यही खेत थे, सबकुछ अच्छा था, पर तीन-चार साल से बारिश समय पर नहीं होने से खेती बर्बाद हो रही है। दो-तीन बीघा जमीन है, उससे भी कुछ नहीं मिल रहा।

यह रानीखेत, अल्मोड़ा जिले का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि देहरादून के पास छोटा गांव है, जहां इन दिनों सात परिवार ही रहते हैं।वैसे यह गांव भी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए मशहूर हो सकता है, अगर कोई पहल की जाए।

खेत की तरफ इशारा करते हुए जगमोहन बताते हैं, गेहूं बोया है, पर पौधे जमीन से उठ नहीं पाए। यह तो बर्बाद हो गया। जौ बोए थे, मसूर बोई थी। मसूर के बीज कृषि विभाग से मिले थे। मसूर का एक बीज भी नहीं जमा। बारिश ही नहीं हुई तो क्या उगेगा। अब बारिश हो रही है, हमारे लिए यह किसी काम की नहीं।

रानीखेत हमारा पैतृक गांव है, पिताजी के साथ खेती की। अभी तक सबकुछ होता था, मंडुआ, झंगोरा, कुलथ, उड़ग राजमा, मिर्च उगाते थे। मिर्च बाजार में भी बेच देते थे। मिट्टी पहले की तरह पथरीली ही है, पर बारिश समय पर होती थी। अगर हम एक दो साल भी खेती करना छोड़ दें तो ये खेत फिर से अन्न पैदा नहीं करेंगे। वैसे भी लोगों ने खेती छोड़ दी, जो लोग कर भी रहे हैं, जंगल के जानवर उनकी फसल उखाड़ रहे हैं। लोग गांव छोड़कर चले गए।

खेती तो बारिश पर निर्भर है, पर पीने के पानी का भी संकट है, जबकि पानी की लाइनें बिछी हैं। पानी कई कई दिन के लिए गायब हो जाता है। जहां से पाइप से पानी आ रहा है, वो स्रोत बहुत दूर है। लाइन टूटने पर जो़ड़ने के लिए ग्रामीण ही जाते हैं। जब पानी नहीं आता तो भगवानपुर के एक किमी. दूर स्रोत से पानी ढोना पड़ता है।

खेती अब आजीविका का सहारा नहीं हैं। पशुपालन कर रहे हैं, चारापत्ती पास ही जंगल से लाते हैं।

देहरादून के इस पर्वतीय इलाके में रेस्रां, होमस्टे बने हैं, यहां तक तक यूनिवर्सिटी की इमारत बनाई जा रही है। यह सब गांववालों से खरीदी जमीन पर बन रहे हैं। ग्रामीण चाहते हैं कि उनको यहां पर नौकरी मिले।

एक्टीविस्ट मोहित उनियाल का कहना है, रानीखेत गांव को पर्यटन के लिए संवारा जा सकता है। यह जगह वर्ड वाचिंग के लिए शानदार है। यहां होम स्टे को आजीविका का जरिया बनाया जा सकता है। बकरी पालन, मुर्गी पालन,  गाय- भैंस पालन भी गांव की आजीविका के प्रमुख आधार बन सकते हैं, पर इन सबके लिए सरकारी सिस्टम की मदद की आवश्यकता है।

 

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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