विश्व जनसंख्या दिवसः आओ बात करें आधी आबादी की
जब बात लैंगिक समानता की हो रही है, ध्यान महिलाओं और बालिकाओं की तरफ जाता है
15 नवंबर 2022 को विश्व की जनसंख्या 8 अरब से अधिक हो गई। मानव परिवार अब पहले से कहीं अधिक बड़ा हो गया है। 11 जुलाई को प्रतिवर्ष विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इस बार विश्व जनसंख्या दिवस 2023 थीम है- लैंगिक समानता की ताकत को उजागर करना: दुनिया की अनंत संभावनाओं को अनलॉक करने के लिए महिलाओं और लड़कियों की आवाज़ को ऊपर उठाना।
जब बात लैंगिक समानता की हो रही है, ध्यान महिलाओं और बालिकाओं की तरफ जाता है। हालांकि, लैंगिक समानता का अर्थ, महिलाओं के साथ ही पुरुषों और ट्रांसजेडर्स के लिए समान अवसरों से है। पर, महिलाओं की बात इसलिए की जाती है, क्योंकि उन्होंने वर्षों से उपेक्षाओं को झेला है। बदलते वक्त के साथ, महिलाओं की स्थिति में बदलाव हुआ है, पर आज भी कई बार महत्वपूर्ण निर्णयों में उनकी भागीदारी कम है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस का कहना है, लिंग-आधारित भेदभाव हर किसी को नुकसान पहुँचाता है – महिलाएँ, लड़कियाँ, पुरुष और लड़के। महिलाओं के उत्थान से सभी लोगों, समुदायों और देशों की प्रगति होती है।”
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हमें अधिक न्यायपूर्ण, लचीला और टिकाऊ विश्व बनाने के लिए लैंगिक समानता को आगे बढ़ाना चाहिए।
विश्व जनसंख्या का रुझान
विश्व की जनसंख्या को 1 अरब तक बढ़ने में सैकड़ों हजारों वर्ष लग गए – फिर लगभग 200 वर्षों में, यह सात गुना बढ़ गई। 2011 में, वैश्विक जनसंख्या 7 बिलियन के आंकड़े तक पहुंच गई, 2021 में यह लगभग 7.9 बिलियन हो गई और 2030 में इसके लगभग 8.5 बिलियन, 2050 में 9.7 बिलियन और 2100 में 10.9 बिलियन होने की उम्मीद है।
हाल के दिनों में प्रजनन दर और जीवन प्रत्याशा में भारी बदलाव देखा गया है। 1970 के दशक की शुरुआत में, प्रत्येक महिला के औसतन 4.5 बच्चे थे। 2015 तक, दुनिया की कुल प्रजनन क्षमता प्रति महिला 2.5 बच्चों से कम हो गई थी। इस बीच, औसत वैश्विक जीवनकाल 1990 के दशक की शुरुआत में 64.6 वर्ष से बढ़कर 2019 में 72.6 वर्ष हो गया है।
इसके अलावा, दुनिया में उच्च स्तर का शहरीकरण और तेजी से प्रवासन देखा जा रहा है। 2007 पहला वर्ष था, जब ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में अधिक लोग रहते थे, और 2050 तक दुनिया की लगभग 66 प्रतिशत आबादी शहरों में रह रही होगी।
इन मेगाट्रेंड्स के दूरगामी प्रभाव हैं। ये आर्थिक विकास, रोजगार, आय वितरण, गरीबी और सामाजिक सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, आवास, स्वच्छता, पानी, भोजन और ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने के प्रयासों को भी प्रभावित करते हैं। व्यक्तियों की आवश्यकताओं को अधिक स्थायी रूप से संबोधित करने के लिए, नीति निर्माताओं को यह समझना चाहिए कि ग्रह पर कितने लोग रह रहे हैं, वे कहाँ हैं, उनकी उम्र कितनी है और उनके बाद कितने लोग आएंगे।- स्रोतः संयुक्त राष्ट्र
महिलाओं और बालिकाओं के लिए समानता के अवसरः कितना सफर बाकी
दुनिया तरक्की पर है, पहले की तुलना में वर्तमान में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है, यह सब शिक्षा की वजह से हुआ है। ऋषिकेश में एक संवाद में राजकीय बालिका इंटर कॉलेज की शिक्षिकाएं इस बात पर सर्वसम्मत होती हैं कि शिक्षा की वजह से महिलाएं जागरूक हुई हैं और अपनी बात रखने लगी हैं। वो अपने मुद्दे भी उठा रही हैं।
शिक्षिकाओं ने कहा, पहले महिलाओं की शिक्षा पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था। उम्र बढ़ने के साथ, अधिकतर माता पिता का उद्देश्य होता था कि बिटिया की शादी कर दी जाए। कम उम्र में ही शादी हो जाती थी और फिर घर गृहस्थी चलाने और बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी। उस समय मौन होकर अपने सपनों को टूटता देखने वाली महिलाएं बदलते वक्त में चाहती हैं कि जिन परिस्थितियों का उन्होंने सामना किया है, उनके बच्चों के सामने ऐसा संघर्ष नहीं आए।
महिलाएं अपने बच्चों में उनके सपनों को पूरा करने की उम्मीद देखती हैं, इसके लिए बच्चों की शिक्षा पर, चाहे बेटी हो या बेटा, पूरा ध्यान देती हैं। जैसे-जैसे शिक्षा का प्रसार हो रहा है, ज्यादा से ज्यादा बेटियां शिक्षित हो रही हैं, बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। हालांकि अभी सफर बाकी है।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) और विश्व स्वास्थ्य संगठन ((WHO) ने एक नई रिपोर्ट में बताया गया है कि पेयजल की कमी वाले 10 में से सात घरों में, पानी इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी मुख्यत: महिलाओं व लड़कियों पर होती है। इस काम में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या लगभग दोगुनी है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में लगभग दो अरब लोग, घरों के परिसर में पेयजल आपूर्ति से वंचित हैं। यह अध्ययन, घरों में पीने के पानी, स्वच्छता व साफ़-सफ़ाई (WASH) में व्याप्त लैंगिक असमानताओं का पहला गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिससे स्पष्ट होता है कि वैश्विक जल और स्वच्छता संकट का खमियाज़ा, विशेषकर महिलाओं और लड़कियों को भुगतना पड़ता है।