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महिलाओं के जीवन में रोशनी लाने वाली दीपा को विसकोम्प अवार्ड -2016

आज देर शाम दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में महिलों को कानूनी सहायता , पढाई  सहित महिला अधिकार के लड़ने वाली देहरदुन की दीपा कौशलम को – WISCOMP साहस अवार्ड 2016  से नवाजा गया . डॉक्टर क्रैग डिकर  और WISCOMP की अध्यक्ष मिनाक्षी गोपीनाथ ने दीपा को सम्मानित किया ! साधारण सी दिखने वाली दीपा में गजब का साहस और हिम्मत है। अपने जीवन की लड़ाई लड़ते हुए दीपा ने असंगठित क्षेत्र की

दीपा को पुरुस्कार देते हुए डॉक्टर क्रैग डेकर

घरेलू कामगार महिलाओं के साथ-साथ दुकानों और घरों में काम करने वाली युवतियों और महिलाओं के लिए छोट-छोटे काम शुरू किये। दीपा कौशलम को दलाई लामा की प्रतिष्ठित संस्था विसकाॅम्प WISCOMP साहस अवार्ड 2016 के लिए उत्तराखण्ड से चुना गया है। आज उनको देश की राजधानी दिल्ली में इण्डिया इंटरनैशनल सेन्टर में WISCOMP – ICON OF COURAGE अवार्ड से सम्मानित किया गया । दीपा उत्तराखंड में महिला शिक्षा प्रेरक और प्रशिक्षक भी है.

डॉक्टर क्रैग डिकर और मिनाक्षी गोपीनाथ द्वारा इंटरनेशनल सेण्टर में दीपा कौशलम को किया गया सम्मानित

दीपा और उसकी साथियों ने परित्यक्ता, तलाकशुदा, घरेलू हिंसा, यौन पीड़िताओं की मदद के लिए काम करते हुए प्रत्यक्ष रूप से वर्ष 2008 से 2016 तक 800 महिलाओं को विभिन्न प्रकार की कानूनी, स्वरोजगार एवं मोटिवेशनल काउंसलिंग दी साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से कुछ अवसरों पर जैसे- दहेज हत्या, बलात्कार, घरेलू हिंसा, इव टीज़िंग या कार्य स्थलों पर यौन उत्पीड़न, मानव अधिकारों का हनन आदि पर 5400 के आस-पास महिलाओं को सहयोग दिया है।दीपा कौशलम ने अस्तित्व के समर्पित लीडर और प्रेरक होने के नाते महिलाओं के मुद्दों पर कार्य कर रही संस्थाओं के साथ नेटवर्क बढ़ाया और दूसरी तरफ संघर्षशील महिलाओं को एकजुट करने का कार्य किया। इस पूरी लड़ाई में वो अकेली सिर्फ शुरू के दौर में थी बाद में प्रीति किरबट, सुनीता सिंह, वैशाली और ममता उसकी इस लड़ाई में मददगार हुई और आज भी अस्तित्व लगातार राजधानी देहरादून में उपेक्षित एवं गरीब महिलाओं को कानूनी सलाह दिलाने, महिला हेल्पलाइन की मदद दिलाने में सहयोग कर रही है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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