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67फीसदी बच्चों के पास खुद का स्मार्टफोन

न्यूर्याक


दुनिया में स्मार्टफोन को लेकर लोगों का उत्साह बढ़ता ही जा रहा है। बच्चे भी अब इससे अछूते नहीं है। एक हालिया रिसर्च के अनुसार दुनिया में 8 से 15 वर्ष की आयु के 67 प्रतिशत बच्चों के पास अपना स्मार्टफोन है। 8 वर्ष की उम्र के हर पांचवे बच्चे के पास खुद का स्मार्टफोन है। वहीं 15 वर्ष तक की आयु के 95 प्रतिशत बच्चे खुद का स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं।

एक सर्वे में शामिल करीब 82 प्रतिशत अभिभावकों का कहना है कि वे अपने बच्चों के फोन के लिए बिल भुगतान करते हैं। माता-पिता का यह भी कहना था कि 45 प्रतिशत बच्चे अपने जन्मदिन या क्रिसमस पर तोहफे के रूप में स्मार्टफोन की मांग करते हैं, तो 19 प्रतिशत बच्चे जिद करते हैं और यह जिद तब तक जारी रहती है, जब तक उन्हें स्मार्टफोन दिला न दिया जाए।
सिर्फ 28 प्रतिशत बच्चे ही ऐसे हैं, जो अपनी सेव की हुई पॉकेट मनी से ही स्मार्टफोन खरीदना जरूरी समझते हैं। सर्वे में शामिल हुए 40 प्रतिशत बच्चों का यह भी दावा है कि उन्हें फोन में कितने भी एप्लीकेशन डाउनलोड करने की आजादी है। हालांकि, इस रिसर्च में यह भी पाया गया कि बच्चों की डाउनलोडिंग की आदतों को रोकने के लिए पिता से ज्यादा मां फिक्रमंद रहती हैं।
मीडिया रिपोर्ट में सर्वे कंपनी के प्रमुख जाइल्स मार्टिन के हवाले से कहा गया है कि स्मार्टफोन पर ज्यादा से ज्यादा गेम्स, एप और म्यूजिक ऑफर दिए जाते हैं। ऐसे में बच्चे डाउनलोडिंग पर खूब पॉकेट मनी खर्च करते हैं। हालांकि डाउनलोड के समय कीमत बहुत सस्ती दिखती हैं। ऑनलाइन भुगतान के कारण भी डाउनलोडिंग पर होने वाला खर्च नजरों में नहीं आता। ऐसे में माता-पिता को अपने बच्चों को बताना चाहिए कि कितना पैसा उन्होंने खर्च कर दिया है। इस सर्वे में करीब 1,200 बच्चों और 600 से अधिक माता-पिता ने हिस्सा लिया।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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