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किसी के चुप रहने का मतलब यह नहीं है कि वह कमजोर है

अखबार में बड़े मैनेजर के खास होने का मतलब किसी से भी अभद्रता का परमिट नहीं है
अखबारों में एडिटोरियल के कुछ लोग बड़े मैनेजर की शह पर अपने जूनियर साथियों से सही व्यवहार नहीं करते हैं। मैं यह जिक्र इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि आप सजग रहें। आपको अखबार में अपने वो सभी कार्य करने हैं, जो खबरों से संबंधित हैं और जो कार्य आपके इंचार्ज बताते है। केवल अखबार से संबंधित कार्य की ही बात कर रहा हूं। पहले भी बता चुका हूं कि परिक्रमा आपको एक या दो पदों की प्रगति तो करा सकती है, पर कुछ रचनात्मक और अभिनव करने के लिए जरूरी अनुभव नहीं दिलाएगी। अखबार में रहकर तो इन लोगों का समय बीत जाएगा। अखबार में नहीं रहने के दौरान क्या करेंगे।
मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूं, जो परिक्रमा में विश्वास रखते हैं। दावे के साथ कह सकता हूं कि जिस दिन ये अखबार से बाहर होंगे, कोई ऐसा काम नहीं कर सकेंगे, जो थोड़ा सा भी लिखने पढ़ने या कुछ अभिनव करने का है। तब ये दूसरों पर निर्भर होंगे। इनको अपना काम निकालने के लिए एक बार फिर दूसरों के चक्कर लगाने पड़ेंगे। हां, कुछ लोग अपने कार्य के माहिर होते हुए भी चक्कर काटते हैं, क्योंकि इनको अपने आसपास बैठे लोग पसंद नहीं आते। ये अपने साथियों को अपनी तरक्की में बाधा समझते हुए बड़े अधिकारियों के कान भरने में लगे रहते हैं। इनसे भी बचे रहने की जरूरत है।
आपको इन परिक्रमाधारियों की पहचान करनी है। आपको न तो इनसे ज्यादा दोस्ती करनी है और न ही इनसे बिगाड़नी है। यानी आपको मध्यम मार्ग पर प्रशस्त होना है। मैं एक अखबार में नौकरी कर रहा था। संपादक ने मुझे एक दो दिन केवल न्यूज रूम को समझने के लिए कहा। कुछ दिन में कोआर्डिनेशन डेस्क पर बैठा दिया। अखबारों में कोआर्डिनेशन डेस्क सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। यह डेस्क अखबार के देशभर के सभी संस्करणों से अपने लिए खबरें मंंगाने और अपने संस्करण से वहां खबरें और फोटो भेजने का काम करती है। कुल मिलाकर अगर किसी संस्करण को आपके प्रदेश से कोई खबर चाहिए तो वो कोआर्डिनेशन के पास ही फोन करता है।
यह डेस्क अपने संस्करण की विभिन्न डेस्क तथा रिपोर्टर के साथ भी खबरों व फोटो को लेकर समन्वय बनाती है। उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तो गढ़वाल और कुमाऊं की सभी डेस्कों की महत्वपूर्ण खबरों की लिस्ट व फोटो कोआर्डेिनेशन के पास आती है। प्रदेश की सभी महत्वपूर्ण खबरों की सूची इसी डेस्क से सभी संस्करणों को ईमेल होती है। समय पर खबरें उपलब्ध कराना भी इसकी ही जिम्मेदारी है।
हर संस्करण में प्रदेश स्तर का एक पेज भी यही डेस्क तैयार करती है। इसका मतलब यह हुआ कि देहरादून के संस्करण में इस पेज पर हरिद्वार, गढ़वाल व कुमाऊं की खास खबरें प्लेस होती हैं। हरिद्वार संस्करण में केवल हरिद्वार, गढ़वाल संस्करण में केवल गढ़वाल की खबरें इस पेज पर नहीं होतीं। मान लीजिए कि देहरादून में बिहार के किसी संस्करण के लिए कोई खबर है, तो कोआर्डिनेशन डेस्क की जिम्मेदारी है कि वो बिहार के संबंधित संस्करण को उन खबरों को भेजे। राज्य स्तर की किसी खबर पर अलग-अलग स्टेशनों से मिलने वाली सूचनाओं को भी यही डेस्क इकट्ठा करके कम्पाइल करती है। वैसे बता दूं, इस डेस्क पर एक ही व्यक्ति की नियुक्ति होती है।
यहां दो या तीन साल डटकर काम कर लिया, तो समझो किसी भी डेस्क पर कोई तकलीफ नहीं होगी। हालांकि इस डेस्क पर उसी व्यक्ति को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, जो रिपोर्टिंग कर चुका है और सभी डेस्कों पर काम करने का अनुभव हो। यहां तो खबरों को तेजी से संपादित करने वाला, देर रात की खबरों को फोन पर नोट करके डेवलप करने वाला, अलग-अलग स्टेशनों से मिलने वाली सूचनाओं को कंपाइल करने वाला, हर खास खबर पर नजर रखने वाला, घटनाओं से अपडेट रहने वाला, खबरों से तुरंत संपादक को अपडेट कराने वाला, सभी रिपोर्टर्स से समन्वय बनाकर रखने वाला, जरूरत पड़ने पर रिपोर्टर की तरह कार्य करने वाला व्यक्ति ही चल सकता है। यहां किसी पर शोर मचाकर दबाव बनाने और अपनी खबरें दूसरों से पढ़वाने वालों की जरूरत नहीं है।
कोआर्डिनेशन में काम करने का अपना ही आनंद है। मुझे महसूस हुआ कि मैं खबरों में जी रहा हूं। तरह-तरह की खबरें संपादित करने का मौका मिला। देहरादून से लेकर दिल्ली और देशभर के सभी संस्करणों में तैनात लोगों से बात करने का अवसर मिलता। बड़ी खुशी हुई। कई लोग, जो बड़े सीनियर पदों पर बैठे थे, कितने स्नेह और मित्रतापूर्ण व्यवहार से बात करते थे। लगता ही नहीं था कि किसी सीनियर से बात हो रही है।
मुझे तो एक बड़े अखबार के मालिक से सीधा संवाद करने का मौका मिला, मैं आज भी उनके व्यवहार को नमन करता हूं। व्यवहार एक ऐसा गुण है, जो आपके बचपन का साथी होता है। यह संस्कारों के साथ बोया जाता है। संस्कारों में कमी ही खराब व्यवहार की वजह है। क्या जाता है किसी से स्नेह से बोलने में। सम्मान दीजिएगा तो सम्मान हासिल कीजिएगा।
वहां एक वरिष्ठ का व्यवहार बड़ा अटपटा था। एक दिन मैंने उनसे कहा, मुझे कोई काम है, जल्दी जाना है। उन्होंने कहा,ठीक है, मैं बाहर जा रहा हूं, जल्दी आ जाऊंगा, तू फिर चले जाना। मुझे बड़ा बुरा लगा कि अखबार में काम कर रहा कोई शख्स किसी से इतनी अभद्रता से बात कर सकता है। मैं तो इनका कोई हमउम्र भी नहीं हूं और न ही इनसे मेरी कोई दोस्ती है। संपादक तक किसी से इस तरह बात नहीं करते। उस समय, मैं चुपी साध गया, क्योंकि मुझे इस अखबार में कुछ ही दिन हुए थे।
वो काफी देर तक नहीं आए। वो आएं तो मैं जाऊं। इंतजार में दफ्तर से बाहर टहलते हुए कुछ ही कदम चला था कि एक कार मेरे पास आकर रूकी। कार में बैठे शख्स ने कहा, तू अभी गया नहीं। मैंने अपनी मुट्ठियां भींच ली। मैंने गुस्से को दबाते हुए कहा, नहीं अभी नहीं गया। आप जल्दी आ जाते तो चला जाता। उन्होंने मुझे कार के भीतर से अपनी ओर आने का इशारा करते हुए कहा, इधर आकर बात कर। मैं उनकी ड्राइविंग सीट से विपरीत दिशा में खड़ा था। मैंने अपने गुस्से को काबू में किया हुआ था। मैं उस शख्स की अभद्रता के स्तर को जानना चाहता था। मुझे उनके संस्कार तो उसी समय पता चल गए थे, जब उन्होंने मुझे पहली बार तू शब्द से संबोधित किया था।
मैं उनकी ड्राइविंग सीट की ओर पहुंचा। उन्होंने कहा, तू क्या कह रहा है, क्या मैंने तुझे जाने से रोका। मैंने कहा, आप आते तो जाता। अब कोई बात नहीं। ड्यूटी पूरी करके ही जाऊंगा। आपको पता है यह शख्स बड़े मैनेजर का खास होने के नाते, इतना खराब व्यवहार कर रहा था। यह कोई ऐसे रिपोर्टर या डेस्क का व्यक्ति नहीं है, जिन्होंने अपनी पूरी नौकरी में कोई ऐसी खबर लिखी है, जो कमाल कर गई हो। इनकी अखबारी जीवन में कोई उपलब्धि मुझे तो नहीं दिखी। फिर काहे के पत्रकार…। मैं क्यों मानूं ऐसे किसी शख्स को पत्रकार।
मैंने दूसरे दिन का इंतजार किया और संपादक से मुलाकात करके पूरा किस्सा बयां कर दिया। संपादक को भी उस शख्स का इस तरह का व्यवहार बुरा लगा। मैं समझ सकता था कि इस तरह के शख्स हर अखबार में हैं, जो केवल परिक्रमा के सहारे नौकरी कर रहे होते हैं।
मैंने संपादक से कहा, मैं इस व्यक्ति से किसी भी तरह पीछे नहीं हूं। चाहे एजुकेशन हो, अखबार में अनुभव हो, खबर लिखने या कवरेज करने की बात हो या फिर किसी मुद्दे पर चर्चा करनी हो। किसी के चुप रहने का मतलब यह नहीं है कि वह कमजोर है। इनकी अभद्रता के समय मेरी चुपी ने इनका ही भला किया था। अभद्रता का जवाब अभद्रता से नहीं दिया जा सकता। मैंने अपनी बात कह दी। मुझे उम्मीद है कि मेरे साथ दोबारा से ऐसा व्यवहार नहीं होगा। आप उनको बता दीजिएगा। वो संपादक मुझे उस समय से जानते हैं, जब मैंने अखबार के दफ्तर में कदम रखा था। वो मेरे व्यवहार को भी जानते हैं।
एक दिन आफिस की मीटिंग शुरू होने से पहले ही मैंने संपादक से कह दिया। मुझे किसी के बात करने के तरीके पर आपत्ति है। संपादक समझ गए कि किसके बारे में बात हो रही है। उन्होंने कहा, बताओ। मैंने उस शख्स की ओर इशारा करके कहा, इनको मुझसे बात करने का तरीका बदलना होगा। मुझे इस तरह की भाषा अच्छी नहीं लगती। तू यह कर ले, तू वो कर ले, यह क्या होता है। उस शख्स ने कहा, आज से राजेश जी कहा करूंगा। मैंने कहा, राजेश भी चलेगा, पर भाषा सही होनी चाहिए। उस दिन के बाद से उन्होंने फिर मुझसे अभद्रता नहीं की।
यह बात जिक्र करने का मतलब है कि अखबार में कोई सीनियर हो या फिर जूनियर उसको अभद्रता करने का मौका मत दो। अभद्रता करता है तो अपने वरिष्ठ अधिकारी से बात करो। मौका मिलते ही सबके सामने हिदायत दे दो कि गलत भाषा और अभद्र व्यवहार बर्दाश्त नहीं होगा। किसी बड़े मैनेजर या संपादकीय के बड़े अधिकारी के चक्कर काटने का मतलब यह कतई नहीं है कि किसी को भी जूनियर्स या सीनियर्स से अभद्रता करने का परमिट मिल गया।

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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