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गणित की मदद से सुलझाएंगे शरीर और रोगों के रहस्य

कोशिकाओं का एक छोटा सा समूह कैसे एकत्रित होकर लिवर या मांसपेशी बन जाता है। कैसे हमारे जींस प्रोटीन, प्रोटीन कोशिकाएं और टिश्यू,  टिश्यू कैसे शरीर के अंगों का निर्माण करते हैं। क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है। दुनिया में अतिविशिष्ट और बेहद ही जटिल प्रक्रिया के यह बायोल़ॉजिकल सिस्टम कैसे कार्य कर पाते हैं। यह विचार बायोमेडिकल साइंटिस्ट को उद्वेलित करता है। लेकिन गणितज्ञों के एक जोड़े इस पक्ष पर सोचने के लिए एक नई दिशा और विचार को आगे बढ़ाया है, जो इन जटिल प्रश्नों को समझने में मदद कर सकता है। यह प्रक्रिया हमारे शरीर के साथ-साथ अन्य जीवित वस्तुओं के बारे में जानने में मदद करेगी।

नेशनल एकेडमी आफ साइंस, अमेरिका ने प्रोसेस राइटिंग में यूनिवर्सिटी आफ मिसिगन मेडिकल  स्कूल और यूनिर्वसिटी आफ कैलीफोर्निया बर्कले में गणित की मदद से जैनेटिक सूचनाओं और कोशिकाओं के बीच तालमेल की प्रक्रिया को समझने के साथ-साथ टिश्युओं की सही कार्य विधि को जाना है। शोधकर्ताओं ने बताया कि इस प्रक्रिया के प्रत्येक भाग को जानने के लिए इसके विशुद्ध या आइडियल फ्रेमवर्क को समझना जरूरी है, जिसे क्रिया विधि का उद्भव माना जाता है।

वैज्ञानिकों ने एक कदम पीछे जाकर बहुत ही सरल तरीके से गणित पर आधारित म़ॉडल तैयार किया है और वे आशा करते हैं कि शरीर में कुछ समय बाद कोशिकाओं के बीच जो परिवर्तन होते हैं और कोशिकाओं के इन परिवर्तनों की वजह से टिश्यूओं को निर्माण संभव होता है, यह गणितीय कैलकुलेशन से समझा जा सकेगा। मानव शरीर में हर अंग का निर्माण टिश्युओं से होता है।

यह कैंसर जैसी बीमारियों को समझने और उनके उत्पन्न होने के कारणों की तह में जाकर पता लगाएगी कि अगर विधिवत रूप से इसके गणितीय आगणन न किए गए तो किस प्रकार की कई और बीमारियां पैदा हो सकती हैं। यूएम मेडिकल स्कूल के कंप्यूटेशनल मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर इंडिका राजपक्षे और बर्कले के विख्यात प्रोफेसर स्टीफन स्मैल ने इस विचारधारा पर कई वर्षों तक काम किया। राजपक्षे के अनुसार हमारे शरीर में कोशिकाओं के मरने और बनने का क्रम लगातार चलता रहता है और इसी क्रम के दौरान हमारे टिश्यू सही ढंग से काम करते रहते हैं। शरीर के एक टिश्यू को सही तरीके से समझने के लिए हमें सटीक गणित और बायोलॉजी को साथ-साथ समझना होगा।

वैज्ञानिकों की इस जोड़ी का मानना है कि गणितीय आंकड़ों से जीव विज्ञान के तहत कोशिकाओं और टिश्यू का अध्ययन करके कैंसर जैसे असाध्य रोगों की उत्पत्ति और उनके शरीर में फैलते प्रभाव को रोकने के लिए काम किया जा सकता है। इस दिशा में डिफेंस एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी (डीएआरपीए) लगातार काम कर रही है। यही नहीं गणितीय सूत्रों की इस तकनीक पर यूएम ट्रांसलेशन आंकोलॉजी प्रोग्राम तथा नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के एमडी थॉमस रीड भी राजपक्षे के कार्य कर रहे हैं। थॉमस रीड पूरी दुनिया के गणितज्ञों का एक सम्मेलन आगामी गर्मियों में बर्सिलोना में कराने जा रहे हैं, जिसके तहत कंप्यूटेशनल बायोलॉजी और जीनोम का अध्ययन किया जाएगा।

वैज्ञानिक राजपक्षे कहती हैं कि कोशिका का जीवनचक्र बहुत ही महत्वपूर्ण और सुंदर है। जब हम इसके बारे में स्पष्ट गणितीय समझ या फार्मूला स्थापित कर लेंगे तब हम इसके आधार पर कंप्यूटर मॉडल विकसित करेंगे, ताकि जीवन की सुंदरताओं के बारे में और उसको प्रभावित करने वाले गणितीय आगणन को समझा जा सके।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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