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गणतंत्र दिवस की झांकी: लद्दाख में 13000 फिट से अधिक ऊंचाई पर जल आपूर्ति को दिखाया

जल जीवन मिशन लद्दाख वासियों के जीवन स्तर को सुधार रहा हैः शेखावत

नई दिल्ली। गणतंत्र दिवस पर जल शक्ति मंत्रालय की “जल जीवन मिशनः चेंजिंग लाइव्ज़” (जल जीवन मिशनः बदलता जीवन) नामक झांकी में यह दिखाया गया कि कड़ाके की ठंड में 13,000 फिट से अधिक ऊंचाई वाले लद्दाख में घरों तक नल से जल पहुंचाकर मिशन कैसे लोगों के जीवन को आसान बना रहा है तथा उनके जीवन स्तर में सुधार ला रहा है।

उन इलाकों में सर्दियों में दिन का अधिकतम तापमान शून्य से नीचे रहता है और रात में तापमान -20 तक गिर जाता है। खून जमा देने वाली सर्दियों में, सबके घर तक साफ पानी पहुंचाना बहुत चुनौती भरा काम होता है, क्योंकि जल-स्रोत जम जाते हैं और सप्लाई-लाइन काम नहीं कर पाती और पाइपें जमकर फट जाती हैं।

देश में लद्दाख ऐसा क्षेत्र हैं, जहां आबादी का घनत्व सबसे कम (2.8 व्यक्ति/प्रति वर्ग किलोमीटर) है। गांव छिट-पुट रूप से बसे हैं और वर्षा बहुत कम होती है। सर्दियों में दर्रे बंद हो जाने के कारण यह इलाका कुछ महीनों के लिये देश से कट जाता है। इस वजह से सामान की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित होती है।

इसके अलावा, जल-स्रोत ज्यादातर दूर-दराज इलाकों में स्थित हैं और सर्दियों में वहां के कई जल-स्रोत जम जाते हैं। निर्माण कार्य के लिये बहुत मेहनत करनी पड़ती है तथा सामग्री लाने-ले जाने के लिए पशुओं और हेलीकॉप्टरों की सहायता लेनी पड़ती है।

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अत्यंत सर्द तापमान के कारण सामान्य जीआई पाइपों के स्थान पर एचडीपीई पाइपों का इस्तेमाल किया जाता है तथा मुख्य सप्लाई लाइन को जमीन में उस गहराई में बिछाया जाता है, जहां पानी पाइप में जमने न पाए।

जहां भी पाइप जमाव-स्थान से ऊपर होते हैं, वहां पाइपों को गर्म रखने के लिए उन पर ऊन की तरह लगने वाली कांच से बनी सामग्री, लकड़ी और अलमूनियम का आवरण लपेटा जाता है।

जलापूर्ति श्रृंखला को कायम रखने के लिए सौर ऊर्जा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा वह यह सुनिश्चित कर देती है कि पाइपों में पानी लगातार बहता रहे। जमे हुये जल-स्रोतों से पानी खींचने की भी तकनीकी चुनौतियां मौजूद हैं।

ऐसे इलाकों में पहले लोगों को बर्फ खोदनी पड़ती थी और पीने के लिए उसे पिघलाना पड़ता था, लेकिन अब वे अपने घरों में सुविधापूर्वक नल से जल प्राप्त कर रहे हैं। स्कूलों और आंगनबाड़ियों में भी इसी तरह साफ पानी उपलब्ध कराया जा रहा है। यही नहीं, सेन्सर आधारित आई-ओ-टी प्रणाली (इंटरनेट ऑफ थिंग्स-वस्तु अंतरजाल प्रणाली) के जरिए लोगों को पानी की मात्रा और गुणवत्ता के प्रत्यक्ष आंकड़े मिलते हैं तथा जलापूर्ति की निगरानी भी हो जाती है। गांव की महिलाओं को फील्ड टेस्ट किट का इस्तेमाल करके पानी की गुणवत्ता की परख करने के लिये प्रशिक्षित किया गया है।

झांकी में दिखाया गया है कि स्थानीय महिलाएं किस तरह फील्ड टेस्ट किट (एफटीके) का इस्तेमाल करके पानी की गुणवत्ता की जांच कर रही हैं। जल जीवन मिशन ने एफटीके की मदद से नल से जल की शुद्धता की जांच करने के लिए 8.6 लाख से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया है। देश में जल परीक्षण प्रयोगशालाएं लोगों के लिए खोल दी गई हैं, जहां पेयजल का परीक्षण कर सकते हैं।

एक डिजिटल बोर्ड में प्रत्यक्ष तापमान और जलापूर्ति, पानी में क्लोरीन के इस्तेमाल आदि के वास्तविक समय के आंकड़े तथा मिशन की प्रगति के बारे में भी जानकारी दी गई है।

जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने जल शक्ति मंत्रालय की गणतंत्र दिवस झांकी के बारे में कहा-

जल जीवन मिशनः अगस्त 2019 में घोषणा होने के बाद से 29 माह की छोटी सी अवधि के दौरान ही, जल जीवन मिशन ने भारत में गांव के 5.63 लाख से अधिक घरों, 8.4 लाख से अधिक स्कूलों और 8.6 लाख से अधिक आंगनबाड़ी केंद्रों तक नल से जल उपलब्ध कराया है। मिशन की घोषणा के समय केवल 3.23 करोड़ घरों में नल से जल मिलता था। आज 8.87 करोड़ से अधिक घरों तक नल से पानी का कनेक्शन पहुंचा दिया गया है।

जापानी इन्सेफ्लाइटिस (जेई) और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एईएस) प्रभावित जिलों  में नल से जलापूर्ति तीन प्रतिशत से 40 तक पहुंच गई है। इसी तरह आकांक्षी जिलों में जलापूर्ति 7.2 प्रतिशत से बढ़कर 39 प्रतिशत हो गई है। सदियों से महिलाओं-बच्चों को पानी ढो-ढोकर लाना पड़ता था। इस तकलीफ को जल जीवन मिशन ने समाप्त कर दिया है और ग्रामीण भारत में करोड़ों लोगों के जीवन को बदल डाला है। जल जीवन मिशन देश के सबसे दुर्गम स्थानों पर काम कर रहा है, ताकि कठोर जलवायु का सामना करने वाले लोगों को नल से जल मिल सके। इसी तरह मिशन लद्दाख, हिमाचल प्रदेश या उत्तराखंड के ऊंचाई वाले स्थानों तथा राजस्थान और गुजरात के मरुस्थलों में नल से जल उपलब्ध करा रहा है

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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