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मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है “ईजा-बोई शगुन” योजनाः स्वास्थ्य सचिव

उत्तराखंड में मनाया गया राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस

देहरादून। राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस हर साल 11 अप्रैल को मनाया जाता है, जिसके माध्यम से सुरक्षित मातृत्व सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक देखभाल, चिकित्सा जांच, स्वास्थ्य सहायता और सरकारी पहल के बारे में जागरूकता को बढ़ावा दिया जाता है।

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से ही प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य गर्भवती महिलाओं को बच्चे के जन्म से पहले, जन्म के दौरान और बाद में देखभाल के बारे में जागरूक कराना है।

सुरक्षित मातृत्व दिवस पर स्वास्थ्य सचिव डा. आर. राजेश कुमार ने बताया कि प्रदेश में विभिन्न जनस्वास्थ्य प्रयासों के बाद, मातृ स्वास्थ्य संबंधित विभिन्न आंकड़ों में प्रगति दर्ज की गई है।

हाल ही में जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में गर्भवती महिलाओं को प्रथम तिमाही में पंजीकृत करने में 22 प्रतिशत की बढ़ोतरी (68.8 प्रतिशत), प्रसव पूर्व जांचों में 50 प्रतिशत बढ़ोतरी (61.8 प्रतिशत) एवं संस्थागत प्रसवों में 18 प्रतिशत बढ़ोतरी (83.2 प्रतिशत) दर्ज की गई है।

सचिव स्वास्थ्य ने कहा, राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस प्रदेश के विभिन्न चिकित्सालयों में मनाया गया है। साथ ही, इस दिन गर्भवती महिलाओं को चिकित्सकीय जांच, खान-पान तथा गर्भावस्था के दौरान एवं प्रसव के उपरान्त होने वाले जटिलताओं के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान की गई।

उन्होंने बताया, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार करना सरकार का प्राथमिक फोकस बना हुआ है। इसी के दृष्टिगत प्रदेश में प्रसूता के लिए ईजा-बोई शगुन योजना लागू की गई है, जिसके अन्तर्गत सरकारी अस्पतालों में जच्चा-बच्चा के सुरक्षित स्वास्थ्य के लिए प्रसव उपरान्त सरकारी अस्पताल में 48 घंटे तक रुकने वाली सभी पात्र प्रसूताओं को 2000 रुपये प्रोत्साहन धनराशि के रूप में दिए जाने हैं, जो कि जननी सुरक्षा योजना में दी जाने वाली प्रोत्साहन धनराशि रुपये 1400 (ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली गर्भवती महिला) एवं रुपये 1000 (शहरी क्षेत्र में रहने वाली गर्भवती महिला) के अतिरिक्त हैं।

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राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन कर रहे हैं। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते हैं। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन करते हैं।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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