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अंगूरफल को फंगल संक्रमण से बचाने के लिए नई पद्धति विकसित

उमाशंकर मिश्र 

संतरे (C. sinensis) और चकोतरे (C. maxima) के मेल से बना नींबूवंशीय (सिट्रस) संकर प्रजाति का अंगूरफल या ग्रेपफ्रूट (Citrus × paradisi) अपने खट्टे से लेकर खट्टे-मीठे और कुछ-कुछ कड़वे स्वाद वाले फल के रूप में जाना जाता है। अंगूर की तरह गुच्छों में विकसित होकर पेड़ से लटकने के कारण इसे अंगूरफल का नाम दिया गया है।

अंगूरफल के भंडारण में सबसे बड़ी कठिनाई है – फंगल संक्रमण, जो इस फल के उत्पादन, भंडारण, परिवहन और विक्रय से जुड़े लोगों के लिए एक प्रमुख चुनौती है। अंगूरफल में फंगल संक्रमण के लिए जिम्मेदार हरा फफूंद पेनिसिलियम डिजिटेटम फलों के पोषक तत्वों को खाने के लिए जाना जाता है, जिससे फल की तुड़ाई के बाद उसमें सड़न आने लगती है।

भारतीय वैज्ञानिकों समेत अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के एक संयुक्त अध्ययन में हरे फफूंद के संक्रमण के विरुद्ध खमीर (यीस्ट) के एक ऐसे प्रकार (स्ट्रेन) का परीक्षण किया गया है, जो स्वस्थ अंगूरफल पर प्राकृतिक रूप से पाया जाता है।

संक्रमण रोकने में कारगर प्राकृतिक यीस्ट के प्रभाव को बढ़ाने के लिए शोधकर्ताओं ने यीस्ट स्ट्रेन को कार्बोक्सी-मिथाइल-सेल्यूलोज के साथ मिलाया है। कार्बोक्सी-मिथाइल-सेल्यूलोज को, रक्षा प्रतिक्रियाओं को प्रेरित करके फलों को संक्रमण से बचाने के लिए जाना जाता है।

यह अध्ययन मैकेनिकल एवं मैन्यूफैक्चरिंग इंजीनियरिंग विभाग, मणिपाल प्रौद्योगिकी संस्थान, मणिपाल उच्च शिक्षा अकादमी, कर्नाटक और चीन की साउथवेस्ट फॉरेस्ट्री यूनिवर्सिटी, गुआंगज़ौ यूनिवर्सिटी, झेंग्झौ यूनिवर्सिटी और अमेरिका की टेनेसी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है। अध्ययन के निष्कर्ष शोध पत्रिका इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल मैक्रोमॉलिक्यूल्स में प्रकाशित किए गए हैं।

मणिपाल प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्ता नीतेश नाइक के अनुसार, “इस अध्ययन के दौरान स्वस्थ अंगूरफल से सूक्ष्मजीवों को अलग करके उनका संवर्द्धन (कल्चर) किया गया है और यह जानने का प्रयास किया गया है कि वे हरे फफूंद के संक्रमण को रोकने में कितने प्रभावी हो सकते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान पाँच सूक्ष्मजीव प्रजातियों का परीक्षण हरे फफूंद के विरुद्ध किया गया है। इनमें से क्राइप्टोकोकस लॉरेन्टी को हरे फफूंद के संक्रमण के खिलाफ सबसे अधिक प्रभावी पाया गया है।”

शोधकर्ताओं का कहना है कि कई फफूंद प्रजातियों द्वारा कार्बोक्सी-मिथाइल-सेल्यूलोज का उपयोग कार्बन स्रोत के रूप में नहीं किया जाता है। लेकिन, अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि 01% पॉलिमर सॉल्यूशन में मिलाए जाने पर क्राइप्टोकोकस लॉरेन्टी एक जैविक फिल्म या परत का निर्माण कर सकता है।

इसके साथ ही, शोधकर्ताओं ने हरे फफूंद पेनिसिलियम डिजिटेटम को संक्रमित अंगूरफल से अलग करके उसकी पतली परत पर कार्बोक्सी-मिथाइल-सेल्यूलोज एवं क्राइप्टोकोकस लॉरेन्टी के मिश्रण की विभिन्न मात्राओं का परीक्षण किया है। जब शोधकर्ताओं ने अंगूरफल को मिश्रण के साथ लेपित किया, तो उन्होंने देखा कि चिटिनेज जैसे एंजाइम का उत्पादन होता है, जो कवक में चिटिन की रक्षा परत उधेड़कर बीटा-ग्लूकेनेस कवक की कोशिका दीवारों को तोड़ते हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि यह मिश्रण पेरोक्सीडेज गतिविधि को बढ़ाता है और फल की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार करता है। मिश्रण से उपचारित फलों के वजन में कम गिरावट देखी गई है। शोधकर्ताओं के अनुसार इसके उपयोग से अंगूरफल के पोषण को 28 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

इस अध्ययन के निष्कर्षों में अभी यह स्पष्ट नहीं है कि पेनिसिलियम डिजिटेटम फफूंद दूसरे फलों को किस तरह प्रभावित करता है। शोधकर्ताओं की रुचि यह जानने में भी है कि कार्बोक्सी-मिथाइल-सेल्यूलोज एवं क्राइप्टोकोकस लॉरेन्टी का मिश्रण, फलों में दूसरे फंगल संक्रमण के उपचार में किस हद तक उपयोगी हो सकता है। – इंडिया साइंस वायर

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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