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हाथी और दोस्तों की तलाश

एक दिन एक हाथी दोस्तों की तलाश में जंगल में घूम रहा था। उसने एक पेड़ पर एक बंदर को देखा। बंदर पेड़ों की शाखाओं पर झूल रहा था। हाथी ने उससे पूछा, क्या तुम मेरा दोस्त बनना चाहोगे। बंदर ने कहा, तुम बहुत बड़े हो और मेरी तरह पेड़ों की शाखाओं पर झूला नहीं झूल पाओगे। इसलिए हम एक दूसरे के दोस्त नहीं हो सकते।

हाथी निराश होकर खरगोश के पास पहुंचा। उसने खरगोश से कहा, क्या तुम मुझे अपना दोस्त बनाओगे। खरगोश ने कहा, मैं आकार में तुमसे बहुत छोटा हूं। मैं अपने बिलों में खेलता हूं। तुम वहां नहीं आ पाओगे। इसलिए मेरी तुम्हारे से दोस्ती नहीं हो सकती, सॉरी। हाथी ने हार नहीं मानी और जंगल में दोस्त बनाने के अभियान को जारी रखा। रास्ते में उसको मेंढ़क मिला। उसने मेंढ़क से कहा, क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे।

मेंढ़क ने जवाब दिया, क्या तुम मेरी तरह पानी में छलांग लगा सकते हो। हाथी ने कहा, यह मेरे से नहीं हो सकता। मेंढ़क बोला, तो तुम मेरे साथ कैसे खेलोगे। इसलिए मेरी और तुम्हारी दोस्ती सही नहीं रहेगी। हाथी ने अब सियार से बात की। उसने सियार से पूछा, क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे। सियार ने कहा, तुम कितने बड़े हो। इसलिए मैं तुम्हारा दोस्त नहीं हो सकता। एक दिन हाथी दोस्त बनाने के अभियान में लगा था कि अचानक छोटे बड़े जानवरों को दौड़ते हुए देखा।

उसने अपने नजदीक से होकर दौड़ रहे भालू से पूछा, क्या कोई बताएगा, इस जंगल में यह क्या हो रहा है। हर कोई दौड़ता चला जा रहा है। भालू ने कुछ देर रुककर उसे बताया, तुम्हें मालूम नहीं है, बाघ का मूड़ खराब हो गया है और वह जानवरों पर हमला कर रहा है। हम सभी उससे बचने के लिए छिप रहे हैं।  हाथी ने सोचा कि वह जंगल में किसी को दोस्त तो नहीं बना सकता, लेकिन मदद तो कर सकता है। क्यों न जानवरों की बाघ वाली समस्या को हल किया जाए।

उधर, बाघ जिस भी जीव को देख रहा था, उस पर हमला कर रहा था। हाथी वहीं रुक गया। थोड़ी देर में बाघ वहां पहुंच गया। हाथी ने उससे कहा, यह क्या कर रहे हो। अपने से कमजोर जानवरों का शिकार कर रहे हो। तुम्हें शर्म नहीं आती। इन जीवों को मत खाओ। बाघ ने जवाब दिया, तुम अपने काम पर ध्यान दो। तुम मुझे नहीं जानते। चले जाओ, यहां से वरना…। तुम्हें भी मार दूंगा। हाथी को गुस्सा आ गया। उसने बाघ को एक किक मारी और वह फुटबाल की तरह उछलता हुआ दूर जा गिरा।

बाघ की पसलियां टूट गईं और वह दर्द में कराहने लगा। हाथी ने कहा, भाग जाओ यहां से। ध्यान रहे किसी भी कमजोर जानवर पर हमला किया तो तुम्हारी खैर नहीं। बाघ के भागने के बाद सभी जानवर हाथी के पास पहुंचे और उसका शुक्रिया अदा किया। हाथी ने कहा, कोई बात नहीं। तुम मेरे दोस्त नहीं बन सकते, पर मुझे अपने दुख सुख में तो शामिल कर सकते हो। इतने में भालू बोला, कौन कहता है कि तुम हमारे दोस्त नहीं हो। तुम ही हमारे दोस्त बनने के लायक हो।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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