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कोविड अस्पतालों को 50 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाएगीः मुख्यमंत्री

  • चिकित्सक व स्वास्थ्यकर्मी हमारे फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स हैं, इनकी संक्रमण से सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकताः सीएम

देहरादून। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने घोषणा की कि जिस कोविड अस्पताल में कोरोना वारियर्स स्वयं को संक्रमण से बचाते हुए कोविड-19 से संक्रमित लोगों का इलाज कर रहे हैं, उस अस्पताल को 50 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी।

उन्होंने कहा कि सभी अस्पतालों में कोरोना वारियर्स को मानकों के अनुरूप संक्रमण से बचने के लिए आवश्यक सुरक्षात्मक उपकरण उपलब्ध कराए जा रहे हैं। फिर भी अस्पताल अपने यहां कार्यरत चिकित्साकर्मियों और स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए और प्रेरित होंगे। इससे कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अग्रिम पंक्ति में डटे हमारे चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों का भी मनोबल बढ़ेगा। राज्य सरकार अपने हर कोरोना वारियर्स के साथ है।

मुख्यमंत्री रावत ने कहा है कि कोविड अस्पतालों में हर तरह की सावधानी रखी जाए। चिकित्सक व स्वास्थ्यकर्मी हमारे फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स हैं। इनकी संक्रमण से सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता से लिया जाए। हमारे चिकित्सक और स्वास्थ्यकर्मी, कोविड-19 से संक्रमित व्यक्तियों का इलाज तभी कर सकते हैं, जब वे स्वयं सुरक्षित रहें।

उन्होंने कहा कि कोरोना वारियर्स स्वयं के जीवन को खतरे में डालते हुए पूरी निष्ठा और तत्परता से अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। हमें अपने इन वारियर्स पर गर्व है। हमारा भी दायित्व है कि ये स्वस्थ रहें और सुरक्षित रहें। इनके लिए कार्यस्थल पर समुचित सुरक्षागत उपकरण की व्यवस्था सुनिश्चित हो।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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