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युवा बोले, कृषि प्रौद्योगिकी में महिला कृषकों की आवश्यकताएं जानना जरूरी

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की कृषि में महिलाओं का योगदान महत्वपूर्ण है, इसलिए कृषि प्रोद्यौगिकी  को उनके अनुकूल डिजाइन करने की जरूरत है। महिला कृषक यानी उपयोगकर्ताओं से यह जानना बहुत आवश्यक है कि उन्नत कृषि में उनके समक्ष क्या समस्याएं आ रही हैं।

मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड एवं पंजाब के विश्वविद्यालयों के कृषि विभाग के छात्र-छात्राओं ने बुधवार (4 अगस्त 2021) को उत्तराखंड के देहरादून जिला स्थित सिमलास ग्रांट में इस मुद्दे पर चर्चा की। कृषि को व्यवहारिक रूप से जानने के लिए 100 छात्र-छात्राओं के दो दल यहां पहुंचे।

दल ने मां श्रीमती कौशल्या बोरा फाउंडेशन के संस्थापक प्रगतिशील किसान उमेद बोरा के सहयोग एवं कृषि अध्ययन संस्थान प्लांटिका (Plantica) के संस्थापक डॉ. अनूप बडोनी के मार्गदर्शन में किसानों से मुलाकात की।

भ्रमण के दौरान छात्र-छात्राओं ने डुगडुगी से वार्ता में भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप कृषि पद्धतियों, किसानों को तकनीकी सहयोग, समय एवं मांग के अनुरूप कृषि के बदलते स्वरूप, कम होती कृषि भूमि, उपज की बाजार तक पहुंच के लिए स्टार्टअप एवं सूचना तकनीकी के योगदान पर बात की।

छात्र-छात्राओं ने उन्नत तकनीकी तथा शोध एवं अनुसंधान से कृषि को प्रगतिशील व्यवसाय का स्वरूप देने, विशेषकर युवाओं का कृषि के प्रति लगाव बढ़ाना, कम जोत वाले किसानों के लिए कृषि से संबंधित अन्य विकल्पों, कृषि संबंधी आजीविका के विभिन्न स्रोतों, भूमि की उर्वरकता, सिंचाई के संसाधनो आदि पर फोकस किया।

चर्चा के दौरान संस्कृति विश्वविद्यालय, मथुरा की छात्रा काजल राज ने कहा कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि के समक्ष चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि भौगोलिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि किसान मैन्युअल फार्मिंग (Manual Farming) ज्यादा करते हैं। कृषि यंत्रों का इस्तेमाल कम होता है।

छात्र-छात्राओं ने विशेषकर उत्तराखंड जैसे पर्वतीय क्षेत्रों के संदर्भ में इस बात पर सहमति व्यक्त की, कि कृषि यंत्रों को उनकी उपयोगकर्ता यानी महिलाओं की आवश्यकताओं के अनुरूप डिजाइन किया जाना चाहिए। कृषि प्रौद्योगिकियों पर शोध एवं अनुसंधान करते समय महिलाओं से परामर्श करना बहुत आवश्यक है।

कृषि टूल्स का वजन कम होना चाहिए, ताकि इनको आसानी से ट्रांसपोर्ट किया जा सके। छात्र राहुल का कहना है कि कृषि प्रौद्योगिकी को उसके उपयोगकर्ता एवं भौगोलिक स्थितियों के अनुरूप होना चाहिए।

प्रगतिशील कृषक उमेद बोरा ने छात्र-छात्राओं को वर्मी कम्पोस्ट और किचन गार्डनिंग के बारे में बताया। फोटो- सार्थक पांडेय

उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में कृषकों के समक्ष चुनौतियों पर बात करते समय भ्रमण दल का कहना था कि यहां खेती के लिए पानी की कमी बड़ी चिंता है। अधिकतर खेती वर्षा आधारित है और सीढ़ीदार कृषि की वजह से पानी रूक नहीं पाता। वहीं Soil erosion भी बड़ी दिक्कत है।

उत्तराखंड में बागवानी उत्पादों की बाजार तक पहुंच के लिए सुनियोजित व्यवस्था के संबंध में छात्र राहुल कहते हैं कि इसमें कई स्टार्टअप काम कर रहे हैं। वहीं छात्र- छात्राओं ने कृषि उत्पादों की मार्केटिंग कंपनियों से तालमेल, सूचना तकनीकी तथा परिवहन व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए सड़कों के निर्माण पर बात की। उन्होंने कांट्रेक्ट फार्मिंग पर भी फोकस किया।

कृषि के छात्रों ने किया सिमलास ग्रांट का भ्रमण और किसानों से बात की।

कुछ छात्रों ने कांट्रेक्ट फार्मिंग (Contract Farming) को किसानों के हित में बताया और कुछ ने इसको किसानों के लिए सही करार नहीं दिया। छात्रा काजल का कहना था कि कांट्रेक्ट फार्मिंग सही है।

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इसको और बेहतर बनाया जा सकता है, अगर इसमें किसानों और बिजनेसमैन के बीच ग्राम पंचायत के मुखिया को भी जोड़ा जाए। काजल ने कांट्रेक्ट फार्मिंग के पक्ष में कहा कि किसान और बिजनेसमैन के बीच पहले ही फसल का रेट तय हो जाता है। अगर फसल खराब हो जाए, तब भी उसी रेट पर फसल का उठान होता है।

उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के विश्वविद्यालयों से आए कृषि विभाग के छात्र-छात्राएं।

उनका यह भी कहना है कि पर, इसमें बिजनेसमैन की तरफ विवाद भी हो सकता है, अगर वो खराब फसल न उठाएं और कांट्रेक्ट को मानने से मना कर दें। विवाद की इस स्थिति में ग्राम पंचायत के हेड की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। वो किसान के हित में मामले को कानूनी प्रक्रिया के दायरे में लाने में सहयोग कर सकेंगे।

छात्र मंजर अहमद बताते हैं कि एक कंपनी चिप्स के लिए आलू खरीदती है, वो किसान को पहले ही आलू का साइज बता देती है। उत्पादन के समय किसान से उसी विशेष साइज के आलू लेती है, बाकि उपज वो किसान के पास ही छोड़ देते हैं। यहां किसान को नुकसान हो सकता है।

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कम भूमि वाले किसानों की आय को कैसे बढ़ाया जाए, कृषि भूमि को अधिक प्रोडक्टिव कैसे बनाया जाए, पानी की कमी की स्थिति में क्या किया जाए,  पर भी बात की गई।

बिहार से आए छात्र मोहम्मद मंजर आलम ने पानी की कमी पर सुझाव दिया कि कृषि भूमि के पास जल संग्रहण के उपाय किए जाएं। बूंद बूंद सिंचाई यानी जितनी आवश्यकता है, के अनुरूप पौधों को पानी दिया जाए।

सिमलास ग्रांट में इंटीग्रेटेड फार्मिंग कर रहे किसान सुरेंद्र सिंह बोरा से बात करते छात्र। फोटो- सार्थक पांडेय

छात्र राहुल ने वर्टिकल फार्मिंग (Vertical farming),हाइड्रोपॉनिक्स (Hydroponics), एक्वापॉनिक्स (Aquaponics) की सलाह दी। छात्र हरेंद्र सिंह कौशल ने मिश्रित फसल (Mix cropping) पर भी फोकस किया।

छात्र मंजर आलम ने कृषि भूमि के चारों तरफ सागौन के पेड़ लगा सकते हैं, जो आठ से दस साल में अच्छी आय देते हैं। छात्रों ने परंपरागत कृषि के तौर तरीको में पर्यावरण एवं विज्ञान सम्मत बदलावों की पैरवी की।

छात्र दल ने इस बात पर सहमति व्यक्त की, कि कृषि भूमि को बेचने से किसी को फायदा नहीं बल्कि नुकसान ही हुआ है।

दल ने बताया कि मृदा यानी मिट्टी की जांच क्यों जरूरी है। सर्वे करने के दौरान किसानों को बताया कि फसल उगाने से पहले मिट्टी का परीक्षण करना बहुत आवश्यक है। इससे भूमि में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश आदि तत्वों और लवण की मात्रा व पीएच मान पता चलता है।

इसके साथ ही, भूमि की भौतिक बनावट की भी जानकारी मिलती है। जिस फसल को बोना है, उसमें खाद की कितनी मात्रा डालनी है, तथा भूमि को कितनी मात्रा में सहायक रसायन की जरूरत है या नहीं।

उन्होंने किसानों को मिट्टी परीक्षण के लिए नमूना लेने के समय, नमूना लेने की विधि एवं सावधानियों तथा मिट्टी के नमूनों को लैब में भेजने की प्रक्रिया के बारे में बताया और लिखित सामग्री उपलब्ध कराई।

आईटीएम यूनिवर्सिटी, ग्वालियर के छात्र हरेंद्र सिंह कौशल ने बताया कि भ्रमण के दौरान प्राप्त जानकारियों को विभिन्न क्षेत्रों में किसानों के साथ साझा करेंगे। हम उनको इंटीग्रेटेड फार्मिंग की प्रक्रिया एवं इससे होने वाले लाभ पर चर्चा करेंगे।

इस दौरान छात्रों के दल ने सिमलास ग्रांट में किसान बहादुर सिंह बोरा एवं सुरेंद्र सिंह की इंटीग्रेटेड फार्मिंग का भ्रमण किया, जिसमें मुर्गी पालन, बत्तख पालन एवं कृषि के बीच सामंजस्य को समझा और यह जाना कि ये एक दूसरे पर कैसे निर्भर करते हैं और कृषि में लागत को कैसे कम किया जा सकता है।

छात्रों के दल ने सुसवा तट से प्लास्टिक कचरा इकट्ठा किया।

छात्र-छात्राओं ने सुसवा नदी के किनारे पर फैले पॉलिथीन कचरे को साफ किया। उन्होंने सुसवा नदी में प्रदूषण के कारणों को जाना। साथ ही, इस बात पर चर्चा की, कि किसी नदी के नाले में तब्दील हो जाने से आसपास की खेती एवं जैव विविधता पर असर पड़ता है।

पत्रकार राजेश पांडेय ने सुसवा में प्रदूषण के कारणों और इससे खेती को नुकसान पर बात की।

इस मौके पर भ्रमण दल और किसानों के बीच एक गोष्ठी भी हुई, जिसमें प्लांटिका के संस्थापक डॉ. बडोनी ने ग्राम भ्रमण का उद्देश्य बताया। उन्होंने दल को सर्वे के नियमों की जानकारी दी।

डॉ. अनूप बडोनी, संस्थापक प्लांटिका फाउंडेशन, देहरादून

उन्होंने बताया कि सिमलासग्रांट में इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम बहुत अच्छा और लाभकारी है। उत्तराखंड के लिए तो एकीकृत खेती तो आय को लगभग दोगुना हो जाएगी। यह क्राप एटीएम है, जो सालभर आपकी आय को बरकरार रखेगी। सिमलास ग्रांट में 50-50 छात्रों के दो दल आए हैं। इनमें पहले बैच में मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश तथा दूसरे बैच में ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी उत्तराखंड व पंजाब से छात्र आए हैं।

उन्होंने बताया कि प्लांटिका की स्वयं की सॉयल टेस्टिंग लैब है। किसान वहां मिट्टी की जांच करा सकते हैं। मिट्टी की जांच से पता चल जाता है कि उसमें पोषक तत्वों की कितनी मौजूदगी है, उसी अनुपात में फसल में पोषक तत्व डाले जाएं। डॉ. बडोनी ने कहा कि हम सिमलास ग्रांट के किसानों को कृषि संबंधी प्रशिक्षण एवं जानकारियां उपलब्ध कराते रहेंगे। हमारे साथ वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक और विशेषज्ञ हैं, जो किसानों को सलाह देते रहेंगे।

प्लांटिका फाउंडेशन, देहरादून ने किसानों को स्मृति चिह्न प्रदान किया।

कृषक उमेद बोरा ने जैविक बासमती की खेती से जुड़े अनुभवों तथा फाउंडेशन के कार्यों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि सिमलास ग्रांट में अधिकतर परिवारों में किसान और सैनिक हैं। उनके बेटे ने दो दिन पहले ही सेना में ज्वाइनिंग दी है। फाउंडेशन मेधावी छात्र-छात्राओं को सहयोग करता है।

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प्रगतिशील किसान दरपान बोरा ने छात्र दल का स्वागत करते हुए दूधली घाटी में कृषि में संभावनाओं और चुनौतियों पर बात की।

कृषक नारायण सिंह बोरा ने छात्र दल को शुभकामनाएं दीं। दुग्ध उत्पादक संघ के पदाधिकारी भगवान दास ने क्षेत्र में पशुपालन के बारे में बताया।

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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