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आरुषि मर्डर केसः तलवार दंपति हाईकोर्ट से बरी

इलाहाबाद। देश के सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री में सीबीआई कोर्ट से आजीवन कारावास की सजा पाए तलवार दंपति को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले को पलटते हुए तलवार दंपति को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया है। इस मर्डर मिस्ट्री में सीबीआई की विशेष अदालत ने आरुषि के मां-बाप को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। फिलहाल राजेश तलवार और नुपुर तलवार हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं।

इस दंपति ने सीबीआई अदालत के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की थी, जिस पर हाईकोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाते हुए उनको बरी करने का आदेश दिया है। तलवार दंपति की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सितंबर 2016 से सुनवाई चल रही थी। हाईकोर्ट ने केस में 12 अक्टूबर 2017 को फैसला सुनाने की तिथि निर्धारित की थी। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि जांच के दौरान सीबीआई तलवार दंपति के खिलाफ ऐसे सबूत पेश नहीं कर पाई जिसमें उन्हें सीधे दोषी माना जा सके।

16 मई 2008 को आरुषि तलवार का खून से लथपथ शव नोएडा में उसके घर के बैडरूम में मिला। उसके गले पर गहरा जख्म था। 17 मई की सुबह घर के नौकर हेमराज का भी खून से लथपथ शव आरूषि के घर की छत पर पड़ा हुआ मिला। 18 मई को पुलिस ने अपनी प्राथमिक जांच में कहा कि दोनों की हत्या सर्जरी के लिए प्रयुक्त उपकरण के जरिए की गई है। 19 मई को राजेश तलवार के पूर्व नेपाली नौकर विष्णु शर्मा को संदिग्धों में शामिल किया गया। 21 मई को दिल्ली पुलिस ने इस मामले में हत्या के एंगल से जांच शुरू की थी। 25 नवंबर 2013 को गाजियाबाद की स्पेशल सीबीआई अदालत ने तलवार दंपति को दोषी पाया। 26 नवंबर 2013 को सीबीआई कोर्ट ने आरुषि-हेमराज की हत्या के मामले में दंपति को दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 12 अक्टूबर 2017 को सबूतों के अभाव में संदेह का लाभ देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलवार दंपति को मामले में बरी कर दिया।

Aarushi murder mistry

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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