- डॉ. आशुतोष तिवारी (सहायक आचार्य)
न्यूरोलॉजी विभाग एम्स, ऋषिकेश - यह लेख एम्स ऋषिकेश की पत्रिका स्वास्थ्य चेतना में प्रकाशित हुआ है।कई मरीजों को उनके चिकित्सक बताते हैं कि उनको होने वाले दिमागी दौरों (झटके या मिर्गी) का कारण दिमागी कीड़ा या उसके अंडे हैं। आइए विस्तार से जानते हैं इसके बारे में, यह कैसे हमारे दिमाग में पहुंचते हैं और इससे बचने के उपाय एवं उपचार क्या हैं?दिमागी कीड़ा यह एक तरह का इन्फेक्शन है, जो हमारे शरीर में रक्त संचारण के माध्यम से प्रवेश करता है। यह टीनिया सोलियम नामक पैरासाइट या उसके लार्वा या अंडे जो मनुष्य के पेट में होते हैं। उनके द्वारा शरीर में प्रवेश करता है।1. यह कीड़ा प्रायः गंदे पानी, आधी पकी या बिना धुली सब्जियों के खाने से शाकाहारी लोगों में तथा आधा पका हुआ मांस (प्रायः सुअर का मांस) खाने से मांसाहारी लोगों के पेट में हो जाता है।
2. यह कीड़ा संक्रमित व्यक्ति के मल द्वारा (खुले में शौच करने पर) आस पास के पानी सब्जियों, फल एवं अन्य खाद्य पदार्थों में पहुंच जाता है।
3. संक्रमित खाद्य पदार्थों के सेवन से यह परिवार के अन्य लोगों या आसपास के लोगों को भी संक्रमित कर सकता है। अगर पानी व खाद्य पदार्थों को अच्छे से उबाल कर प्रयोग किया जाए तो यह कीड़ा या उसके अंडे या लार्वा मर जाता है। खुले में शौच बन्द करके इसे फैलने से रोका जा सकता है।
अन्य उपाय:-
देश के कई क्षेत्रों के स्कूलों में सरकार बच्चों को पेट के कीड़े मारने वाली दवा की खुराक देती है।
सुअर पालन वाले क्षेत्रों में कीड़े मारने की दवाई दी जाती है।मरीज के लक्षण –
प्रायः मरीज को सिरदर्द, दौरे आना, बेहोश होना, जैसे लक्षण हो सकते हैं। साथ ही पेट में कीड़े होने के लक्षण, जैसे कि पेट में दर्द, उल्टी, खाना न पचना व पेट खराब रहना आदि लक्षण भी हो सकते हैं।
जाँच एवं इलाज –
इन जांच से दिमाग में कीड़े का पता लगाया जा सकता है जैसे कि “सिटी स्कैन या एम. आर. आई तथा खून व सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (सी.एस.एफ) का परीक्षण।
मरीज़ों में दिखने वाले लक्षणों जैसे कि सिर दर्द, दौरे या सूजन को कम करने के लिए डॉक्टर द्वारा दवाई दी जाती है। दवाई की मात्रा को विभिन्न शारीरिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दी जाती है।
कभी-कभी मस्तिष्क के चारों ओर बहने वाला सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (सी.एस.एफ) रुकने एवं अन्य कारणों के चलते दिमाग की सर्जरी भी करनी पड़ सकती है।
कैसे बचें-
1. खुले में शौच ना करें एवं शौच के बाद हाथ और पैर अच्छे से धोएं।
2. साफ पानी प्रयोग करें। अगर साफ पानी न मिलें तो पानी को उबाल कर ही पीने के लिए प्रयोग करें।
3. खाद्य पदार्थों, विशेषकर जमीन में उगने वाली सब्जियों एवं फलों को अच्छी तरह धोकर ही खाएं।
4. खाने से पहले हाथ जरूर धोएं।
- एम्स ऋषिकेश के न्यूरोलॉजी विभाग में सहायक आचार्य डॉ. आशुतोष तिवारी का यह लेख एम्स ऋषिकेश की पत्रिका स्वास्थ्य चेतना में प्रकाशित हुआ है। स्वास्थ्य चेतना पत्रिका का प्रकाशन एम्स ऋषिकेश की आउटरीच सेल द्वारा किया जा रहा है।
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