दिल्ली की नौकरी हो या राजनीतिक दल से जुड़ना, ज्यादा सुकून तो अपनी इस दुकान में है
भोगपुर - इठारना रोड पर मानकी में चाय और खानपान की दुकान
डोईवाला। राजेश पांडेय
55 साल के श्याम सिंह रावत देहरादून जिले के भोगपुर इठारना रोड पर चाय और खानपान की दुकान चलाते हैं। दिल्ली में लगभग 18 साल रहकर नौकरियां कीं। वापस लौटे तो खेतीबाड़ी और राजनीतिक दल के लिए काम करने लगे, पर उनका कहना है, जो सुकून अपनी इस दुकान में काम करने से मिलता है, वो कहीं ओर नहीं है। राजनीतिक दल के प्रचार में, खासकर चुनाव के दौरान कई दिन तक घर ही नहीं लौटते थे।
भोगपुर से इठारना रोड पर करीब पांच किमी. दूरी पर मानकी गांव है, जहां श्याम सिंह की दुकान है। वो चाय, खाना, चाउमीन, आमलेट बनाते हैं।
बताते हैं, “यह रूट हमेशा चलता है, रात को भी। रात को ड्यूटी करने वाले लोग यहां से होकर इठारना की ओर बढ़ते हैं। खेतीबाड़ी के साथ स्थानीय लोग देहरादून, जौलीग्रांट, लालतप्पड़ में विभिन्न संस्थानों में काम करते हैं।”
“सुबह छह बजे दुकान खोलता हूं और शाम को वापस जाने का कोई समय नहीं है। जब कभी ज्यादा रात हो जाती है तो यहीं बिस्तर बिछा है।”
श्याम सिंह ने बताया, “दसवीं करने के बाद कामधंधे की तलाश में दिल्ली चला गया। वहां मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि जानने वाले लोग बहुत थे। 1987 में दिल्ली पहुंचकर नौकरी की।”
“डीटीसी की बस का किराया 50 पैसे होता था उस जमाने में। गारमेंट एक्सपोर्ट करने वाली कंपनी में सेवाएं दीं। दिल्ली की हर सड़क, इलाके को जानता हूं, क्योंकि मेरा काम फील्ड का था। पहली नौकरी 400 रुपये प्रतिमाह पर की। कई नौकरियां छोड़ीं। जहां तनख्वाह ज्यादा मिलती, वहीं काम शुरू कर देते।”
“घर की परिस्थितियों की वजह से 2005 में वापस घर लौटना पड़ा। घर तो घर होता है, दुनिया घूम लो, पर सुकून अपने घर में मिलता है।”
“मैंने दिल्ली छोड़ दिया और फिर यहां खेतीबाड़ी करने लगा। यहां अदरक खूब होती है। राजनीतिक दल से जुड़ गया। चुनाव के समय तो कई कई दिन घर से बाहर रहते। पार्टी के प्रचार प्रसार में लगे रहते।”
“दो साल पहले ही यहां दुकान खोलने का विचार बना। सड़क किनारे चाय, खाने की डिमांड थी। यह काम ठीक चल रहा है। इठारना घूमने आने वाले लोगों के साथ ही, स्थानीय लोग भी इस रोड से आते जाते रहते हैं। शनिवार, रविवार को तो कई बार ऐसा होता है, हमें खुद खाना खाने की फुर्सत नहीं मिलती।”
“तीन बेटियां हैं, तीनों की शादी कर दी। अपनी इस दुकान से घर का गुजारा अच्छे से हो जाता है। रही बात, राजनीति की, तो चर्चाएं तो चाय की दुकान पर ही होती हैं।”