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बचपन की बातेंः मैथ की बुक देखकर न, मुझे कुछ घबराहट हो जाती थी

सब बच्चे अगली क्लास में पहुंचकर बहुत खुश हैं। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मैं भी बहुत खुश होता था। रिजल्ट आया नहीं कि मुझे तो बस, नई किताबों का इंतजार रहता था।

पापा के साथ साइकिल पर बैठकर  किताबें, कॉपिया, बस्ता, पेंसिल बॉक्स खरीदने के लिए दुकान पर जाता था। 1985 यानी 35 साल पहले की बात कर रहा हूं आपसे। उस समय साइकिल पर ही सवारी होती थी। वैसे मुझे तो पैदल पैदल चलने में बड़ा मजा आता था।  नई किताबें किसको अच्छी नहीं लगती, मुझे भी अच्छी लगती थीं।

घर पर पहुंचते ही किताबों और कॉपियों के बंडल को खोल देता था। लगता था बस सबकुछ पढ़ लो… एकदम। बार-बार किताबों के पन्ने पलटते रहता था। आज भी बच्चों की किताबों को देखता हूं तो बचपन में लौट जाता हूं। कई तरह के रंगों वाले चित्र देखकर मुझे लगता है कि बस फिर से क्लास वन, टू, थ्री का स्टूडेंट बनकर इन किताबों के पन्ने पलटता रहूं।

इंगलिश, हिन्दी, संस्कृत, सोशल स्टडी…तक तो ठीक था, पर मैथ की बुक…। सच बताऊं, मैथ की बुक देखकर न, मुझे कुछ घबराहट हो जाती थी। पर, मैडम जी ने बताया कि मैथ सबसे आसान है। बस लगातार अभ्यास करना होगा। सवाल को ठीक उसी तरह सॉल्व करना है, जैसे हम सीढ़ियां चढ़ते हैं। मुझे याद है, मैंने पूछा था, मेरे घर की सीढ़ियों का मैथ से क्या लेना।

मैडम ने बताया कि छत पर जाने के लिए क्या करते हो। मैंने कहा, सीढ़ियों पर चढ़ते जाओ, छत पर पहुंच जाओगे। उन्होंने पूछा, क्या पहली सीढ़ी के बाद एक दम तीसरी, चौथी सीढ़ी पर पैर रख देते हो। मैंने कहा, ऐसा करूंगा तो चोट लग सकती है, गिर सकता हूं। पहली बात तो पहली के बाद तीसरी सीढ़ी तक मेरे पैर ही नहीं जा पाएंगे।

मैडम ने पूछा, क्या करना चाहिए सीढ़ियां चढ़ने के लिए। मैंने जवाब दिया, पहली, दूसरी और फिर तीसरी… सीढ़ी को चढ़ना चाहिए। मैडम ने कहा, यही तो मैथ में होता है। किसी भी सवाल को सॉल्व करने के लिए उसके नियमों को जानना जरूरी है और फिर एक के बाद एक स्टेप पर बढ़ना होता है।

मैथ में पहले वन डिजीट की काउंटिंग और फिर टेन से टू डिजीट की काउंटिंग सिखाई जाती है। इसके बाद जोड़ना, घटाना, गुणा (मल्टीप्लाई), भाग (डिवीजन) सिखाया जाता है। अगर, हम सबसे पहले डिवीजन और उसके बाद मल्टीप्लाई सिखाएं तो यह सही नहीं होगा। घटाना पहले नहीं सिखाया जा सकता, जब तक कि हमें जोड़ना न आए। यह इसलिए क्योंकि मैथ नियमों और स्टेप्स पर चलता है।

अरे, यह मैं कहां खो गया, बात किताबों की कर रहा था, मैथ पढ़ाने लगा। आपको बताऊं, मैथ सब्जेक्ट ही ऐसा है कि जो इससे लगाव रखता है, वो इसका ही हो जाता है। एक के बाद एक सवाल करने का मन करेगा, अगर इसके नियमों और स्टेप्स को समझ जाओगे। मैथ में थोड़ा सा मन लगा लो, आपको कहीं दिक्कत नहीं होगी। दिक्कत होती है तो टीचर से बात करो, प्रॉब्लम सॉल्व।

ओह! मैं तो यह भूल ही गया कि स्कूल तो बंद हैं, टीचर कहां मिलेंगी। इन दिनों तो आपको घर से बाहर भी नहीं जाना चाहिए। कोरोना वायरस से बचने के लिए लॉकडाउन चल रहा है।

हां… याद आया, याद आया… आप तो टीचर से बात कर सकते हो। आपकी टीचर से आपको घर से पढ़ा रही हैं, ऑनलाइन क्लास में। कैसी चल रही है ऑनलाइन क्लास। आपके तो मजे होंगे, घर बैठे ही पढ़ाई। कहीं भी नहीं जाना, क्लास घर में ही लग रही है। मम्मी, पापा, दीदी, भैया… भी आपके साथ क्लास में बैठ सकते हैं। डिजीटल क्लास का आनंद ही कुछ और है।

 क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप क्लास में ही ब्रेकफास्ट कर रहे होते हो। मान लिया कि ब्रेक फास्ट नहीं किया पर चाय तो पी होगी। इसमें छिपाने को कोई बात ही नहीं है। ऑनलाइन क्लास में चाय पी सकते हो, पर ध्यान रहे…टीचर जो समझा रही हैं, उनको ध्यान से सुनो। अपनी कॉपी में नोट भी कर सकते हो, जब टीचर कहें।

मैंने तो कभी ऑनलाइन पढ़ाई नहीं की, क्योंकि जब मैं पढ़ता था, तब मोबाइल फोन नहीं थे। जब मैं क्लास 6 में था, तब तक तो यह सोच भी नहीं सकते थे कि ऐसा मोबाइल फोन भी हो सकता है, जिसके कुछ बटन दबाते ही हम पूरी दुनिया से  जुड़ जाएंगे। मुझे कंप्यूटर के बारे में भी नहीं पता था। टाइप राइटर पर टाइपिंग होते हुए देखी थी मैंने। मेरे पापा के पास आफिस में एक टाइप राइटर था,  जिस पर वो लेटर टाइप करते थे। ऑफिस में काम ज्यादा होने पर उसको घर ले आते थे और फिर टक-टक की आवाज बताती थी कि पापा कुछ टाइप कर रहे हैं।

बात करते करते मैं फिर से पुराने दिनों में लौट गया। हां तो मैं बात कर रहा था ऑनलाइन क्लास की। मोबाइल फोन, इंटरनेट डाटा की मेहरबानी से चल रही ऑनलाइन क्लास ने आपकी पढ़ाई को गति दी है। स्कूल बंद हैं तो क्या पढ़ाई तो नहीं रुक रही। मानता हूं, कुछ परेशानियां हो रही होंगी। कभी इंटरनेट की स्पीड नहीं मिल रही होगी तो कभी मोबाइल फोन पर दीदी और भैया भी ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे होंगे। घर में रखे लैपटॉप, डेस्कटॉप सब बिजी हो गए आपको पढ़ाने के लिए। इसलिए आपको अपनी पढ़ाई में ध्यान लगाना है और भविष्य को उज्ज्वल करना है।

अभी के लिए बस इतना ही…अगली बार आपसे और भी बहुत सारी बातें करेंगे। हमें इंतजार रहेगा, आपके सुझावों का। आपके सुझाव हमारे लिए बहुत जरूरी हैं।

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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