Inspirational story

पहल करके तो देखिये…

एक वृद्ध महिला की कहानी अक्सर सुनने को मिलती है, जो एक तालाब के किनारे बैठकर छोटे-छोटे कछुओं की पीठ (कवच) को साफ करती है। वह यह भी जानती है कि उनका यह प्रयास दुनिया के सभी कछुओं को सुकून और राहत नहीं दे सकता। वह फिर भी नियमित रूप से तालाब पर जाकर कछुओं की पीठ पर जमा गाद और मैल को साफ करती हैं। मेरे अनुसार यही तो पहल है, जो किसी बड़े बदलाव का इंतजार नहीं करती है और न ही वह कुछ लोगों या पूरी भीड़ को अपने साथ इस मुहिम से जोड़ने में विश्वास करती है। पहल होनी चाहिए, चाहे वह एक व्यक्ति से ही क्यों न हो। सच मानियेगा, अगर इस पहल में जरा सी भी ताकत होगी तो एक से दो, दो से तीन और तीन से चार, फिर लंबी कतार इस मुहिम में शामिल होने के लिए तैयार रहेगी।

समुद्र पर श्रीराम सेतु निर्माण में एक गिलहरी के प्रयास की कहानी भी सभी ने सुनी होगी। यह गिलहरी भी सेतु निर्माण में सहयोग कर रही थी। वह छोटे-छोटे कंकड़ों को समुद्र में डाल रही थी, ताकि सेतु का निर्माण तेजी से हो सके। वह चाहती थी कि सेतु निर्माण जल्द से जल्द हो जाए और फिर श्री राम की सेना रावण की लंका पर आक्रमण कर दे। भगवान राम ने उसके इस प्रयास को देखा तो उनको काफी हर्ष हुआ। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने स्नेह से गिलहरी की पीठ को सहलाया। कहा जाता है कि श्री राम की अंगुलियों के निशान आज भी गिलहरी की पीठ पर काली रेखाओं के रूप में देखे जा सकते हैं। ये सकारात्मक दृष्टिकोण से की गई छोटी से कोशिश का प्रतीक हैं।

वृद्ध महिला वाली कहानी को आगे बढ़ाते हैं। जब वृद्ध महिला से पूछा गया कि तालाब के इन कुछ कछुओं की सफाई करने से क्या फायदा। ये तो फिर मैले हो जाएंगे और फिर अपनी पीठ पर बने कवच को भारी कर लेंगे। महिला का जवाब था कि यह बात सही है कि कुछ दिन बाद फिर इनको सफाई की जरूरत होगी, लेकिन यह सोचकर ही हम प्रयास करना बंद नहीं कर सकते। अगर मेरे इस कार्य से कुछ कछुओं को कुछ दिन के लिए ही सही, राहत मिलती है और उनकी पीठ पर लगा भार कुछ कम होता है तो इसमें नुकसान कहां है।

मुझे इनको कुछ दिन के लिए राहत देने में जिस आनंद की अनुभूति होती है, वह शायद कोई और बड़ा काम करने से नहीं हो सकती। मैं यह भी जानती हूं कि दुनिया में बहुत सारे कछुए हैं, जो अपनी पीठ पर काई और मैला लेकर जिंदगी काट रहे हैं। इन कुछ कछुओं की पीठ साफ करने से कछुओं का उद्धार होने से रहा, लेकिन पहल तो कही से होनी चाहिए थी।

मैं यह पहल कर रही हूं। हो सकता है कि आने वाले समय में कोई इससे प्रेरणा लेकर किसी और तालाब के कछुओं को राहत देने में जुट जाए। उसके बाद कोई और, फिर कोई और… यह सिलसिला पूरी दुनिया में चल जाएगा, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। पहल तो कहीं से होनी थी, हो सकता है, यहीं से हो गई।

पूरी कहानी में कहने का मतलब है कि अगर नजरिया सकारात्मक है, तो पहल होनी ही चाहिए। भले ही एक व्यक्ति से हो या फिर पूरी टीम के साथ। सार्थक पहल ही व्यक्ति को सफलता की राह दिखाती है। यह मत सोचिए कि किसी एक व्यक्ति की छोटी सी पहल से बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती। कोई भी शुरुआत केवल एक आइडिया या विचार से होती है। शुरुआत किसी एक बिंदु से होती है और उसका दायरा असीमित।

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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