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डॉक्टर बनी बिल्ली और पक्षियों की समझदारी

बहुत पुरानी बात है। एक व्यक्ति पक्षियों से बहुत प्यार करता था। उसने तरह-तरह के रंग बिरंगे पक्षियों के लिए बड़ी सी पक्षीशाला बनाई थी। जिसमें रहकर पक्षी अपनी इच्छा से यहां वहां घूम सकते थे। वो इसमें उड़ान भी भर सकते थे। वह रोजाना पक्षियों के दाने और पानी का इंतजाम करता। सभी पक्षी उस व्यक्ति के व्यवहार से खुश थे।

एक दिन वह व्यक्ति किसी कार्य से बाहर गया था। वह पक्षियों के दाने-पानी का इंतजाम कर गया था। व्यक्ति को बाहर जाते देख बिल्ली ने सोचा क्यों न इन पक्षियों को भोजन बनाया जाए। बड़ा मजा आएगा। यह सोचकर उसने डॉक्टर की यूनीफार्म पहनी और पक्षीशाला के बाहर खड़े होकर पक्षियों से पूछा कैसे हो आप। सभी ने कहा, हम बहुत अच्छे हैं। बिल्ली ने कहा, मैं डॉक्टर कैट हूं और मुझे आपका मेडिकल चेकअप करना है। आपसे बहुत स्नेह करने वाले व्यक्ति ने मुझे आपके पास भेजा है। यह रूटीन चेकअप है। कृपया करके पक्षीशाला का गेट खोल दें। जरूर पढ़ें- चीन की कहानीःराजा की बिल्ली का नामकरण

पक्षियों ने कहा, हमें किसी ने नहीं बताया कि आप यहां आने वाली हो। हम गेट नहीं खोल सकते, क्योंकि हमसे कहा गया है कि अजनबियों से कोई बात नहीं करनी। वैसे भी आप बिल्ली हो और हमारी पुरानी दुश्मन भी। कृपया करके आप जा सकती हैं।

डॉक्टर बनी बिल्ली ने कहा, मैं प्रोफेशनलिज्म पर विश्वास करती हूं। मैं डॉक्टर हूं, किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकती, मेरा विश्वास करो। बिल्ली के कई बार कहने के बाद भी पक्षियों ने गेट नहीं खोला और बिल्ली की चाल कामयाब नहीं हो सकी। बिल्ली के उल्टे पैर लौटने पर पक्षियों ने शोर मचाते हुए कहा, जिस तरह एक तेंदुआ अपने शरीर के स्पॉट्स का कलर नहीं बदल सकता, इसी तरह एक बिल्ली भी अपनी आदतों से बाज नहीं आ सकती।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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