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पुराने मोबाइल के कचरे से दूर रखें बच्चों को

जेनेवा। बढ़ी तेजी से उभरते पर्यावरण और वातावरण के खतरों के बीच इलेक्ट्रानिक तथा बिजली के उपकरणों का कूड़ा बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार पुराने मोबाइल फोन को बिना सावधानी के असुरक्षित तरीकों से रिसाइकिल करने से बच्चों को गंभीर रसायन एवं जहरीले पदार्थों का संक्रमण हो सकता है। इसका बुरा प्रभाव उनके बौद्धिक स्तर औरएकाग्रता में कमी, फेफड़ों का प्रभावित होना और अंततः कैंसर जैसे संक्रामक रोगों के रूप में सामने आता है।

एक अनुमान के अनुसार दुनिया में 2014 से 2018 के बीच इलेक्ट्रानिक और बिजली के उपकरणों के कूड़े की मात्रा में 19 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। दुनिया में 2018 तक इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रानिक सामान का 50 मिलियन मैट्रिकटन कूड़ा इकट्ठा हो जाएगा। बदलते मौसमीय और वातावरणीय चक्र के साथ-साथ तापमान में वृद्धि तथा कार्बन डाइआक्साइड की बढ़ती मात्रा परागणों के विकास में सहायक है। इसकी वजह से बच्चों में अस्थमा, श्वास में संक्रमण (एलर्जी) का जोखिम बढ़ जाता है। सारी दुनिया में वर्तमान में 11 से 14 प्रतिशत बच्चों, जो पांच वर्ष या उससे ऊपर की आयु के हैं, में से 44 फीसदी अस्थमा से पीड़ित हैं। इसका प्रमुख कारण इलेक्ट्रानिक और बिजली के उपकरणों से निकलने वाला ई कचरा है। यही नहीं वातावरण प्रदूषण के लिए सैकेंड हैंड तंबाकू का धूम्रपान, घरों के भीतर की नमी अस्थमा के लिए जिम्मेदार है।

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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