Featuredimprovement yourselfUncategorized

कहानीः बैल बड़ा या मेंढक

बहुत पुरानी बात है। एक गांव में हरीभरी घास और फूलों से भरा मैदान था। मैदान के पास ही छोटी नदी बह रही थी, जिसमें बहुत सारे छोटे-छोटे जीव रहते थे। नदी में तरह-तरह की रंगीन मछलियां तैरतीं। वहां ड्रैगन फ्लाई और मधुमक्खियां भी मंडराती रहतीं। फूलों की विविधता की वजह से मधुमक्खियां काफी खुश थीं। उनको रस के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़ रहा था।

नदी में बड़े आकार का मेंढक रहता था, जो सभी छोटे जीवों को यह कहकर डराता कि यहां मुझसे बड़ा कोई नहीं है। वह अचानक अपनी लंबी और चिपचिपी जीभ निकालकर उड़ते हुए ड्रैगन फ्लाई को चट कर जाता। मेंढक के डर से ड्रैगन फ्लाई नदी पर डरते हुए मंडराते या फिर घास के मैदान के ऊपर घूमते। सभी जीव डर की वजह से मेंढक का सम्मान करते थे,  जबकि मेंढक समझता था कि वह आकार में सबसे बड़ा है और ताकतवर भी, इसलिए सभी उसको अपना राजा समझकर उसका सम्मान करते हैं। मेंढक अभिमान और भ्रम में जी रहा था।

वहीं गांव में रहने वाला किसान, जो इस हरेभरे मैदान का मालिक था, अपने बूढ़े हो चुके बैल को काफी स्नेह करता था। बैल ने पूरा जीवन किसान की सेवा में बिता दिया था। वह उसके खेतों में हल लगाता। गाड़ी के साथ बंधकर अनाज को बाजार पहुंचाता था। किसान के बच्चों को स्कूल छोड़ने और वहां से लाने का काम भी बैल की ही जिम्मेदारी थी।

वक्त बीतने के साथ बैल की क्षमता भी कम होने लगी। वह पहले की तरह ज्यादा कार्य नहीं कर पा रहा था। किसान ने सोचा कि बूढ़े हो चुके बैल को जीवन के अंतिम पड़ाव में आराम करना चाहिए। बैल ने उसका काफी साथ निभाया है, इसलिए आभार व्यक्त करने के लिए उसको घास के हरेभरे मैदान में खुला छोड़ दिया जाए। किसान ने मैदान के पास ही बैल के लिए एक कमरा बना दिया।

सर्दियों के दिन थे। बैल रहने के लिए हरी घास के मैदान पर पहुंच गया। पहले दिन बैल ने धूप का आनंद लेते हुए रसीली घास खाई और स्वतंत्र होकर मैदान का चक्कर लगाया।जब मन किया सो गया और जब मन किया घास खाकर पेट भर लिया। प्यास लगने पर बैल नदी पर पहुंचा और पानी पीने लगा। उसे देखकर ड्रैगन फ्लाई बोला, कितना बड़ा जीव है। मेंढक तो इससे बहुत छोटा है। अब यह जीव यहां रहने आ गया है, इसलिए अब मेंढक के डर से मुक्ति मिल जाएगी।

ड्रैगन फ्लाई ने बैल से कहा- नमस्कार दोस्त, आप यहां नये आए हो। क्या अब यहीं रहोगे। बैल ने कहा, दोस्त मुझे बैल कहते हैं। मैं बूढ़ा हो गया हूं और मेरे मालिक ने कृपा करके मुझे यहां रहने के लिए जगह दी है। मैं अपनी जिंदगी के बाकि दिन इसी मैदान पर बिताऊंगा। आपसे मिलकर खुशी हुई। आपने अपना परिचय तो दिया नहीं। ड्रैगन फ्लाई ने कहा, मुझे जानकर प्रसन्नता हुई कि आप यहां हमेशा के लिए रहने आए हो। मुझे ड्रैगन फ्लाई कहते हैं। मैं एक तरह का कीट हूं।

ड्रैगन फ्लाई ने मधुमक्खियों सहित तरह-तरह के कीटों से बैल का परिचय करा दिया। सभी कीट पतंगे और पानी में रहने वाले छोटे जीव बड़े बड़े नुकीले सींगों वाले बैल जैसे बड़े जीव से दोस्ती करके काफी खुश हो गए। शाम को ड्रैगन फ्लाई ने मेंढक से कह दिया कि तुम्हारे दिन चले गए। अब तुम यहां के राजा नहीं हो। तुम्हारे से भी बड़ा जीव यहां रहने आ गया है।

गुस्साए मेंढक ने अपनी लंबी जीभ बाहर निकालते हुए ड्रैगन फ्लाई को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो पाया। मेंढक ने कहा, तुम क्या जानो मेरे बारे में। क्या बैल के पास इतनी लंबी जीभ है। मेरे से बड़े आकार वाला कोई जीव यहां तो क्या पूरे गांव में नहीं है। इसलिए मेरे सामने चुप ही रहो। यह कहते हुए उसने एक बार फिर जीभ बाहर निकालकर ड्रैगन फ्लाई को पकड़ना चाहा। पहले से सतर्क ड्रैगन फ्लाई इस बार फिर बच गया।

अब तो हर जीव मेंढक को कहने लगा, तुम्हारे से बड़ा जीव हमारे बीच में है। इसलिए तुम राजा नहीं हो। अब बैल हमारा राजा है। मेंढक गुस्से में बोला, बताओ कहां है बैल। देखता हूं उसको। सभी जीव उसको घास के मैदान में ले गए। बैल घास के मैदान में लेटा हुआ था। उसे देखते ही अभिमानी मेंढक बोला, यह तो आकार में मुझसे छोटा है। इतना कहते ही मेंढक ने नदी में डुबकी लगाई और शरीर में पानी भरकर बाहर निकला। खुद का शरीर फुलाकर बोला, देखो मैं कितना बड़ा हो गया हूं। क्या अब भी बैल मुझसे बड़ा है।

जीवों ने कहा- हां, हमारा नया राजा बैल अब भी तुमसे बड़ा है। मेंढक आवेश में आकर फिर नदी में कूदा और फिर शरीर में पानी भरकर बाहर आया। शरीर को पहले से थोड़ा ज्यादा फुलाकर बोला, अब तो मैं उससे ज्यादा बड़ा दिखता हूं। यह देखकर सभी जीव मेंढक पर हंसने लगे। ड्रैगन फ्लाई ने कहा, बेवकूफ मेंढक तुम तो बैल के एक सींग के बराबर भी नहीं हो।

मेंढक अपनी हार मानने को तैयार ही नहीं था। वह फिर पानी में कूदा। शरीर में और पानी भरकर बाहर निकला। उसने एक बार फिर शरीर को फुलाने की कोशिश की, लेकिन शरीर को बार-बार फुलाने से उसकी त्वचा फट गई और वह वहीं ढेर हो गया।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button