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प्रेरणास्रोतः मणिपुर में सेब की खेती, लखीमपुर में केले के तने से हैंडबैग बना रहे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मन की बात कार्यक्रम में देश में कुछ नया और प्रेरणास्पद कार्य करने वाले लोगों का जिक्र करते हुए उनकी सराहना की।

प्रधानमंत्री ने कहा, “To Learn is to Grow” यानि सीखना ही आगे बढ़ना है। जब हम कुछ नया सीखते हैं, तो हमारे लिए प्रगति के नए-नए रास्ते खुद-ब-खुद खुल जाते हैं। जब भी कहीं, कुछ नया करने का प्रयास हुआ है, मानवता के लिए नए द्वार खुले हैं, एक नए युग का आरंभ हुआ है। प्रस्तुत हैं कि मन की बात कार्यक्रम के कुछ अंश…

सेब की खेती में मणिपुर का नाम भी जोड़ लीजिए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, आपने देखा होगा जब कहीं कुछ नया होता है तो उसका परिणाम हर किसी को आश्चर्यचकित कर देता है। अब जैसे कि अगर मैं आपसे पूछूँ कि वो कौन से राज्य हैं, जिन्हें आप सेब, Apple के साथ जोड़ेगे ?

तो जाहिर है कि आपके मन में सबसे पहले हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड का नाम आएगा। पर अगर मैं कहूँ कि इस list में आप मणिपुर को भी जोड़ दीजिये तो शायद आप आश्चर्य से भर जाएंगे। कुछ नया करने के जज़्बे से भरे युवाओं ने मणिपुर में ये कारनामा कर दिखाया है।

आजकल मणिपुर के उखरुल जिले में, सेब की खेती जोर पकड़ रही है। यहाँ के किसान अपने बागानों में सेब उगा रहे हैं। सेब उगाने के लिए इन लोगों ने बाकायदा हिमाचल जाकर training भी ली है।

इन्हीं में से एक हैं टी एस रिंगफामी योंग (T.S. Ringphami Young)। ये पेशे से एक Aeronautical Engineer हैं। उन्होंने अपनी पत्नी श्रीमती टी.एस. एंजेल (T.S. Angel) के साथ मिलकर सेब की पैदावार की है।

इसी तरह, अवुन्गशी शिमरे ऑगस्टीना (Avungshee Shimre Augasteena) ने भी अपने बागान में सेब का उत्पादन किया है। अवुन्गशी दिल्ली में job करती थीं। ये छोड़ कर वो अपने गाँव लौट गईं और सेब की खेती शुरू की। मणिपुर में आज ऐसे कई Apple Growers हैं, जिन्होंने कुछ अलग और नया करके दिखाया है।

त्रिपुरा में बेर की खेती से काफी मुनाफा

हमारे आदिवासी समुदाय में, बेर बहुत लोकप्रिय रहा है। आदिवासी समुदायों के लोग हमेशा से बेर की खेती करते रहे हैं। लेकिन COVID-19 महामारी के बाद इसकी खेती विशेष रूप से बढ़ती जा रही है। त्रिपुरा के उनाकोटी (Unakoti) के ऐसे ही 32 साल के मेरे युवा साथी हैं बिक्रमजीत चकमा। उन्होंने बेर की खेती की शुरुआत कर काफ़ी मुनाफ़ा भी कमाया है और अब वो लोगों को बेर की खेती करने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं।

राज्य सरकार भी ऐसे लोगों की मदद के लिए आगे आई है। सरकार द्वारा इसके लिए कई विशेष nursery बनाई गई हैं ताकि बेर की खेती से जुड़े लोगों की माँग पूरी की जा सके। खेती में innovation हो रहे हैं तो खेती के by products में भी creativity देखने को मिल रही है।

लखीमपुर खीरी में केले के तनों से चटाई, दरी का निर्माण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किए गए एक प्रयास के बारे में भी पता चला है। COVID के दौरान ही लखीमपुर खीरी में एक अनोखी पहल हुई है। वहाँ महिलाओं को केले के बेकार तनों से fibre बनाने की training  देने का काम शुरू किया गया। Waste में से best करने का मार्ग।

केले के तने को काटकर मशीन की मदद से banana fibre तैयार किया जाता है जो जूट या सन की तरह होता है। इस fibre से handbag, चटाई, दरी, कितनी ही चीजें बनाई जाती हैं। इससे एक तो फसल के कचरे का इस्तेमाल शुरू हो गया, वहीँ दूसरी तरफ गाँव में रहने वाली हमारी बहनों-बेटियों को आय का एक और साधन मिल गया।

Banana fibre के इस काम से एक स्थानीय महिला को चार सौ से छह सौ रुपये प्रतिदिन की कमाई हो जाती है। लखीमपुर खीरी में सैकड़ों एकड़ जमीन पर केले की खेती होती है। केले की फसल के बाद आम तौर पर किसानों को इसके तने को फेंकने के लिए अलग से खर्च करना पड़ता था। अब उनके ये पैसे भी बच जाते है यानि आम के आम, गुठलियों के दाम ये कहावत यहाँ बिल्कुल सटीक बैठती है।

कर्नाटक में केले के आटे से डोसा, गुलाम जामुन

एक ओर banana fibre से products बनाये जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ केले के आटे से डोसा और गुलाब जामुन जैसे स्वादिष्ट व्यंजन भी बन रहे हैं। कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ और दक्षिण कन्नड़ जिलों में महिलाएं यह अनूठा कार्य कर रही हैं।

ये शुरुआत भी कोरोना काल में ही हुई है। इन महिलाओं ने न सिर्फ केले के आटे से डोसा, गुलाब जामुन जैसी चीजें बनाई बल्कि इनकी तस्वीरों को social media पर share भी किया है। जब ज्यादा लोगों को केले के आटे के बारे में पता चला तो उसकी demand भी बढ़ी और इन महिलाओं की आमदनी भी। लखीमपुर खीरी की तरह यहाँ भी इस innovative idea को महिलाएं ही lead कर रही हैं।- स्रोतः पीआईबी

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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