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हरीश रावत और हरक सिंह की दबाव की राजनीति को जनता ने पसंद नहीं किया

देहरादून। उत्तराखंड में चुनाव की घोषणा से पहले ही दो नेताओं कांग्रेस के हरीश रावत और पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने जुबानी जंग से राज्य में सियासी माहौल गरमा दिया था। उन दिनों ये नेता ही मीडिया की सुर्खियां बन रहे थे। दरअसल हरक सिंह अपनी पूर्व की पार्टी भाजपा और हरीश रावत कांग्रेस में राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे। दबाव बनाने की वजह से हरक सिंह को भाजपा ने निष्कासित कर दिया था।

हरीश रावत चाहते थे कि कांग्रेस उनको मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके पूरे चुनाव की बागडोर उनके हाथों में सौंप दे और वो अपनी इच्छा से पार्टी प्रत्याशियों का चयन करें। इसलिए उन्होंने एक ट्वीट के माध्यम से अपनी पार्टी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को असहज स्थिति में ला दिया था। पार्टी की घोषणाओं से इतर रावत अलग से अपनी घोषणाएं कर रहे थे। हालांकि कांग्रेस के चुनाव अभियान में हरीश रावत ने ही जान फूंकने का काम किया था। उनकी पद यात्राएं, सोशल मीडिया पर दमदार मौजूदगी ने कांग्रेस के चुनाव अभियान को बहुत आगे बढ़ाया। पर बीच-बीच में उनके सोशल मीडिया पोस्ट ने कांग्रेस को बेचैन भी किया।

टिकटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस के बड़े नेता अलग-अलग खेमों में दिखाई दिए। हालांकि कुछ सीटों को लेकर वो एक भी हुए। बगावत और एक दूसरे खेमे को संतुष्ट करने के लिए घोषित टिकटों में फेरबदल किया गया।  हालात यह हो गए कि हरीश रावत को रामनगर सीट छोड़कर लालकुआं जाना पड़ा। वहीं उनकी बेटी अनुपमा को भी टिकट मिल गया। प्रीतम सिंह भी अपने चेहतों को टिकट दिलवाने में सफल रहे। टिकटों के बंटवारे में खेमेबंदी हावी होने का परिणाम चुनाव में दिखाई दिया।

इसी तरह कैबिनेट मंत्री रहते हुए भाजपा को बार-बार असहज करने वाले हरक सिंह रावत भी बड़े दावे करते रहे। दरअसल, हरक सिंह रावत अपने लिए मनचाही सीट मांग रहे थे और अपनी पुत्रवधु को चुनाव लड़ाना चाहते थे। उन्होंने राज्य की 30 सीटों पर अपना प्रभाव होने का दावा भी किया था। हालात यह हो गए कि भाजपा ने उनको निष्कासित कर दिया। कई दिन तक उत्तराखंड की राजनीति हरक सिंह रावत और हरीश रावत के बीच जुबानी जंग पर ही फोकस हो गई। बाद में कई दिनों के इंतजार के बाद हरक सिंह को कांग्रेस में एंट्री मिली।

अब इन दोनों नेताओं को जनता ने विधानसभा चुनाव में नकार दिया, हालांकि हरक सिंह ने चुनाव नहीं लड़ा, पर लैंसडौन सीट पर उनकी पुत्रवधु अनुकृति गुसाईं रुझान में दूसरे नंबर पर रहीं। राज्य की राजनीति में खासा प्रभाव रखने का दावा करने वाले हरक सिंह रावत भी कांग्रेस में एंट्री के वक्त अपने दावे और वादे के अनुसार कोई कमाल नहीं दिखा पाए। यहां तक कि वो अपनी पुत्रवधु को भी चुनाव में बढ़त नहीं दिला पाए। वहीं लालकुआं सीट पर हरीश रावत ने चुनाव परिणाम की औपचारिक घोषणा से पहले ही हार स्वीकार कर ली है।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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