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कहानीः जाल में फंस गईं बु्द्धिमान मछलियां

एक समय की बात है दो मछुआरे दिनभर मछलियां पकड़ने में व्यस्त रहे। शाम तक दोनों ने बहुत सारी मछलियां पकड़ लीं। बड़ी खुशी खुशी दोनों घर लौटने लगे। उनके घर के रास्ते में बड़ी सी झील थी। घर लौटते समय झील पर नजर पड़ी तो उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई। एक मछुआरे ने दूसरे से कहा, दोस्त आज का दिन तो काफी अच्छा रहा। देखो, इस झील में मछलियां उछलकूद कर रही हैं, लगता है यहां बहुत सारी मछलियां हैं। इतनी दूर नदी पर जाने से ज्यादा अच्छा है कि कल इस झील में जाल फेंका जाए। दिनभर में बहुत सारी मछलियां पकड़ में आ जाएंगी।

झील में रहने वाले मेंढक ने मछुआरों की बातें सुन लीं। एकबुद्धि नाम का यह मेंढक अपने परिवार के साथ झील में रहता था। मेंढक ने तुरंत मछुआरों की बात झील मे रहने वाली मछलियों और अन्य जीवों को बताईं। उसने कहा, हमें जल्द से जल्द यह जगह छोड़कर इसी झील के किसी ओर हिस्से में चले जाना चाहिए। झील में शतबुद्धि और सहस्रबुद्धि नाम की दो मछलियां भी रहती थीं, जिनको सबसे बुद्धिमान माना जाता था। दोनों मछलियों का कहना था कि वो सभी समस्याओं को हल कर सकती हैं। सहस्रबुद्धि तो यह तक दावा करती थी कि किसी भी मुसीबत का सामना करने के लिए उसके पास सौ से ज्यादा समाधान होते हैं। इसलिए उसे किसी भी मुसीबत से घबराने की जरूरत नहीं है।

शतबुद्धि और सहस्रबुद्धि ने मेंढक से कहा, दोस्त हमें मछुआरों से डरने की कोई जरूरत नहीं है। इंसान कोई भी काम समय पर नहीं करते। दोनों मछुआरे कल आने की बात कह गए हैं, इसलिए कल तो आने से रहे। एक सप्ताह घबराने की कोई जरूरत नहीं है। सभी मछलियों ने शतबुद्धि और सहस्रबुद्धि की बात पर सहमति जताई। मेंढक ने उनसे कहा, आप लोग जाओ या नहीं, मैं तो अपने परिवार को लेकर यह जगह छोड़ देता हूं। मेंढक की बात सुनकर सभी मछलियां उसका मजाक बनाने लगीं। मछलियां कह रही थीं कि मेंढक तुम बहुत डरपोक हो। हम तो कहीं नहीं जा रहे। वैसे भी हमारे साथ सहस्रबुद्धि और शतबुद्धि हैं, जो हर मुसीबत का सामना आसानी से कर सकती हैं।

मेंढक पर किसी की बात का कोई असर नहीं हुआ और वो अपने परिवार के साथ उसी समय किसी सुरक्षित स्थान की ओर चला गया। दूसरे दिन सुबह होते ही दोनों मछुआरे बड़ा सा जाल लेकर झील पर पहुंचे। दोनों ने पूरी ताकत से मछलियों वाली जगह पर जाल फेंक दिया। थोड़ी ही देर में सहस्रबुद्धि, शतबुद्धि सहित सभी मछलियां जाल में थीं। अन्य मछलियों ने पुकारा, आप दोनों क्या कर रही हो, हमें इस मुसीबत से बचा लो। सहस्रबुद्धि बोली, अब यहां से बचने का कोई उपाय नहीं दिख रहा। यह जाल काफी मोटा है, इसको नहीं काट पाएंगे।

मछुआरों ने पूरी ताकत लगाकर मछलियों से भरा जाल झील से बाहर निकाल लिया। मेंढक अपने परिवार के साथ नजदीक ही किसी पत्थर के नीचे बैठकर यह नजारा देख रहा था। वह अपने परिवार से कह रहा था, समय रहते समस्या का हल निकाल लेना जरूरी होता है। अगर ये कल ही मेरी बात मान लेतीं तो आज मछुआरों के जाल में नहीं होतीं।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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