
डॉ. उमेश चमोला की पुस्तक ‘उत्तराखंड की एक सौ बालोपयोगी लोककथाएं’ का विमोचन
Uttarakhand folk tales book launch
देहरादून: 6 मई, 2025ः दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र, देहरादून के तत्वावधान में डॉ. उमेश चमोला की पुस्तक उत्तराखंड की एक सौ बालोपयोगी लोककथाएं का विमोचन (Uttarakhand folk tales book launch) सोमवार को दून पुस्तकालय के सभागार में आयोजित किया गया। पुस्तक पर एक विचार-विमर्श सत्र भी आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम में साहित्यकार शिव प्रसाद सेमवाल, मुकेश नौटियाल, डॉ. नन्द किशोर हटवाल, बीना बेंजवाल, रमाकांत बेंजवाल और राकेश जुगरान शामिल हुए।
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साहित्यकार और शिक्षा अधिकारी शिव प्रसाद सेमवाल ने डॉ. उमेश चमोला को बधाई देते हुए कहा कि यह पुस्तक नई पीढ़ी को उत्तराखंड की लोक संस्कृति से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। उन्होंने कहा कि लोककथाएँ किसी समाज का दर्पण होती हैं और समाजशास्त्र को समझने के लिए भी उपयोगी हैं। कथाकार मुकेश नौटियाल ने बताया कि लोककथाएँ समाज की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करती हैं और अन्य कहानियों के लेखन के लिए आधार प्रदान करती हैं।
पुस्तक के लेखक डॉ. उमेश चमोला ने बताया कि उन्होंने अब तक 23 पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें से यह उनकी लोककथाओं पर आधारित चौथी पुस्तक है। उन्होंने 300 से अधिक लोककथाओं को प्रकाशित किया है और उनका उद्देश्य इनके माध्यम से नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ना है। डॉ. नन्द किशोर हटवाल ने कहा कि डिजिटल युग में लोककथाओं का संकलन और संरक्षण अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि इनके सुनने-सुनाने की परंपरा धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। प्रिंट माध्यम के जरिए इनका संरक्षण महत्वपूर्ण है।
भाषाविद रमाकांत बेंजवाल ने जोर देकर कहा कि लोककथाएँ हमारी संस्कृति, रीति-रिवाजों और परंपराओं की वाहक हैं। इनमें लोक जीवन से जुड़े आभूषण, कृषि, वस्त्र आदि से संबंधित शब्दों का समावेश होता है। लोककथाओं के लुप्त होने से इन शब्दों के भी लुप्त होने का खतरा है। शिक्षाविद और साहित्यकार राकेश जुगरान ने कहा कि कहानियाँ प्राचीन काल से बच्चों का प्रिय विषय रही हैं और उनके मानसिक विकास में सहायक हैं। इसलिए डॉ. चमोला का यह प्रयास बच्चों के हित में है।
(Uttarakhand folk tales book launch)
साहित्यकार बीना बेंजवाल ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि लोककथाएँ हमारी सांस्कृतिक धरोहर की अनमोल निधि हैं। वर्तमान परिस्थितियों में इनका संकलन और संरक्षण आवश्यक है। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के विशेषज्ञ चंद्र शेखर तिवारी ने बताया कि उनका संस्थान पुस्तकों के माध्यम से शोध को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि विभिन्न क्षेत्रों में शोधकर्ताओं को संसाधन उपलब्ध हो सकें। काव्यांश प्रकाशन के प्रबोध उनियाल ने कहा कि श्रेष्ठ पुस्तकों के प्रकाशन के माध्यम से वे पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह पुस्तक बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़ने में सहायक होगी।