आज हम जिस डिजिटल युग में जी रहे हैं, उसका आधार Artificial Intelligence यानी AI है। एआई ने हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है, चाहे वह हमारी खोजें हों, सोशल मीडिया फीड हों या फिर स्वचालित कारें। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एआई की जड़ें द्वितीय विश्व युद्ध तक जाती हैं? इस लेख में हम एआई के इतिहास, एलन ट्यूरिंग के जीवन, द्वितीय विश्व युद्ध और जर्मन कोड्स के बीच के संबंधों को विस्तार से समझेंगे।
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द्वितीय विश्व युद्ध तक जाती हैं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) की जड़ें

गणितज्ञ, तर्कशओास्त्री और क्रिप्टोग्राफर एलन ट्यूरिंग को माना जाता है एआई का जनक

आज हम जिस डिजिटल युग में जी रहे हैं, उसका आधार कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) यानी AI है। एआई ने हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है, चाहे वह हमारी खोजें हों, सोशल मीडिया फीड हों या फिर स्वचालित कारें। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एआई की जड़ें द्वितीय विश्व युद्ध तक जाती हैं? इस लेख में हम एआई के इतिहास, एलन ट्यूरिंग के जीवन, द्वितीय विश्व युद्ध और जर्मन कोड्स के बीच के संबंधों को विस्तार से समझेंगे।

एलन ट्यूरिंग: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जनक

एलन ट्यूरिंग एक प्रतिभाशाली गणितज्ञ, तर्कशास्त्री और क्रिप्टोग्राफर थे। उन्हें आधुनिक कंप्यूटर विज्ञान का जनक माना जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उन्होंने जर्मन एनिग्मा मशीन द्वारा एन्क्रिप्ट किए गए संदेशों को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस काम के लिए उन्होंने एक विशेष प्रकार की मशीन विकसित की, जिसे ‘बॉम्बे’ कहा जाता था। यह मशीन एनिग्मा मशीन के संदेशों को डिक्रिप्ट करने में सक्षम थी, जिससे मित्र राष्ट्रों को युद्ध में बड़ा फायदा हुआ।

द्वितीय विश्व युद्ध और जर्मन कोड्स

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, संचार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। जर्मन सेना एनिग्मा मशीन का उपयोग करके अपने संदेशों को एन्क्रिप्ट करती थी। यह मशीन इतनी जटिल थी कि मित्र राष्ट्रों के लिए इन संदेशों को तोड़ना लगभग असंभव लग रहा था। लेकिन एलन ट्यूरिंग और उनकी टीम ने इस चुनौती को स्वीकार किया और एनिग्मा मशीन को तोड़ने में सफल रहे।

एआई और द्वितीय विश्व युद्ध का संबंध

एनिग्मा मशीन को तोड़ने के लिए ट्यूरिंग ने जो तकनीक विकसित की, वह आधुनिक कंप्यूटर और कृत्रिम बुद्धिमत्ता की नींव बन गई। उन्होंने एक ऐसी मशीन का निर्माण किया जो स्वचालित रूप से विशाल मात्रा में डेटा का विश्लेषण कर सकती थी और पैटर्न की पहचान कर सकती थी। यह क्षमता आधुनिक एआई सिस्टम की आधारशिला है।

एनिग्मा मशीन क्या थी?

एनिग्मा मशीन एक जर्मन इन्क्रिप्शन मशीन थी, जिसका इस्तेमाल जर्मन सैन्य संदेशों को गुप्त रखने के लिए किया जाता था। यह मशीन अक्षरों को यादृच्छिक रूप से बदल देती थी, जिससे संदेशों को पढ़ना लगभग असंभव हो जाता था।

ट्यूरिंग का योगदान

  • ब्लेचली पार्क: ट्यूरिंग को ब्लेचली पार्क भेजा गया था, जो ब्रिटेन का कोडब्रेकिंग केंद्र था। यहां उन्होंने एनिग्मा मशीन को तोड़ने के लिए एक मशीन विकसित की, जिसे ‘बॉम्बे’ कहा जाता था।
  • बॉम्बे मशीन: बॉम्बे मशीन एनिग्मा मशीन द्वारा बनाए गए कोड को क्रैक करने के लिए संभावित संयोजनों को तेजी से आजमाती थी। यह मशीन एनिग्मा मशीन के संदेशों को पढ़ने में एक क्रांतिकारी बदलाव लेकर आई।
  • अल्ट्रा इंटेलिजेंस: एनिग्मा मशीन को तोड़ने से प्राप्त जानकारी को “अल्ट्रा इंटेलिजेंस” कहा जाता था। इस जानकारी ने मित्र राष्ट्रों को जर्मन सेना की योजनाओं के बारे में अग्रिम जानकारी दी और उन्हें युद्ध में एक महत्वपूर्ण लाभ प्रदान किया।

युद्ध पर प्रभाव

एनिग्मा मशीन को तोड़ने से द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम पर गहरा प्रभाव पड़ा। इससे मित्र राष्ट्रों को:

  • जर्मन हमलों का पूर्वानुमान लगाने में मदद मिली।
  • सैन्य रणनीति बनाने में आसानी हुई।
  • युद्ध को छोटा करने में मदद मिली।
  • अधिक लोगों की जान बचाने में सफलता मिली।

कहा जाता है कि एनिग्मा मशीन को तोड़ने से युद्ध को कम से कम दो साल पहले समाप्त करने में मदद मिली और लाखों लोगों की जान बचाई गई।

निष्कर्ष

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एलन ट्यूरिंग द्वारा किए गए काम ने आधुनिक कंप्यूटर विज्ञान और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज हम जिस डिजिटल युग में जी रहे हैं, वह एलन ट्यूरिंग और उनके साथियों के अथक प्रयासों का परिणाम है।

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर मानव भारती संस्था में सेवाएं शुरू कीं, जहां बच्चों के बीच काम करने का अवसर मिला। संस्था के सचिव डॉ. हिमांशु शेखर जी ने पर्यावरण तथा अपने आसपास होने वाली घटनाओं को सरल भाषा में कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। जब भी समय मिलता है, अपने मित्र मोहित उनियाल व गजेंद्र रमोला के साथ पहाड़ के गांवों की यात्राएं करता हूं। ‘डुगडुगी’ नाम से एक पहल के जरिये, हम पहाड़ के विपरीत परिस्थितियों वाले गांवों की, खासकर महिलाओं के अथक परिश्रम की कहानियां सुनाना चाहते हैं। वर्तमान में, गांवों की आर्थिकी में खेतीबाड़ी और पशुपालन के योगदान को समझना चाहते हैं। बदलते मौसम और जंगली जीवों के हमलों से सूनी पड़ी खेती, संसाधनों के अभाव में खाली होते गांवों की पीड़ा को सामने लाने चाहते हैं। मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए ‘डुगडुगी’ नाम से प्रतिदिन डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे। यह स्कूल फिलहाल संचालित नहीं हो रहा है। इसे फिर से शुरू करेंगे, ऐसी उम्मीद है। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी वर्तमान में मानव भारती संस्था, देहरादून में सेवारत संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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