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बच्चों में आत्मविश्वास जगाती हैं कार्यशालाएं

बच्चों को कभी भी कार्यशालाओं में जाने से रोकें नहीं बल्कि उत्साहित करें क्योंकि ये उसे जीवन का वो पाक पढ़ाती हैं जो स्कूल में नहीं मिलता। समय-समय पर होने वाली कार्यशालाएं बच्चों में आत्मविश्वास पैदा करने का काम करती हैं। कहीं पर एक दिवसीय तो कहीं साप्ताहिक और कहीं व्यक्तित्व विकास कार्यशाला का आयोजन किया जाता है। इससे हटकर क्षेत्र विशेष के छात्र-छात्राओं के लिए भी कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं। जैसे कि ग्रामीण परिवेश के बच्चों को स्वयं पर विश्वास कर खुद को समाज में स्थापित करने को प्रेरित करने के लिए आयोजित की जाने वाली कार्यशाला। इन कार्यशालाओं में बच्चों को अवश्य ही हिस्सा लेना चाहिए, क्योंकि ये आत्मविश्वास जगाती हैं। वैसे भी जीवन में सफलता प्राप्त करने की चाबी है अपने ऊपर विश्वास रखना। खुद पर विश्वास व्यक्तित्व विकास का पहला चरण है। अपनी योग्यता पर कभी संदेह ना करें।
किताबों से जुड़ना भी सिखाती है कार्यशाला
जहां तक हो बच्चों को किताबों से जुड़ना भी सिखाती हैं ये कार्यशालाएं। ऐसी तमाम तरह की कार्यशालाओं में जब बच्चा जाता है तो उसे मालूम होता है कि सफलता से जुड़ी प्रेरक और प्रेरणादायक कहानियां क्या होती हैं और उन तक कैसे पहुंचा जा सकता है। इससे जीवन में आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिलता है। साथ ही इससे आत्म सम्मान बढ़ता है और व्यक्तित्व में भी निखार आता है। दूसरों की बात को ध्यान से सुनें और खुद के विवेक से अपना सुझाव या उत्तर दें। अपने फैसलों को खुद के दम पर पूरा करें क्योंकि दूसरों के फैसलों पर चलना या कदम उठाना असफलता का मुख्य कारण है। व्यक्तिगत विकास के लिए शारीरिक भाषा में सुधार लाना बहुत आवश्यक है। चाहें आपकी बातें हो या आपके कार्य की, सभी जगह सकारात्मक सोच का होना अच्छे व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है। सकारात्मक विचारों से आत्मविश्वास बढ़ता है। जीवन में कई प्रकार की परिस्थितियां आती हैं। लेकिन, सकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति हमेशा सही दृष्टि से सही रास्ते को देखता है। इसके साथ ही ज्यादा से ज्यादा नए लोगों से मिलना और अलग-अलग प्रकार के लोगों से मिलना जीवन को एक नए स्तर पर ले जाता है। इससे जीवन में संस्कृति और जीवनशैली से जुड़ी चीजों के विषय में बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इस प्रकार कार्यशाला बच्चों को उड़ान भरना भी सिखाती हैं।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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