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मन की बात को आंखों से ही पढ़ लेती हैं महिलाएं

लंदन 


एक ताजा शोध में बताया गया है कि महिलाओं में मन को पढ़ने वाले जीन उत्परिवर्तन होने की अधिक संभावना होती हैं। इस कारण वे अपनी आंखों से देखकर ही किसी व्यक्ति के विचारों और भावनाओं को परख लेती हैं।

शोध करने वाली टीम में एक भारतीय मूल का वैज्ञानिक भी शामिल था। यूके में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने दुनिया भर के 89,000 लोगों पर कॉग्नेटिव इंपैथी का टेस्ट किया था। इस परीक्षण का नाम रीडिंग द माइंड इन द आइज यानी आंखों से मस्तिष्क को पढ़ना रखा गया था। इस अध्ययन में पहले ही दिखाया गया था कि लोगों की आंखों में देखकर ही लोग तेजी से इसकी व्याख्या कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति क्या सोच रहा है या महसूस कर रहा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इस परीक्षा में महिलाओं ने औसत से अधिक स्कोर किया। उन्होंने महिलाओं में आनुवंशिक रूपों की पहचान की, जो आंखों से देखकर दिमाग को पढ़ने की क्षमता से जुड़ा है। पिछला अध्ययनों में पताया गया था कि ऑटिज्म और एनोरेक्सिया से जूझ रहे लोग आई टेस्ट में फेल हो गए।कैम्ब्रिज में एक पीएचडी छात्र वरुण वारियर ने कहा कि बोध क्षमता को लेकर किया गया यह दुनिया का सबसे बड़ा अध्ययन है। यह सामाजिक न्यूरोसाइंस के क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है और संज्ञानात्मक सहानुभूति में भिन्नता का कारण बनने वाली पहेली की एक और कड़ी को जोड़ती है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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