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इन शांत, सरल गढ़वाली साहित्यकार को गुस्सा क्यों आता है ?

हेमू का लिखा और गाया गीत- 'कोल्ड ड्रिंक बियरबार पाड़ डांडा बार-पार...' खूब सुना गया

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

“शुरुआत में साहित्यक मंचों पर दूसरे लेखकों की कविताओं और गीतों को उनकी शैली में गाता था। यह बात 1990 के आसपास की है। एक दिन पिता श्री प्रेमलाल भट्ट ने मुझसे कहा, तुम्हारा ध्यान पढ़ाई लिखाई पर कम, गोष्ठियों पर ज्यादा हो रहा है। वहां भी सुनाने के लिए तुम्हारे पास अपना कुछ नहीं है। न तो तुम्हारी कविताएं हैं और न ही गीत। और तो और तुम्हारे पास अपनी शैली भी नहीं है। तुम उन्हीं की शैली में रचनाएं पेश करते हो। अगर कोई तुम्हारे से पूछे कि ‘जो तुम सुना रहे हो, उसमें तुम्हारा क्या है।’ क्या तुम्हारे पास कोई जवाब होगा। वास्तव में मेरे पास इस बात का कोई जवाब नहीं था।”

वरिष्ठ पत्रकार, गीतकार, गायक, गढ़वाली साहित्य के प्रसिद्ध कवि हेमवती नंदन भट्ट ‘हेमू’ हमारे साथ अपने उस संस्मरण को साझा कर रहे थे, जिसकी वजह से उनके लेखन की शुरुआत हुई।

हेमू बताते हैं, “पिता ने कहा, क्या तुम कल तक कोई गीत लिखकर दिखा सकते हो। अगर, तुम मुझसे कहो, मैं तुम्हें लिखकर दिखा दूंगा। पिता की इस बात ने मुझे लेखन शुरू करने के लिए प्रेरित किया। मैंने उस दिन से अपने गीत, कविताएं लिखने शुरू किए। शुरुआत में बहुत प्रभावी लेखन नहीं था, कुछ हल्का फुल्का लिखा जाने लगा। वो दिन और आज का दिन, मैं पिता की प्रेरणा से लेखक बन गया। ”

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करीब 49 वर्षीय हेमू ने अब तक ढाई सौ से अधिक गीत, कविताओं की रचना की है। इनमें से कई आकाशवाणी केंद्रों पर प्रसारित हुईं और कई रचनाएं प्रसिद्ध कंपनियों के ऑडियो एवं वीडियो एलबम का हिस्सा बनीं। टी सीरीज के लिए 1995 में गीत रिकार्ड कराया था।

उनका एक गीत, जो उन्होंने 2000 में राज्य गठन के समय लिखा था। इस गीत के माध्यम से पहले ही बता दिया था,  2020 में उत्तराखंड कैसा होगा। डेब्लप्मेन्ट 2020 मा  शीर्षक वाले इस गीत के बोल हैं-

कच्ची ना पकक्यों कि बार मैनिफैक्चरिंग बहार
होलि मा उत्तराखंड मा
डेब्लप्मेन्ट 2020 मा

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यह गीत 2007 में एलबम के लिए रिकार्ड हुआ। उन्होंने यह गीत स्वयं गाया। उस समय यह गीत काफी लोकप्रिय हुआ। गीत को शादियों में गाया जाता है, लोग इस गीत पर थिरकते हैं, आप कैसा महसूस करते हैं। हेमू कहते हैं, “मैंने यह गीत थिरकने के लिए नहीं लिखा था, हालांकि इसके प्रस्तुतीकरण और संगीत को आकर्षक बनाया गया, इसलिए लोग इस पर थिरकते हैं। यह गीत गंभीर विषय को छूता है। हमने उत्तराखंड के बारे में जैसा सोचा था, वैसा ही हो रहा है। अपार्टमेंट कलचर की बात कही थी, वो आज पूरे राज्य में दिख रही है। और भी बहुत कुछ है…, जो दिखाई दे रहा है।”

हाल ही में उनके गीत ‘ऊँची ऊँची डांडयू माँ’ पर वीडियो जारी हुआ है।

क्या बेहद सरल स्वभाव और शांत प्रकृति के हेमू भट्ट को गुस्सा भी आता है, पर उनका कहना है,”अगर हम अव्यवस्थाओं की बात करें, नाइंसाफी की बात करें, समाज को होने वाले नुकसान की बात करें, तो आक्रोश होगा। हम अपना आक्रोश अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं।”

1990 से तरुण हिंद समाचार पत्र, जिसके संपादक वल्लभ भाई पांडे थे, से पत्रकारिता की शुरुआत की। लगभग 15 साल एक और अखबार को दिए, बड़ी संख्या में साहित्यिक रचनाओं के बाद, वो स्वयं को कहां पाते हैं, के सवाल पर उनका कहना है, जो सृजना हो गई है, वो चिरस्थाई है, लेकिन अभी भी उस मुकाम के लिए संघर्ष जारी है, जो समूची व्यवस्था को जनमुद्दों के निस्तारण के लिए झकझोरे। नाइंसाफी के विरुद्ध जनचेतना को जाग्रत करे। हम गीतों, कविताओं के माध्यम से हर उस व्यक्ति को, जागरूक करना चाहते हैं, जो अंतिम पायदान पर खड़ा है, जो वंचित है, जिसे अपने संवैधानिक अधिकार चाहिए।

हेमू की एक पुस्तक है, जिसमें पहाड़ के विभिन्न मुद्दों पर गढ़वाली बोली में कविताएं लिखी गई हैं। इनमें उनकी एक कविता पर्यावरण और पलायन दोनों विषयों पर चिंता व्यक्त करती हैं। हेमू ‘परवाण’ शीर्षक वाली कविता सुनाते हैं-

जंगलूं हर्याली रूठि
छोयों कु पाणि बि सूखि
अब बच्युं खुच्युं क्य रैगे पहाड़ मा
फूल अर भौंरा बि दनकिगेन पर् वाण मा…

अपनी किताब ‘उंद बगदी गंगा’ शीर्षक पर बात करते हुए कहते हैं, इसका मतलब है नीचे की ओर बहती गंगा। यहां गंगा शब्द का अर्थ, पतित पावनी मां गंगा से नहीं है। यहां गंगा शब्द का तात्पर्य युवाओं से है, जो पहाड़ से नीचे मैदानों की ओर जा रहे हैं। पहाड़ के गांव खाली हो रहे हैं, वहां के खेत खलिहान बंजर हो रहे हैं।

हेमू कहते हैं, “मैं यह मानता हूं कि तरक्की के लिए, रोजगार के लिए, शिक्षा के लिए, लोगों को पहाड़ के गांवों से शहरों की ओर जाना पड़ रहा है। मैं इस पलायन का विरोध नहीं करता। मैं तरक्की के लिए घरबार छोड़ने का विरोध नहीं करता। पर, मैं मजबूरी के पलायन को सही नहीं मानता। सरकारी स्तर पर पहाड़ के गांवों तक रोजगार के संसाधन पहुंचे, खेतीबाड़ी को सुरक्षा मिले, आत्मनिर्भरता के साथ आर्थिक सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य के लिए संसाधनों तक पहुंच बने, हम यह चाहते हैं।”

हेमू गानों में द्विअर्थी शब्दों , शोर और संदेशविहीन होने पर नाराजगी व्यक्त करते हैं। उन्होंने गीतों में इस तरह के चलन पर एक कविता लिखी है। उनका कहना है, गीत में एक कविता होती है, जिस गीत में कविता न हो, जिस गीत में संदेश न हो, वो उनकी नजर में गीत नहीं ‘अगीत’ है।

वर्तमान में हेमू एम्स ऋषिकेश के जनसंपर्क विभाग में सेवारत हैं। पत्रकारों को एम्स की गतिविधियों को जानने के लिए हेमू के व्हाट्सएप का इंतजार रहता है।  वो पूरे विवरण व फोटोग्राफ के साथ एम्स के कार्यक्रमों, महत्वपूर्ण सूचनाओं को भेजते हैं।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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