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रंग से भी पता चलता है बच्चों का स्वभाव

रंग बच्चों को बेहद पसंद होते हैं। रंग बच्चों का स्वभाव भी बताते हैं। ये राज महज अनुमान के चलते बताए गए हैं। इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है। छोटे बच्चों की खासियत ही ये होती है कि वे अपने बचपन को बहुत मस्ती और ईमानदारी के साथ जीते हैं। कुछ बच्चे स्वभाव से थोड़े शांत होते हैं और कुछ बच्चे थोड़े नटखट और चंचल प्रकृति के होते हैं। कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिन्हें मिल-झुल कर रहना पसंद होता है। जबकि कुछ बच्चे अकेले रहना पसंद करते हैं लेकिन कई बार अभिभावक इस बात को पहचानने में देरी कर देते हैं।
नीला रंग
नीला रंग पसंद करने वाले बच्चे ना ज्यादा सीधे और ना ही ज्यादा नटखट होते हैं। इन बच्चों को खेल के साथ-साथ पढ़ाई भी पसंद होती है। यानि कि ऐसे बच्चे अपने को परफेक्ट दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। अपने काम की और ध्यान देना और किसी से फालतू ना बोलना इन बच्चों की खासियत होती है।
लाल रंग
लाल रंग को पसंद करने वाले बच्चे स्वभाव से बहुत शरारती होते हैं। इस रंग को पसंद करने वाले बच्चों को अपनी जिंदगी में किसी तरह की रोक-टोक पसंद नहीं होती है। ऐसे बच्चे बहुत दिमागी भी होते हैं। इस रंग के फेवरेट बच्चे किसी के सामने कोई बात बोलने से हिचकिचाते नहीं हैं। हर वक्त एनर्जी में रहते हैं।
पीला रंग
पीले रंग को अक्सर लड़कियां पसंद करती हैं। ऐसा नहीं है कि लड़के पसंद नहीं करते हैं। लेकिन अपेक्षाकृत लड़कियां ज्यादा पसंद करती हैं। ऐसी लड़कियां बहुत सादगी भरी होती है। इनका जीवन बहुत सादा और सरल होता है। इन्हें किसी तरह के हर-फर भी पसंद नहीं होते हैं। ये अपनी बात को जल्दी से किसी के साथ शेयर नहीं करते हैं। साथ ही इस रंग को पसंद करने वाले बच्चे बिना बात के झूठ भी नहीं बोलते हैं। ठीक ऐसा ही स्वभाव हल्का गुलाबी रंग पसंद करने वाले बच्चों का भी होता है।
काला रंग
काले रंग को पसंद करने वाले बच्चे बहुत होशियार, दिमागदार और तेज स्वभाव के होते हैं। अपनी बातों को जल्दी से किसी के भी सामने उगल देते हैं। ऐसे बच्चे जुबान के थोड़े कड़वे जरूर होते हैं लेकिन दिल के सच्चे होते हैं। ऐसे बच्चों के इरादे पक्के और मजबूत होते हैं। ये अपनी जिंदगी में जो करना चाहते हैं उसे हर हाल में कर के रहते हैं।
हरा रंग
जिन बच्चों का हरा रंग फेवरेट होता है वो स्वभाव से बहुत आकर्षक होते हैं। जल्दी से अपनी बातों में किसी को भी फंसा लेते हैं। इस रंग को पसंद करने वाले बच्चों में काफी आत्मविश्वास होता है। अपने जीवन में बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। सबसे बड़ी खासियत ये है कि ऐसे बच्चे हमेशा सकारात्मक सोचते हैं।
आजकल के बच्चों के साथ किसी भी तरह की जोर जबरदस्ती करने में कोई समझदारी है। क्योंकि ऐसा करने से बच्चों के जो मन में आता है या उन्हें जिस चीज के लिए मना करो वो उस काम को और भी ज्यादा करते हैं या फिर जानबूझ कर सबके सामने बत्तमीजी करने लगते हैं। अगर आपको भी लगता है कि आपका बच्चा हाथ से निकल गया तो आज हम आपको बच्चों को आसान तरह से हैंडल करने के कुछ टिप्स बता रहे हैं।
गलती का अहसास दिलाएं
जब कभी आपको लगता है कि आपका बच्चा अनुशासन से बाहर हो गया है या अपनी मनमानी कर रहा है तो इसके लिए उसकी ना तो पिटाई करें और ना ही उसे डाटें। बच्चे की उम्र चाहे कोई भी हो उसकी गलती के लिए उसे प्यार से समझाएं और उसकी गलती का अहसास दिलाएं। इससे बच्चा खुद ही सुधर जाएगा।
गलती का अहसास दिलाएं
बहुत ज्यादा फटकारे ना
बच्चे को ज्यादा डांटे-फटकारे नहीं। जब भी आपका बच्चा रूखा बर्ताव करें, जिस काम के लिए मना किया है वो काम करे या फिर सब के सामने कुछ बत्तमीजी करें तो इसके लिए उसे डांटे नहीं बल्कि प्यार से बात करें। उन्हें समझाएं और उनसे धीरे बोलने के लिए कहें।
हर जगह ना जाने दें
बच्चे अपने साथ के लोगों या दोस्तों को देखकर उनके साथ कहीं भी जाने की जिद करते हैं। मां-बाप का ये फर्ज़ है कि बच्चों को जहां भी भेजें अपनी जिम्मेदारी पर भेजें। क्योंकि बाहर वाले या जिनके साथ आपका बच्चा जा रहा है उनके पास इतना समय नहीं है कि वो आपके बच्चे का ध्यान रखेंगे। इसलिए बच्चों को कहीं भी जाने की अनुमति ना दें।
हर जगह ना जाने दें
बच्चों के साथ वक्त बिताएं
जब घर में माता और पिता दोनों ही वर्किंग होते हैं तो वो अपने बच्चों के साथ वक्त नहीं बिता पाते हैं। ये सच है कि वो अपने बच्चों को मेड और सभी जरूरी चीजें उपलब्ध कराते हैं लेकिन माता पिता को ये समझना चाहिए कि बच्चों को आपकी जरूरत है, पैसों की नहीं। इसलिए अगर आप वर्किंग है तब भी अपने बच्चों के साथ दिन में कम से कम 1 घंटा जरूर बिताएं। इस एक घंटे में अपने बच्चे से पूछे कि उसने दिनभर क्या किया या वो क्या सोच रहा है। इसलिए आपके और आपके बच्चों के बीच गैप कम रहेगा और बच्चा अपने दिल की आपको बता पाएगा।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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