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गर्मियों में एलर्जी से रहें दूर

गर्मियां आ चुकी हैं और इस मौसम में आंखों से पानी आने, जलन होने और छींकने वाली एलर्जी बढ़ने लगती हैं। एलर्जी कारक तत्व नाक बंद करने के अलावा नाक व गले में कफ भी पैदा कर देते हैं। गर्मियों के मौसम हमारे शरीर का वास्ता अनेक तरह के एलर्जी कारक तत्वों से पड़ता है और इनके जवाब में तंत्रिका तंत्र एलर्जी विरोधी एंटीबॉडीज का निर्माण करने लगता है, जिन्हें इम्यूनोग्लोबिन्स कहते हैं। ये नेत्रों, नाक, फेफड़ों और त्वचा में उपस्थित रहते हैं। जब कोई व्यक्ति इन एलर्जेन्स के सम्पर्क में आता है, तब शरीर हिस्टामाइन्स नामक रसायन उत्पन्न करता है, जिससे एलर्जी की समस्या उत्पन्न होती है।
एलर्जी से बचने के लिए ये उपाय अपनाएं :
बाहर निकलते समय अपने साथ पानी की बोतल रखें। अधिक गर्मी में पसीने के कारण शरीर से खनिज लवणों का निकलना जारी रहता है। इसके लिए पानी में थोड़ा नमक व शक्कर मिलाकर लेनी चाहिये।
चीनी युक्त पेय व डिब्बाबंद जूस न पिएं, क्योंकि ये शरीर में तरल पदार्थो के अवशोषण की प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं।
गहरे रंग वाले और तंग वस्त्र न पहनें। ये त्वचा पर मौजूद छिद्रों को बंद करके शरीर का तापमान बढ़ाने का काम कर सकते हैं। हल्के रंगों वाले और ढीले ढाले व सूती वस्त्रों को प्राथमिकता द।
मौसमी फलों व सब्जियों का सेवन करें। खासतौर पर तरबूज, खरबूज, ककड़ी जैसे फलों का सेवन करें, जिनमें जल व लवणों की मात्रा अधिक होती है।
छायादार स्थान में रहना लाभदायक रहता है, परंतु यदि यात्रा करना आवश्यक हो तो शरीर को ठंडा और आरामदायक रखने की व्यवस्था कर लें। सिर पर टोपी पहनें तो बेहतर होगा।
अधिक से अधिक पानी पीयें यह आपको ताजगी से भरपूर बनाये रखेगा।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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