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समर कैंप में जरूर भेजें बच्चों को

गर्मियों की छुट्टियों के दौरान बच्चों का कुछ नया सीखने का अवसर मिलता है। ऐसे में इन दिनों में लगने वाले समर कैंपों में बच्चों को अवश्य ही भेजना चाहिए। इससे बच्चों में जहां आत्मविश्वास जागता है। वहीं बच्चे का सर्वांगीण विकास भी होता है। विभिन्न स्थलों में चलने वाले समर कैंपों में छात्र-छात्राओं को व्यक्तित्व विकास के गुर सिखाए जाते हैं। शारीरिक फिट रहने की एहमियत भी यहां बच्चे खूब सीखते हैं। समर कैंप के तहत तनावरहित माहौल में छात्रों के लिए कक्षाओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान की जाती है। इन कक्षाओं का आयोजन अध्यापन अध्ययन के कई अज्ञात क्षेत्रों में छात्र की अवधारणा और रुचि को व्यापक बनाने के उद्देश्य से कराया जाता है। छात्र आमतौर पर फोटोग्राफी, सामुदायिक सेवा, नाटक, जादू, स्कूबा डाइउवग, वीडियो निर्माण, कॉमिक बुक डिजाइन, क्राइम सीन फोरेंसिक, खाना पकाना, योग और इसी तरह के अन्य विषयों की छानबीन करते हैं लेकिन, पर्याप्त जानकारी नहीं मिलने पर छात्र-छात्राएं अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाते हैं। लिहाजा ऐसे छात्रों को समर कैंप के माध्यम से उनकी रुचि के अनुसार प्रशिक्षण दिलवाया जाना चाहिए। समर कैंप का उद्देश्य हर बच्चे को कुशल एथलीट, उदार प्रतियोगी, प्रतिबद्ध टीम प्लेयर और आत्मविश्वासी व्यक्ति बनने में सहायता करना होता है। समर कैंप में छात्र-छात्राओं के सर्वांगीण विकास पर जोर दिया जाता है। इसलिए जरूरी हो जाता है कि हर संभव कोशिश की जानी चाहिए कि बच्चे को समर कैंप में अवश्य ही भेजें और उसके सर्वांगीण विकास में सहायक बनें।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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