DHARMA

कालिका मंदिर जहां होती है इबादत और पूजा

इटावा 


उत्तर प्रदेश के जनपद इटावा के समीप लखना तालुका स्थित कालिका देवी का मंदिर हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के लिए अनूठी मिसाल है। मां काली के इस एतिहासिक मंदिर में इबादत और पूजा का ऐसा संगम देखने को मिलता है जो शायद ही कहीं देखने को मिले। कालिका देवी के इस मंदिर के अंदर ही सैयद बाबा की मजार स्थित है। मान्यता है कि यहां मां भक्तों की मुराद तभी पूरी करती हैं जब सैयद बाबा की मजार की इबादत भी की जाए। मंदिर में हिंदू-मुस्लिम एक भाव से दर्शन करने आते हैं और नवरात्र के दौरान यहां पूरे देश से भक्त दर्शनों के लिए आते हैं। मंदिर के मुख्य प्रबंधक रवि शंकर शुक्ला के मुताबिक ’इस मंदिर और मंदिर परिसर में स्थित मजार में उनके और उनके परिवार के अलावा देश-विदेश स्थित तमाम अन्य परिवारों की भी आस्था है जो पीढ़ियों से चली आ रही है।’
बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा राव जसवंत ने करवाया था। राजा राव यमुना नदी पार कंधेसी धार में स्थापित आदिशक्ति कालिका देवी के भक्त थे। वह रोजाना माता के दर्शन के लिए नदी पार करके जाते थे। रोज की तरह एक दिन राजा राव दर्शन के लिए जा रहे थे, लेकिन यमुना नदी में उफान के कारण वह दर्शन के लिए नदी पार नहीं कर सके। इससे वह इतना परेशान हुए कि अन्न-जल त्याग दिया। मां के दर्शन न कर पाने से वह अंदर ही अंदर घुटने लगे। तभी रात में मां काली ने जसवंत राव को स्वप्न में दर्शन दिए। स्वप्न में मां ने कहा कि वह निराश न हों, क्योंकि जल्द ही वह लखना में ही विराजमान हो जाएंगी और उन्हें लखना वाली कालिका मां के नाम से जाना जाएगा।
राजा उनके प्रकट होने का इंतजार करने लगे और तभी एक दिन कारिंदों ने बेरी शाह के बाग में देवी के प्रकट होने की जानकारी दी। राजा वहां पहुंचे तो पीपल का वृक्ष जल रहा था और हर ओर घंटियों की गूंज थी। जब आग शांत हुई तो उसमे से 9 प्रतिमाएं प्रकट हुईं। राजा ने वैदिक मंत्रों के साथ इन प्रतिमाओं की स्थापना की और 1882 के करीब राजस्थानी शैली का एक भव्य मंदिर बनाया। राजा राव धर्म भेदभाव में विश्वास नहीं रखते थे इसलिए उन्होंने मंदिर की स्थापना के साथ ही यहीं एक मजार की स्थापना भी की।
हालांकि मां काली ने राजा राव को स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिया कि मंदिर का आंगन कच्चा ही रखा जाए और प्रतिमाएं दर्शन परिसर में न रखी जाएं। मंदिर के पुजारी श्री विनोद कुमार चौबे का कहना है कि आज भी यहां का आंगन गोबर से लीपा जाता है और कोई प्रतिमा मौजूद नहीं है।
मंदिर का एक दिलचस्प बात यह है कि आज भी यहां मंदिर का सेवक दलित है और हमेशा से दलित ही रहा है। राजा राव ने जब देखा कि दलितों को समाज में सम्मान नहीं दिया जाता तो राजा ने एलान किया कि इस मंदिर का सेवक दलित ही होगा और तब से आज तक पीढ़ियों से उसी दलित परिवार के सदस्य इस मंदिर की सेवा में जुटे हैं।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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