CARE

बच्चों को इस तरह कराएं कसरत 

खाने में आनाकानी करने वाले बच्चे कभी खेलने से इनकार नहीं करते। ऐसे में आप उन्हें जिस तरह खेल-खेल में खाना खिलाती हैं, ठीक उसी तरह खेल-खेल में उन्हें कसरत करना भी सिखा सकती हैं। इससे खेलने के श़ौकीन बच्चे खेल भी लेंगे और फिट भी रहेंगे।
शुरुआत करें बॉल से-
बॉल खेलने से बच्चे कभी इनकार नहीं करते इसलिए बच्चों के साथ एक्सरसाइज़ की शुरुआत उनके पसंदीदा खिलौनों में से एक बॉल से करें. उछलकर बॉल फेंकना और पकड़ना दोनों ही बिल्कुल आसान और एक अच्छा वॉर्मअप एक्सरसाइज़ है. बॉल खेलते वक़्त त़ाकत लगाकर उछालने, बॉल को हाथों से फेंकने और फिर उछलकर हाथों को ऊंचाई पर ले जाकर बॉल पकड़ने से हाथ के साथ-साथ पैर की भी एक्ससराइज़ हो जाती है।
सी-सॉ है बेहतरीन विकल्प-
एक्सरसाइज़ के लिए सी-सॉ भी एक बेहतरीन विकल्प है. इसे खेलने के लिए दो बच्चों की ज़रूरत होती है. दोनों बच्चे दो अलग-अलग साइड पर बैठकर ये खेल खेलते हैं। एक बार पहला बच्चा ऊपर की ओर उठता है, तो दूसरी बार दूसरा बच्चा, इसी तरह दोनों बच्चे बैठकर ऊपर-नीचे होते हैं, जिससे उनकी एक्सरसाइज़ भी हो जाती है। सी-सॉ हाथ और छाती की एक्सरसाइज़ के लिए काफी फायदेमंद होता है।
स्लाइड गेम भी है जरूरी-
बच्चों का पसंदीदा गेम स्लाइड भी फिट एंड फाइन रखने में उनकी मदद करता है. एक ओर जहां बच्चों को स्लाइड पर बैठकर पलक झपकते ही फिसलना अच्छा लगता है, वहीं स्लाइड तक पहुंचने में उन्हें कुछ सीढ़ियां भी चढ़नी पड़ती हैं। इससे हाथ और पैर के साथ उनके कंधों की भी एक्सरसाइज़ हो जाती है।
क्लाइम्बिंग फ्रेम-
हालांकि बहुत कम बच्चे क्लाइम्बिंग फ्रेम में खेलना पसंद करते हैं, मगर बाकी गेम्स के म़ुकाबले इसके फायदे ज़्यादा हैं. इससे बच्चों की पीठ की एक्सरसाइज़ होती है, जबकि बाकी गेम्स में पीठ की एक्सरसाइज़ बहुत कम होती है. इससे बच्चों के आर्म्स की भी एक्सरसाइज़ हो जाती है. अगर बच्चे क्लाइम्बिंग फ्रेम की रॉड पकड़कर ऊपर उठने की कोशिश करते हैं, तो इससे उनकी हाइट भी बढ़ती है।
झूला झूलना-
बचपन में पालने में झूलने वाले बच्चे बड़े होने के बाद गार्डन में जाकर झूला झूलना पसंद करते हैं. इस खेल में बच्चों को ज़्यादा मज़ा तब आता है, जब कोई दूसरा उन्हें झूला झुलाए. परंतु जब बच्चे ख़ुद अपने पैर पर ज़ोर देकर तेज़ी से झूला झूलने की कोशिश करते हैं, तो इससे थाइज़ (जांघ) के साथ पूरे पैर की एक्सरसाइज़ हो जाती है. इसी तरह अगर बच्चा पीछे से धक्का देकर अपने दोस्त की झूला झूलने में मदद करता है, तो इससे उसके हाथों की एक्सरसाइज़ हो जाती है।
मैदान की सैर-
गार्डन में मौजूद तरह-तरह के गेम्स खेलने भर से ही बच्चों की एक्सरसाइज़ नहीं होती, बल्कि रोज़ाना सुबह-शाम प्ले ग्राउंड की सैर करना भी उनकी सेहत के लिए फायदेमंद होता है. अगर आपका बच्चा उम्र में छोटा है, तो उसकी बाबा गाड़ी, स्कूटर, साइकिल आदि भी गार्डन में ले जाएं और बच्चे को उस पर बैठकर गार्डन की सैर करने को कहें। गाड़ी, स्कूटर आदि ख़ुद चलाने से बच्चे के हाथ-पैर की एक्सरसाइज़ हो जाएगी और गार्डन की सैर भी।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button