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 तकधिना धिनः सपने हैं, हौसला है और ऊंची उड़ान के लिए पंख भी…

लक्खीबाग इलाके की तंग गलियों में रहने वाली दस साल की कंचन आईपीएस बनना चाहती है। उसकी कल्पना, उसके सपने को यर्थार्थ में बदलने के लिए उड़ान चाहिए और सही दिशा में ऊंची उड़ान के लिए मजबूत पंखों की जरूरत है। कंचन ही नहीं उनके जैसे मनीषा पासवान, लक्ष्मी, शिवानी, प्रियंका, अभिषेक, अमन जैसे 33 बच्चों को आसमां छूने के लिए मजबूत पंख लगाने का काम कर रहे हैं नियो विजन के गजेंद्र रमोला। रमोला जी लगातार 11 साल से सुविधाओं और संसाधनों से विहीन परिवारों के बच्चों की बड़ी उम्मीद बने हैं। सच मानो तो यह वह साधना है, जिसका उद्देश्य बचपन को बचाने के साथ जिंदगी को मुकाम तक पहुंचाना है, समाज के लिए, अपने राष्ट्र के लिए और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए।

मानवभारती प्रस्तुति तक धिनाधिन का रविवार 20 जनवरी, 2019 को सातवां पड़ाव नियो विजन के साथ था। नियो विजन के बच्चों के साथ हमारी तीसरी मुलाकात  थी। तक धिनाधिन के प्रेरणास्रोत और इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए हर वक्त तैयार मानवभारती संस्था के निदेशक डॉ. हिमांशु शेखर हमारे साथ लक्खीबाग में नियो विजन के बच्चों के बीच पहुंचे। गजेंद्र जी के साथ हम एक बार फिर उस तंग गली में थे, जो नियो विजन की पाठशाला को मुख्य सड़क से जोड़ती है।

रविवार का दिन और सर्दियों की सुबह। यहां पचास से अधिक परिवार रह रहे हैं। घरों में बन रहे भोजन की सुगंध को गली से बाहर जाने का रास्ता नहीं मिल रहा होगा, इसलिए हमने इसको अच्छे से महसूस किया। अंगीठियों और चूल्हों पर पानी गर्म होता देखा। सर्दियां हैं, इसलिए बहुत कम लोग होंगे, जो नहाने, कपड़े धोने के लिए ठंडे पानी का इस्तेमाल करेंगे। इसलिए ज्यादातर घरों के सामने कनस्तरों, भगोनों में पानी गर्म होता दिखा। कपड़ों को दीवार के सहारे सूरज की रोशनी और तपिश का इंतजार करते हुए देखा।

इसी तरह मैंने यहां जिंदगियों को कम स्थान और कम संसाधनों के बावजूद इस उम्मीद के सहारे आगे बढ़ता हुआ महसूस किया कि कोई बात नहीं, आज नहीं तो कल हमारा होगा, हां, कल जरूर हमारा ही होगा। तभी तो यहां के कुछ बच्चों ने खुद के सपने संजोए हैं, वो भी खुली आंखों से। सपने देखना अच्छी बात है, सपने ही तो यर्थार्थ की नींव बनते हैं। कल्पना कीजिए और यर्थार्थ तक पहुंचिए। मेहनत कीजिए, आगे बढ़िए। आशा ही तो है, जो निराशा को खुद पर हावी नहीं होने देती। उम्मीद रुठ गई तो जिंदगी को उसका मुकाम नहीं मिल पाएगा, इसलिए उम्मीद की लौ तो बरकरार रहनी चाहिए, दिल में भी और दिमाग में भी। यहां बच्चे गली में दौड़ते हुए खेल रहे थे। कुछ घरों में गाने बज रहे थे।

खैर फिर से तक धिनाधिन कार्यक्रम पर आते हैं। कुछ बच्चे संडे को क्रिकेट खेलने जाते हैं, इसलिए आज बच्चों की संख्या 25 थी।  मानवभारती के निदेशक डॉ. हिमांशु शेखर ने हर बच्चे से जानना चाहा कि वह क्या बनना चाहते हैं। कंचन क्लास सात की छात्रा है, ने कहा- मैं आईपीएस बनना चाहती हूं। सबने तालियां बजाकर कंचन का उत्साह बढ़ाया। कंचन ही नहीं मनीषा पासवान और लक्ष्मी ने भी कहा, वह आईपीएस बनना चाहती है। शिवानी व प्रियंका डॉक्टर, अभिषेक, चंदन, अमन आर्मी अफसर, अभिषेक, विकास, अनूप क्रिकेटर बनना चाहते हैं। मुनिया और पूजा का लक्ष्य डांस की दुनिया में कुछ ऐसा करने की तमन्ना है, जिसे देखकर सब उन पर गर्व करें। मुनिया तो स्लोमोशन में डांस करती हैं और राघव जुयाल उनके आदर्श हैं। लक्ष्मी पासवान सिंगर बनना चाहती है।

कहने का मतलब यह है कि यहां सपने हैं, इनको हौसला और उड़ान के लिए मजबूत पंख चाहिए, जिनके लिए गजेंद्र रमोला, वह सबकुछ कर रहे हैं, जो उनके दायरे में है। पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर गजेंद्र कहते हैं कि जिस बच्चे का जो सपना है, वह पूरा करेंगे। गजेंद्र जी के प्रयास से मीना ने बीएससी एनिमेशन किया है। गुंजा बीएससी एनिमेशन की छात्रा हैं। मीना और गुंजा नियो विजन की क्लास का संचालन करती हैं, जिसमें शाम को 33 बच्चे पढ़ने आते हैं।

तकधिना धिन में हमने बच्चों से पिछले दो कार्यक्रमों के बारे में पूछा। अभिषेक ने हमें याद दिलाया कि पिछली बार आपने बिल्ले की कहानी सुनाई थी। बिल्ला  जंगल के जीवों को इंगलिश सिखाता है और फिर इंगलिश बोलने वाले जानवरों को देखने के लिए इंसान जंगल में घुस जाते हैं। जंगल का बुरा हाल हो जाता है। बच्चों को इंगलिश की जंगल जर्नी शीर्षक वाली यह कहानी काफी पसंद आई थी, इसलिए यह कहानी उनको आधी अधूरी ही सही पर याद है। हमने बच्चों से विविधता पर बात करते हुए उनके पूछा कि यदि सभी फूल एक ही रंग के होते तो क्या होता। सभी लोग एक रंग के होते, सभी जीव एक जैसे होते, सभी की शक्ल एक जैसी होती, सारे पक्षी एक ही रंग के होते तो क्या होगा। इतने सारे रंगों की वजाय एक ही रंग होता तो क्या होता। बच्चों ने जवाब दिया, सबकुछ गड़बड़ हो जाता। कोई पहचान में नहीं आता। दुनिया खूबसूरत नहीं दिखती। जिंदगी निराशा से भरी होती है। हमने बच्चों से कहा, तभी तो विविधता का महत्व है।

विविधता के महत्व को बताती कहानी सतरंगी का अभिमान बच्चों के साथ साझा की। जो काले, सफेद और भूरे रंगों वाली मछलियों के बीच तैरने वाली सात रंगों वाली यानि सतरंगी मछली की कहानी है। बच्चों के साथ कहानी के संदेश पर चर्चा की गई। लक्ष्मी पासवान ने गीत सुनाया-

  • ओ मेरे हम नवा…।
  • तेरी सांसों से मेरी सांसें मिली….।
  • वो तेरी प्यारी अदा, जो लगे सबसे जुदा।
  • ना होना मुझसे दूर, ओ मेरे हम नवा..।

अभिषेक ने केचुएं और मछली तथा अमन ने मेंढक और बिच्छू की कहानी सुनाई। नियो विजन संस्था के लक्ष्मी, अभिषेक, अनूप, अमन, शिवानी, शिवम, पूजा और पिंकी को मानवभारती कहानी क्लब में शामिल किया गया। ये बच्चे मीना और गुंजा के निर्देशन में कहानियों पर काम करेंगे। कहानियां लिखने से पहले बच्चों को एक टास्क दिया गया है कि वो 27 जनवरी तक अपनी संस्था के बारे में एक-एक पेज लिखेंगे।

इसके बाद अगले एक हफ्ते में बच्चे अपने बारे में लिखेंगे। हमने बच्चों से कहा कि किसी भी मुकाम तक पहुंचने के लिए प्रतिस्पर्धा का सामना करना होगा। प्रतिस्पर्धा से घबराना नहीं, बल्कि मेहनत, लगन और लक्ष्य के लिए समर्पण भाव से कार्य करें। पहले लिखना सीखें। विषयों को रटकर नहीं बल्कि समझकर लिखने से ही सफलता हासिल होगी। अपने नजरिये को प्रस्तुत करना सीखें। यह समझ आप में एक या दो दिन में नहीं बल्कि लगातार प्रयास से विकसित होगी। इसलिए अपने आसपास होने वाली गतिविधियों, अपने शहर, मोहल्ले और स्वयं अपने बारे में लिखिए। अभ्यास जारी रखिए, एक दिन आप लिखेंगे और दुनिया पढ़ेगी।

नियोविजन के बच्चों को आशीर्वचन देते हुए डॉ. हिमांशु शेखर ने कहा कि बच्चे अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत करें, मन लगाकर पढ़ाई करें। खुश रहें। खुश रहकर ही सपनों को पूरा कर पाएंगे। खेलकूद भी जरूरी है। बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने नियोविजन संस्था के प्रयासों की सराहना करते हुए बच्चों के एक दिन के शैक्षणिक भ्रमण की व्यवस्था मानवभारती की ओर से करने की घोषणा की।

गजेंद्र रमोला ने नियोविजन के बारे में जानकारी दी। सक्षम पांडेय ने तक धिनाधिन कार्यक्रम की फोटो और वीडियोग्राफी का जिम्मा उठाया है। सक्षम अभी फोटोग्राफी सीख रहे हैं। कुछ कमियां रह जाती हैं, जिनको अगले कार्यक्रम में ठीक करा लिया जाता है। हमारे अगले पड़ाव की घोषणा जल्द की जाएगी। तब तक के लिए आपको बहुत सारी खुशियों और शुभकामनाओं का तकधिना धिन…।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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