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अग्रिम पंक्ति में तैनात नर्सें हैं सबसे साहसी कोरोना योद्धा

कोविड-19 से लड़ने के लिए दवाओं एवं टीके के विकास में जुटे वैज्ञानिकों से लेकर डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी और सफाईकर्मी सभी इस महामारी के खिलाफ डटकर खड़े हुए हैं। निश्चित तौर पर अग्रिम पंक्ति में तैनात इन सभी लोगों की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन, मरीजों की नियमित देखभाल करने वाली नर्सों की भूमिका इनमें सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण होती है।
मरीजों की देखभाल के लिए नर्सों को बार-बार उनके पास जाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में संक्रमण का खतरा अधिक होना स्वाभाविक है। यह जानते हुए भी जो नर्सें कोविड-19 से ग्रस्त मरीजों की देखभाल में दिन-रात जुटी हुई हैं, उन्हें यदि सबसे साहसी कोरोना योद्धा कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
इंडिया साइंस वायर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार,  स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने फरवरी के पहले सप्ताह में लोकसभा में कोविड-19 के कारण 174 डॉक्टरों, 116 नर्सों और 199 स्वास्थ्यकर्मियों की मृत्यु होने की जानकारी दी थी। उन्होंने एक बीमा योजना के तहत प्राप्त राज्यों के आंकड़ों का हवाला देते हुए यह जानकारी दी है।
यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि ये आंकड़े डॉक्टरों, नर्सों एवं अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की कोविड-19 के कारण होने वाली कुल मौतों की संख्या की एक तस्वीरभर हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया के कुल स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में आधी आबादी नर्सों है। हालांकि, दुनियाभर में लगभग 60 लाख नर्सों की तत्काल कमी है। इनमें विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में नर्सों की सबसे ज्यादा जरूरत है।
हर साल 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस पर नर्सों की भूमिका को सराहा जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 1965 में हुई थी। यह दिन नर्सों द्वारा समाज के लिए किए गए योगदान को याद दिलाता है।
इसी दिन वर्ष 1820 में दुनिया की सबसे प्रसिद्ध नर्स फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म हुआ था। वह एक नर्स, एक समाज सुधारक और एक सांख्यिकीविद् थीं, जिन्होंने आधुनिक नर्सिंग के प्रमुख स्तंभों की स्थापना की।
वर्ष 2021 में अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस की विषयवस्तु ‘ए वॉयस टू लीड – ए विजन फॉर फ्यूचर हेल्थकेयर’ है।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल ‘आधुनिक नर्सिंग‘ की संस्थापक थीं, जिन्होंने क्रीमियाई युद्ध के दौरान घायल ब्रिटिश और संबद्ध सैनिकों के नर्सिंग प्रभारी के रूप में काम किया था।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने अपना ज्यादातर समय घायलों की देखभाल करने में बिताया। वह नर्सों के लिए औपचारिक प्रशिक्षण स्थापित करने वाली पहली महिला थीं। वह पहली महिला थीं, जिन्हें 1907 में ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया था।
भारत समेत पूरी दुनिया में नर्सें इस महामारी से लड़ने में सबसे आगे हैं। वे रोगियों को उच्च गुणवत्ता एवं सम्मानजनक उपचार और देखभाल प्रदान कर रही हैं। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने नर्सों की जिम्मेदारी को बढ़ा दिया है।
कुछ समय पहले दुनिया के अलग-अलग कोने से हमारे सामने ऐसे दृश्य सामने आए हैं, जिन्होंने हमें काफी भावुक भी किया। इन दृश्यों में हमने देखा कि एक महिला जो गर्भवती है, फिर भी अस्पताल में मरीज की सेवा कर रही है।
इन सभी दृश्यों से हमें पता चलता है कि एक नर्स का कामकाज कितना कठिन है। लेकिन, फिर भी नर्सों ने कभी हार नही मानी। कोविड-19 के प्रकोप के दौरान अस्पतालों में अपनी तैनाती के चलते नर्सों, डॉक्टरों एवं स्वास्थ्यकर्मियों को परिवार से दूर रहना पड़ता है, और कई बार मानसिक एवं अन्य विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
नर्सों को अस्पतालों और चिकित्सालयों की रीढ़ कहा जाता है, क्योंकि वे अपनी जान जोखिम में डालकर गंभीर परिस्थिति में भी मरीज की सेवा और उनकी देखभाल करती हैं।
इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स (आईसीएन) के अनुसार 31 दिसंबर 2020 तक कोरोना संक्रमण के कारण 34 देशों में 1.6 मिलियन से अधिक स्वास्थ्यकर्मी कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। इसके बावजूद नर्सों के द्वारा की जा रही निस्वार्थ सेवा के लिए हमें उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस एक ऐसा ही अवसर है, जो हमें नर्सों की सेवा को सैल्यूट करने के लिए प्रेरित करता है।
इंडिया साइंस वायर

Key words:- Corona Epidemic, India Science Wire, Minister of State for Health and Family Welfare, Florence Nightingale, Founder of ‘Modern Nursing’, International Nurses Day, International Council of Nurses (ICN), 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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