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हकीकत ए उत्तराखंडः खेतू के खेतों में ही सड़ गई अदरक, सरकार को नहीं देता सुनाई

टिहरी गढ़वाल के खेतू गांव में इस बार अदरक की फसल खेतों में ही सड़ गई। पूरी फसल पीली पड़ गई। हर साल अदरक की फसल से उम्मीद बांधने वाले लघु किसान त्रिलोक सिंह बहुत निराश हैं। अब उनके सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि बीज खरीद के लिए लिया गया लोन कैसे चुकाएंगे।

त्रिलोक बताते हैं कि पहले भी अदरक की फसल खराब हुई थी। कुमाल्डा में उद्यान विभाग, को बताया है, पर सुनवाई कहां होती है। बीज हमने उन्हीं से खरीदा था। विभाग ने बीज का पैसे ले लिया, अब उनको क्या मतलब।

टिहरी गढ़वाल में सड़क किनारे बसा खेतू गांव, जौनपुर ब्लाक की ग्राम पंचायत धौलागिरी का हिस्सा है। खेतू गांव, उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से करीब 30 किमी. दूर है। देहरादून से यहां जाने के लिए वाया रायपुर, मालदेवता से चंबा के रास्ते पर चलना होगा।

25 अगस्त,2021 की सुबह करीब दस बजे, वरिष्ठ पत्रकार योगेश राणा जी के साथ, चंबा रोड पर जान्द्रेयू खाल रिंगल गाड़ की ओर बढ़ रहा था। इस रूट पर एक तरफ खाई और दूसरी तरफ पहाड़ों से उतरती जलधाराओं – झरनों की कमी नहीं है। झरने और गदेरे रफ्तार में रास्ता पार करते हुए खाई में गिरते हैं। ये शोर भी मचाते हैं।

देहरादून के मालदेवता से टिहरी गढ़वाल के चंबा की ओर जाते समय रास्ता कुछ ऐसा भी है।

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर वन वे पर आपको पूरा ध्यान वाहन पर देना है। सामने से आ रही गाड़ियों के लिए भी रास्ता बनाना है। यहां के मोड़ों पर सामने से आने वाला वाहन नहीं दिखता, इसलिए हॉर्न या लाइट से संकेत तो देना होगा।

एक जगह तो दूसरी ओर से आ रही यूटिलिटी ठीक हमारे सामने थे। यूटिलिटी का ड्राइवर जल्दी में था और थोड़ा सा पीछे हटने की बजाय हमें ही किनारे से आगे बढ़ने की सलाह दे रहा था। वो तो अच्छा हुआ कि हमने खाई वाली साइड को कार से उतरकर चेक कर लिया।

बारिश और कोहरे में ऐसे थे हालात। चंबा और टिहरी झील की दूरी बताता साइन बोर्ड।

अगर, उसकी सलाह पर थोड़ा सा भी आगे बढ़ते, तो बड़े जोखिम का सामना कर रहे होते, क्योंकि दो कदम आगे सड़क के नाम पर हवा में लटका घास का बिछौना था। इसलिए सोच समझकर गाड़ी को आगे बढ़ाएं, यहां जल्दबाजी का मतलब जोखिम उठाना है।

बारिश हल्की थी। वातावरण में ठंडक थी। कुछ जगहों पर लैंड स्लाइडिंग का खतरा था। इसलिए सबकुछ सोच समझकर। जगह-जगह लगे बोर्ड बताते हैं कि यहां पाला (कोहरा) खूब पड़ता है। धीमी गति में बढ़ते हुए हमें एक जगह इक्का दुक्का दुकानें दिखीं।

यहां एक स्कूल भी है, जिसका बोर्ड कोहरे में हल्का सा चमक रहा था, जिस पर लिखा था- राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय खेतू, विकास खंड जौनपुर, टिहरी गढ़वाल।

आदत के मुताबिक, मैंने इस बोर्ड पर मोबाइल कैमरे से क्लिक कर दिया। मेरे लिए तो यह सबकुछ नया था। इसलिए मैं हर लम्हे को कैमरे में स्टोर करना चाहता था, ताकि फुरसत में फिर से देख सकूं और सभी को दिखा सकूं।

इसी बोर्ड से हमें पता चला कि हम खेतू गांव में हैं। मैंने तो इस गांव का नाम पहली बार सुना था। हमने एक दुकान में पूछा, रिंगल गाड़ कितना आगे है। उन्होंने बताया, आपको काफी चलना होगा, आनंद चौक से भी आगे। हम तो उत्तराखंड के गांवों को जानने निकले हैं, इसलिए उनसे पूछ ही लिया, यहां पानी, बिजली, खेती सब ठीक तो है न।

दुकानदार, जिनका नाम त्रिलोक सिंह रावत है, ने बताया कि आषाढ़ से भादो तक यहां कोहरा ही रहता है। रही बात दिक्कतों की, तो मत पूछो। बिजली तीन दिन से नहीं आई। बिजली कर्मचारी को कहां ढूंढे। तमाम दिक्कतों के बारे में बताने के लिए, त्रिलोक सिंह हमें दुकान के पिछले हिस्से की ओर ले जाते हैं। ग्रामीण दीपक रावत भी हमारे साथ आए, अपने गांव के बारे में, कुछ बताने के लिए।

दुकानों के बीच एक गली से होते हुए आगे बढ़कर हम पहुंच गए कुछ घरों के बीच में। दोनों ओर घर बने हैं। दोमंजिला घर की ढालदार छत टीन की है। भवनों की ऊपरी मंजिल में आवास है और नीचे पशुओं को रखा जाता है। कुछ घरों की ऊपरी छत भी कंक्रीट की है। स्लेट वाले पत्थरों को जोड़कर बनाई गई सीढ़ियां बहुत शानदार दिखती हैं। हमें यहां बहुत अच्छा लगा।

त्रिलोक सिंह और दीपक रावत ने हमें वहां रहने वाले लोगों से मिलवाया। स्थानीय निवासियों ने बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि से जुड़ी समस्याएं बताईं।

इसके बाद, त्रिलोक हमें अपने खेत में ले जाते हैं। अदरक का पौधा उखाड़कर बताने की कोशिश करते हैं कि उनकी फसल किस कदर बर्बाद हो गई। उनको नहीं पता,अदरक में कीड़ा लगा है या और कोई वजह है। उनके अनुसार विभाग के अधिकारी यहां नहीं पहुंचते। बताते हैं कि फसल पहले भी खराब हुई थी, इस बार ज्यादा ही है। किसी ने तीन, किसी ने चार कुंतल अदरक बोया, पर नुकसान के सिवाय कुछ हासिल नहीं हुआ। खेतू में लगभग 20 किसानों ने अदरक बोई थी, सभी नुकसान में हैं।

” अदरक की खेती पर लगभग 24 हजार रुपये खर्च किए, जिस पर उम्मीद थी कि करीब 50 हजार रुपये की फसल मिल जाएगी। अदरक की खेती में काफी मेहनत लगती है। मैंने बैंक से कृषि कार्ड पर 30 हजार का लोन लिया था, जिसे चुकाना चुनौती है। यह लोन एक साल के भीतर चुकाना है।” अदरक के बर्बाद हो चुके खेत को देखते हुए त्रिलोक ने बताया।

कहते हैं, मिर्च को भी बहुत नुकसान हुआ। मिर्च का खेत थोड़ा दूरी पर है, नहीं तो आपको जरूर दिखाता। अदरक और मिर्च के अलावा और कोई फसल ऐसी नहीं है, जो नुकसान की भरपाई कर सके।

वरिष्ठ पत्रकार योगेश राणा का कहना है कि, फसल बर्बाद होने के कई कारण हो सकते हैं। इनमें मुख्य रूप से बीज का खराब होना, प्रतिकूल मौसम, फसल को कीट या रोगमुक्त करने संबंधी उपायों में कमी, पानी की कमी या अधिकता आदि शामिल हैं। कारण कोई भी हो, पर विभाग अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकता। विभाग को फसल खराब होने की प्रमुख वजह तो बतानी ही होगी।

खेतू गांव में वरिष्ठ पत्रकार योगेश राणा। राणा जी ने कई प्रमुख मीडिया समूहों में बतौर संपादक सेवाएं दी हैं।

”कारण कुछ भी हो, आखिरकार नुकसान तो किसान को हो रहा है। विभाग को आकलन करके इस क्षति का मुआवजा देना चाहिए, ताकि किसान कर्ज में न फंसें। ” वरिष्ठ पत्रकार योगेश राणा कहते हैं।

उनका कहना है, कृषि एवं बागवानी की उपज बढ़ाने के लिए बीज के चयन एवं खरीद से लेकर फसल प्राप्त करने तथा बाजार तक पहुंच बनाने तक विभाग का सहयोग एवं तकनीकी मार्गदर्शन आवश्यक है। कृषि वैज्ञानिकों एवं अधिकारियों- कर्मचारियों तक किसानों का संवाद बना रहना चाहिए। पर, यहां जैसा कि किसान बता रहे हैं कि अधिकारी-कर्मचारी उनकी बात नहीं सुन रहे हैं, तो यह बहुत खराब स्थिति है। किसान विभाग के पास नहीं तो अपनी बात किससे पास पहुंचाएंगे।

टिहरी गढ़वाल जिला के खेतू गांव का एक भवन।

वर्षा पर निर्भर खेती वाला खेतू गांव, कृषि ही नहीं अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी भी झेल रहा है। ग्रामीण चाहते हैं कि उनकी दिक्कतें दूर हों। जनप्रतिनिधि, अधिकारी उनके गांव तक आएं और उनकी बात सुनें।

ग्रामीणों का कहना है कि यहां स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। यहां से करीब 20 किमी. दूर देहरादून जिले के रायपुर जाना पड़ता है। आक्समिक हालात में 108 एंबुलेंस सेवा बुलानी पड़ती है या फिर गाड़ी बुक करानी होती है।

जनप्रतिनिधियों की आवाजाही यहां चुनाव के वक्त ही होती है। ग्रामीण बताते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां राजनीतिक सक्रियता बढ़ जाएगी।

यहां हमने बच्चों से भी मुलाकात की। इस गांव में जितने भी लोगों से हम मिले, सभी से बहुत स्नेह मिला। उन्होंने हमें चाय पिलाकर ही भेजा। थैंक्यू खेतू गांव…, इतने स्नेह के लिए आपका आभार।

पहाड़ की इस यात्रा का अगला भाग जल्द ही…

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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