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देहरादून में एक अनूठा फार्म हाउस

  • मनोज इष्टवाल 

एक साधारण सी दिखने वाली महिला जो वास्तव में मल्टीनेशनल प्रतिष्ठा लिए हुए है, देहरादून के गल्ज्वाड़ी में छोटा सा फार्म हाउस बनाकर रहती हैं। गल्ज्वाड़ी में इनका चार बीघा में फार्म हाउस है, जहां से हर ओर प्रकृति का नजारा दिखता है। इनके फार्म हाउस के पास कभी तीतर बटेर तो कभी जंगली मुर्गे, मोर का कलरव सुनाई देता है। पास ही नीचे छोटी सी नदी है, जिसके पानी का उपयोग गल्ज्वाड़ी का गांव करता है। 

आज अचानक फुर्सत में मैंने फोन किया तो पता चला कि वो देहरादून में हैं। तय शुदा कार्यक्रम के अनुसार उनके घर पहुंचा। चुनाव की गतिविधि, मतदान की चर्चा के बीच गीता के आग्रह पर उनकी अत्याधुनिक छोटी सी झोपड़ी, जो वास्तव में एक प्रकृति सम्मत सुविधाओं से परिपूर्ण है, को देखने का मौका मिला। आपको बताने में हर्ष का एहसास होता है कि साधारण सी दिखने वाली गीता एक माह में कई शहर और कई देशों का भ्रमण कर आती हैं। यह एक अखबार का प्रकाशन भी करती हैं, जो उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों से भी प्रकाशित होता है। हिंदी के साथ ही उर्दू और मराठी में भी लंबा सफर पढ़ने को मिल जाएगा।गल्ज्वाड़ी में बने इस फार्म हाउस या यूं कहें कि प्रकृति के बसेरे को गीता विलेज टूरिज्म के रूप में विकसित करना चाहती हैं। उनका कहना है कि यह विलेज शांत और सुविधाओं वाला हो, लेकिन इससे आसपास के पारिस्थितकीय तंत्र पर किसी भी प्रकार का बुरा प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। गीता का यह प्रयोग अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हो सकता है। 

पढ़ें- https://newslive24x7.com/bio-tourism-park-pipalkoti/

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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