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पीपीई किट के लिए वेंटिलेशन सिस्टम ‘कोव-टेक’

इंडिया साइंस वायर
भारत समेत पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए पीपीई किट और मास्क पहनकर स्वास्थ्यकर्मी दिन-रात हमारे जीवन की रक्षा करने के प्रयासों में जुटे हुए हैं। हालांकि, पीपीई किट को लंबे समय तक पहनकर रखना किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि इसमें बाहरी हवा प्रवेश नहीं कर पाती है।
मुंबई के छात्र निहाल सिंह ने इस चुनौती को दूर करने के उद्देश्य से पीपीई किट के लिए एक वेंटिलेशन सिस्टम तैयार किया है, जिसे पारंपरिक पीपीई किट के साथ जोड़ा जा सकता है।
पीपीई किट के लिए बनाया वेंटिलेशन सिस्टम चारों ओर से हवा खींचता है, और उसे फिल्टर करके पीपीई किट में भेजता है। किट के भीतर के तापमान में कमी आती, और स्वास्थ्यकर्मियों को राहत का अनुभव होता है।
निहाल सिंह ने दावा किया है कि पीपीई किट में यह वेंटिलेशन सिस्टम लगाने के बाद स्वास्थ्यकर्मियों को ऐसा अनुभव होगा कि जैसे आप पंखे के सामने बैठे हैं। इस वेंटिलेशन सिस्टम को ‘कोव-टेक’ नाम दिया गया है।
कोव-टेक में लिथियम आयन बैटरी का प्रयोग किया गया है, जो छह से आठ घंटे तक चलती है। वेंटिलेशन सिस्टम का डिजाइन पीपीई किट से पूरी तरह हवा को सील करना, सुनिश्चित करता है। यह महज सिस्टम 100 सेकेंड के अंतराल में उपयोगकर्ता के लिए ताजा हवा उपलब्ध कराता है।
निहाल सिंह ने बताया कि पीपीई किट के लिए वैंटीलेशन सिस्टम की प्रेरणा उन्हें अपनी मां से मिली, जो डॉक्टर हैं। उनकी मां अपने क्लीनिक में कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रही हैं। उनकी मां अक्सर पीपीई किट से जुड़ी मुश्किलों के बारे में बताती थीं। ऐसे में उन्होंने इसके समाधान के लिए प्रयास किए।
निहाल सिंह और उनकी मां डॉ पूनम कौर आदर्श के साथ। फोटो- इंडिया साइंस वायर
डिजाइन चैलेंज ने निहाल को पहले प्रोटोटाइप पर काम करने के लिए प्रेरित किया। नेशनल केमिकल लैबोरेटरी, पुणे के डॉ. उल्हास खारुल से मिले मार्गदर्शन से निहाल को 20 दिनों के भीतर पहला मॉडल विकसित करने में सहायता मिली।
छह महीने के परिश्रम के बाद निहाल ने गले में पहनने वाला सिस्टम तैयार किया था, जिसे डॉक्टरों को इस्तेमाल के लिए दिया गया, लेकिन इसे पहनकर काम करना आसान नहीं था। डिवाइस से निकलने वाली आवाज और कंपन के कारण यह डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए असहज था, इसलिए इसे रिजेक्ट कर दिया गया।
इसके बाद उन्होंने दूसरी डिजाइन पर काम करना शुरू किया। उन्होंने फाइनल प्रोडक्ट से पहले 20 प्रोटोटाइप मॉडल बनाए। बाद में बेल्ट की तरह इस्तेमाल किया जाने वाला यह सिस्टम बनाया गया।
निहाल ने बताया कि चूंकि यह वेंटिलेटर शरीर के पास पहना जाता है, इसलिए इसमें अच्छी गुणवत्ता वाले उपकरण उपयोग किए गए हैं, और सुरक्षा उपायों का भी पूरा ध्यान रखा गया है।
यह वेंटिलेशन सिस्टम पुणे के साई स्नेह हॉस्पिटल और लोटस मल्टी स्पेशियल्टी हॉस्पिटल में इस्तेमाल किया जा रहा है। इस उत्पाद की लागत 5,499 रुपये प्रति इकाई है, जो प्रतिस्पर्धी उत्पादों की तुलना में काफी सस्ता है। हालांकि, इसकी कीमत में और कमी लाने का प्रयास किया जा रहा है। अगले महीने तक इस वेंटिलेशन सिस्टम का उत्पादन बढ़ाने की योजना है।
‘कोव-टेक’ वेंटिलेशन सिस्टम को तैयार करने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार से संबंधित निधि के प्रमोटिंग एंड एक्सेलेरेटिंग यंग एंड एस्पायरिंग टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योरशिप (प्रयास) के माध्यम से दस लाख रुपये का अनुदान दिया गया है। इसके अलावा, आरआईडीएल और केजे सोमैया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ने संयुक्त रूप से संचालित न्यू वेंचर इन्वेस्टमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत पांच लाख रुपये का सहयोग भी दिया है।
निहाल, मुंबई के केजे सोमैया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में द्वितीय वर्ष के छात्र है। इस प्रोटोटाइप को विकसित करने के लिए निहाल के साथ उनके सहपाठी रित्विक मराठे और सायली भावासर ने भी परियोजना में उनकी मदद की है।
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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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