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ऋषिकेश के 58 साल के शर्मा जी का 35 साल की बाइक से रिश्ता बेजोड़ है

योगेश शर्मा ने साझा किए लेह लद्दाख की यात्रा से जुड़े कभी न भूलने वाले किस्से

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

“जून, 2022 की बात है, लद्दाख में दुनिया की सबसे ऊंची सड़क उर्मिंग ला पास पहुंचने के लिए पेंगाग झील (Pangong lake) से मेराक (Merak) होते हुए जा रहा था। रास्ते में, एक बरसाती नदी में फंस गया। लगभग 20 मिनट तक फंसा रहा और पैर लगभग माइनस तापमान वाले पानी में डूबे थे।”

“मेरी बाइक दो पत्थरों के बीच फंस गई थी। ऐसा मेरी अपनी गलती से हुआ था, मैं नदी को गलत जगह से पार कर रहा था। मुझे पता नहीं, क्यों ऐसा करने की सूझी थी।”

“दूर-दूर तक निर्जन इलाका था। मैंने मदद के लिए आवाज लगाई, पर काफी देर तक कोई नहीं पहुंचा। पर, शुक्र है ईश्वर का, मेरे से आगे निकल चुके दिल्ली के एक बाइकर ने देखा कि मैं उसके आसपास कहीं नहीं दिख रहा तो वो मुझे देखने के लिए वापस लौटा था।”

“उसने काफी प्रयास के बाद मुझे नदी से निकाला। यह बाइकर मेरा अच्छा दोस्त बन गया और मुझसे मिलने दिल्ली से ऋषिकेश भी आया था। मैं सभी बाइकर्स और यात्रा करने वालों से कहना चाहूंगा कि आप एक दूसरे की मदद जरूर करें। “

ऋषिकेश के राजकीय अस्पताल के पीछे मालवीय रोड पर रहने वाले 58 साल के योगेश शर्मा, उत्तराखंड ही नहीं बल्कि लेह लद्दाख के दुर्गम रास्तों पर बाइक की सवारी करते हैं।

रेडियो ऋषिकेश से एक साक्षात्कार में योगेश बताते हैं, “वो लेह लद्दाख के उस इलाके में ऑफ रोड राइडिंग (Off road riding) कर रहे थे।” उनसे बाइक से खतरनाक रास्तों पर सफर के दौरान पेश आने वाली चुनौतियों के बारे में सवाल किया गया था।

इस तरह बनता है यात्रा का प्लान

बताते हैं, “कई बार मुश्किलें सामने आती हैं, पर बाइक यात्रा शुरू करने से चार महीने पहले रिसर्च शुरू कर देते हैं। वहां का वेदर कैसा होगा, क्या दुश्वारियां आ सकती हैं, पेट्रोल पंप कहां-कहां हैं।”

“यात्रा का एक नक्शा जरूर बनाता हूं, जिसमें कहां-कहां जाना है, के बारे में स्पष्ट होता है। एक दिन में कितनी दूरी तय कर सकता हूं, अगर समय बचा तो और कितनी दूरी तक आगे बढ़ सकता हूं, यह पहले से साफ होता है। आपको सरकार की गाइड लाइन का पूरी तरह से पालन करना चाहिए।”

“चार साल में मौसम कैसा रहा है। रूट पर मैकेनिक कहां- कहां हैं। जब भी बाइक की सर्विस कराता हूं, मैकेनिक के साथ बैठता हूं, उनसे सीखता हूं, अगर कोई प्राब्लम हो जाए तो कैसे ठीक करूंगा।”

“गाड़ी रोड पर शोर मचाए, पॉल्युशन फैलाए, मुझे बर्दाश्त नहीं है, गाड़ी सड़क पर तभी निकाली जाए, जब वो पूरी तरह फिट हो। ” योगेश शर्मा कहते हैं।

“मेरे पास बाइक के महत्वपूर्ण पार्ट्स हमेशा रहते हैं। चार महीने तक यूट्यूबर्स और उस रूट पर रहने वाले मित्रों की फोटो और वीडियो देखता हूं, उनसे बात करता हूं, वहां रूट और मौसम की क्या स्थिति है।”

“उस रूट पर कैसे चलना है और कितनी दूरी तक प्रतिदिन चलना चाहिए। वैसे में, हर यात्रा में कुछ न कुछ सीखकर जरूर लौटता हूं। साल में दो बार बाइक का पॉल्युशन चेक कराता हूं। पांच साल में बाइक का रिन्युवल कराता हूं।”

“सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, यदि आप लेह लद्दाख जा रहे हैं तो आपके पास मोबाइल फोन का पोस्टपैड कनेक्शन जरूर होना चाहिए। इससे आप अपने दोस्तों से जुड़े रहेंगे। मुझे कई बार मौसम की सही जानकारी नहीं मिल पाती, पर फोन पर दोस्तों से मौसम की जानकारी मिल जाती है।”

बताते हैं ” एक बार, मैं द्रास में था। वहां से निकला ही था कि बारिश शुरू हो गई। मैंने ऋषिकेश में अपने दोस्त से फोन पर बात की और आगे के मौसम का हाल जाना, तो उन्होंने बताया, शर्मा जी आप आगे बढ़ते रहिए, आगे बारिश नहीं है। करीब आधा घंटा बाद के सफर में बारिश नहीं थी। मैं कारगिल से भी आगे बढ़ गया था। मौसम की जानकारी बहुत आवश्यक है।”

बाइक में खत्म हो गया पेट्रोल, बारिश-आंधी में फंस गया

योगेश शर्मा बताते हैं, “दूसरी घटना भी पिछले साल जून 2022 में, उस समय हुई, जब विश्व की सबसे ऊंची सड़क उर्मिंग ला पास जा रहा था। हानले से उर्मिंग ला पास के रास्ते में, अंदाजा लगा लिया कि बाइक में पेट्रोल की दिक्कत आ सकती है।”

“मैं बाइक के एवरेज को लेकर थोड़ा संशय में था। वहां, कुछ यूट्यूबर्स से मेरा परिचय हो गया था। मैंने उनसे कहा, अगर रास्ते में पेट्रोल खत्म हो जाए तो मुझे मदद कर देना। उन्होंने कहा, हम आपकी मदद कर देंगे।”

“इसके बाद, मैं उर्मिंग ला पास तक चला गया, वहां से वापस हानले लौट रहा था। रास्ते में, मैं एक जगह रूका भी। वहां भी मैंने उन यूट्यूबर्स से कहा, मुझे पेट्रोल की आवश्यकता है। उनका कहना था, आप आगे-आगे चलिए, हम पीछे आ रहे हैं।”

“पर, उन लोगों ने रास्ते में अपनी बाइकें मुझसे आगे कर लीं और पीछे मुड़कर भी नहीं देखा कि मैं कहां हूं। बाइक का पेट्रोल खत्म हो गया। हानले से लगभग दस किमी. पहले रेतीले इलाके में, करीब पांच किमी. तक मैं बाइक को किसी तरह खींचकर ला रहा था।”

ऋषिकेश के बाइक राइडर योगेश शर्मा यात्रा के दौरान। ( फाइल फोटो साभार- योगेश शर्मा जी का सोशल मीडिया पोस्ट)

“रास्ते में बारिश और आंधी शुरू हो गई, मेरे पास किसी तरह की कोई मदद नहीं थी। करीब आधा-एक घंटा बेबस था, समय बीतता जा रहा था। उसके बाद यूके07 नंबर की कार दिखाई दी। मैं खुश हो गया, देहरादून नंबर की गाड़ी। मैंने उनसे हेल्प मांगी, वो वहां किसी महिला का प्रसव कराने वहां आए थे।”

“वो मुझे कार से अपने साथ लेकर एक गांव में पहुंचे, जहां पेट्रोल दिलवाया। वो मुझे वापस बाइक तक छोड़ने भी आए। यदि वो मेरी मदद नहीं करते तो मेरे लिए हानले तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता, क्योंकि वो इलाका बारिश, आंधी और बर्फीला है। सच में, वो कार वाले लोग, मेरे लिए देवदूत बनकर आए थे।”

“मैं हानले पहुंचा और वहां टैंक फुल कराया। पर, एक और घटना मेरे साथ घटी। मुझे हानले से पांग पहुंचना था। वहां नाइट स्टे के बाद आगे बढ़ना था। पर, मैं सुमदो तक ही पहुंच पाया, क्योंकि मैं बहुत लेट हो गया था। सुमदो एक स्थान है, जो पांग और हानले के बीच स्थित है। मुझे सुमदो में ही रूकना पड़ गया।”

“दूसरे दिन, मैं सुमदो से ऑफ रोड मात्र दस या 12 किमी. ही चला था। यहां, आगे की चढ़ाई पर मेरी बाइक ने जवाब दे दिया। मैं बाइक से उस चढ़ाई को पार नहीं कर पाया। वापस सुमदो लौटा और वहां से फिर ब्रिज पार करके लगभग डेढ़ सौ किमी. चलकर पांग पहुंचा।”

1988 में खरीदी बाइक से यह रिश्ता है 

” यह बाइक 1988 में खरीदी थी, जब बाइक खरीदने गया था, तब यह देहरादून का पहला मॉडल था। बाइक खरीदने के बाद मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि एक कप चाय पी सकूं। मेरे मित्र विजय रावत, जो इंश्योरेंस कंपनी में थे, ने अपने पास से ही शोरूम से निकलने से पहले बाइक का इंश्योरेंस कराया। पैसे उन्होंने ऋषिकेश लौटकर जमा कराए।”

“इससे पहले मैंने जीवन में कभी बाइक नहीं चलाई थी। देहरादून से लाते समय डोईवाला से ऋषिकेश तक मैंने खुद बाइक चलाई। बाद में, मेरे एक फौजी मित्र दिनेश उपाध्याय के साथ मैं इसी बाइक को लेकर श्रीबदरीनाथ जी की यात्रा पर चला गया। इस दौरान मैंने पहाड़ के रास्तों पर बाइक चलाने का अनुभव हासिल किया।”

बाइकर्स को शर्मा जी की सलाह

वर्षों से बाइक पर पहाड़ों की यात्रा कर रहे योगेश शर्मा कहते हैं, “आप प्राकृतिक नजारों का आनंद लें, पर शोर ना मचाएं। पहाड़ों पर गंदगी के ढेर छोड़कर मत जाएं। अक्सर देखने को मिलता है, खासकर युवा तेज स्पीड में बाइक दौड़ाते हैं। एक साथ तीन-तीन लोग बाइक पर सवार होते हैं। साइलेंसर निकालकर बाइक दौड़ाते हैं। ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं करते। इस तरह की गतिविधियों से बचना चाहिए। यदि आप गाड़ी चला रहे हैं, तो ट्रैफिक के सभी नियमों का पालन करना आपकी जिम्मेदारी है। यात्रा के दौरान गंदगी न फैलाएं।”

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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