Analysis

फुर्र हो गया चिड़ियों पर चिंतन

विश्व गौरेया दिवस पर विशेष

  • जेपी मैठाणी

विश्व गौरेया दिवस पर जहां आज सोशल मीडिया से लेकर बर्ड वाचिंग का शौक रखने वालों के साथ-साथ प्रकृति प्रेमी चिंता व्यक्त कर रहे हैं। वहीं अगर दो प्रतिशत लोग भी उत्तराखंड की चिड़ियों के निवास स्थान या पर्यावास को बचाने का प्रयास करते तो तस्वीर कुछ और ही होती।

पर्यावरण संरक्षण, जीव जंतुओं के अधिवासों को बचाने की जुगत, डिजीटल मीडिया के आधुनिक संचारयुक्त आभा मंडल में सिर्फ एक दिन की चिंता है। सरकारी प्रयासों में बर्ड वाचिंग कैंप करवाने से या सिर्फ फोटो प्रदर्शनियों से चिड़ियों के संरक्षण की बातें पूरी तरह बेमानी हैं। जो लोग मंचों से चिड़िया के संरक्षण की बात करते हैं, वे लोग रिहायशी क्षेत्रों में या आदम रिहायश के लिए बनाए जा रहे सुविधामय संसार में जब पेड़ काटे जाते हैं, जब फलदार वृक्षों की जड़ों में तेजाब उड़ेला जाता है और जहां घरों की छतों पर मोबाइल टावर लगा दिए जाते हैं, ये सभी चिड़ियों के हितचिंतक फुर्र हो जाते हैं।

शहरों में आज कितने घर या परिवार हैं, जो घरों की चाहरदीवारी, छत या मुंडेर पर, थोड़ा दाना पानी रखते हैं। कितने लोग हैं, जो अपने घरों की पॉलीथिन या प्लास्टिक का कचरा नालियों या सड़क किनारे नहीं फेंकते, क्योंकि एेसा करने से नालियों और सड़कों के किनारे कीट पतंगों, कुछ तितलियों, लार्वा आदि का जीवन और पारिस्थिकीय तंत्र प्रभावित होता है। कृषि और बागवानी में हम लगातार अति हानिकारक रसायनों का प्रयोग कर रहे हैं। रसायनों से मरने वाले कीट पतंगो जैसे- बीटल, म़ॉथ, स्पाइडर, केंचुएं, ड्रैगन फ्लाई, एफिड्स, बटर फ्लाई, टैडपोल, मेंढ़क, टिड्डे को खाने से चिड़ियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है।

यहीं नहीं कीटनाशकों से मरे हुए चूहों और अन्य जीवों को खाने से कौवे, चील, गिद्द आदि मारे जाते हैं। वर्ष 2006 में नगर पालिका रानीखेत क्षेत्र में 68 स्टैपी ईगल मारे गए थे, क्योंकि कैंट बोर्ड और नगर पालिका ने जहर देकर कुत्तों को मारकर डंपिंग जोन में फेंक दिया था। इनको खाने से ये पक्षी मारे गए थे। यहां यह बताना इसलिए जरूरी हुआ कि चिड़ियों को बचाने के लिए सिर्फ गौरेया दिवस मनाया जाना ही काफी नहीं होगा, बल्कि गौरेया के साथ-साथ पूरे काले कौवे, मैना, बुलबुल, हार्कटेल, स्नोफिंच, सन बर्ड, नट हैच, रेड स्टार्ट. ब्लू ऱॉक थ्रस, हमिंग बर्ड, स्कवायर टेल़्ड बुलबुल, वुड पैकर, मैग पाई, ब्लैक ट्रंगो, बी ईटर, प्लम हेडेड पैराकीट, हॉर्न बिल सहित अन्य प्रजातियों पर भी संकट मंडरा रहा है।

इतने तरह की होती है गोरैया

गौरेया या घ्युंदुडी सात तरह की होती है। 1- House sparrow,  2- Spanish Sparrow, 3- Sind Sparrow, 4- Russet Sparrow, 5- Dead Sea Sparrow, 6-Eurasian Tree Sparrow,
7- Rock Sparrow

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button