Creativity
प्रेम-कविता
तुम मानो, या न मानो
रहो यूँ ही ‘अंजान’ !!
पर, मैं तुम्हें संग रखकर
शब्दों के घने जंगल में
लिखती हूँ प्रेम-कविता,
बोती हूँ प्रेम-बीज कागज पर,
और
असंख्य शब्द-शिशुओं संग
बटोरती हूँ तुम्हारे लिए
प्रेम की हरी पत्तियाँ !!
फ़िर
निःशब्द,अलौकिक अहसास संग
तुम यूँ उतरते हो मेरे भीतर,
ज्यूँ नदी के भीतर
उतरता है चन्द्रमा !!
- कान्ता घिल्डियाल
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