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तिब्बत नापने वाले नैन सिंह रावत का डूडल बनाया गूगल ने

सर्च इंजन गूगल ने 21 अक्तूबर को नैन सिंह रावत के जन्मदिन पर उनका डूडल बनाया। नैन सिंह रावत ने रस्सी, थर्मामीटर व कंपास लेकर पूरा तिब्बत नाप दिया था। वह दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने लहासा की समुद्र तल से ऊंचाई को मापा था। उनको रायल जियोग्राफिकल सोसाइटी ने 1876 में गोल्ड मेडल से सम्मानित किया था।

राय बहादुर नैन सिंह रावत का जन्म वर्तमान उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित जौहर घाटी के मिलम गांव में 1830 में हुआ था। जौहर घाटी मिलम ग्लेशियर की तलहटी पर स्थित है, जहां से गौरीगंगा नदी निकलती है। बिना किसी आधुनिक उपकरण के पूरे तिब्बत का नक्शा बनाने का श्रेय नैन सिंह रावत को जाता है। गूगल ने उनका डूडल बनाया है। कहा जाता है कि जिस समय उन्होंने तिब्बत की ऊंचाई को मापा, उस समय किसी भी विदेशी को तिब्बत जाने पर प्रतिबंध था। अगर कोई छिपकर तिब्बत पहुंच भी जाए तो उसको पकड़े जाने पर मृत्यु दंड तक दिया जा सकता था।

नैन सिंह रावत ने अपने भाई के साथ रस्सी, थर्मामीटर और कंपस लेकर पूरा तिब्बत नाप दिया। 19वीं शताब्दी में अंग्रेज भारत का नक्शा बना रहे थे, लेकिन तिब्बत का नक्शा नहीं बना पा रहे थे। तब उन्होंने किसी भारतीय को ही वहां भेजने की योजना बनाई। 1863 में अंग्रेज सरकार को दो ऐसे लोग मिल गए जो तिब्बत जान के लिए तैयार हो गए। नैन सिंह रावत लहासा की समुद्र तल से ऊंचाई और उसके अक्षांश और देशांतर की जानकारी दी। करीब 800 किमी तक पैदल यात्रा करके बताया कि ब्रह्मपुत्र और स्वांग एक ही नदी है।

1863 में नैन सिंह रावत औऱ उनके चचेरे भाई मणि सिंह रावत को देहरादून के ग्रेट ट्रिग्नोमेट्रिक सर्वे दफ्तर भेजा गया, जहां दो साल के प्रशिक्षण में उन्होंने वैज्ञानिक उपकरणों के इस्तेमाल, मैपिंग, रिकार्डिंग का ज्ञान हासिल किया। नैन सिंह रावत असाधारण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने सर्वेक्षण के उपकरणों को सही तरीके इस्तेमाल करना सीख लिया।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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